वाराणसी (ब्यूरो)। बनारस से गोरखपुर जा रही एसी बस कब धधक उठी, इसका अंदाजा भी पैसेंजर्स नहीं लगा पाए। इस घटना के बाद कैंट रोडवेज बस स्टेशन पर एसी बसों की दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम ने रियलिटी चेक किया तो सुरक्षा के खास इंतजाम नहीं दिखे। अग्निशमन यंत्र देखने को नहीं मिला और न ही इमरजेंसी विंडो। पहले बसों में दो दरवाजे होते थे कि इमरजेंसी में कोई घटना हो गई तो किसी भी दरवाजे से कूद कर भाग सकें, लेकिन अब तो एक ही दरवाजा होता है। उसी से चढऩा होता है और उतरना.
अधिकतर बसों में नियम का पालन नहीं
बसों में यात्रियों की सुरक्षा के संसाधन होने अनिवार्य हैं। साथ ही आपातकालीन समय में निपटने के लिए बस में फस्र्ट एड बाक्स, अग्निशमन यंत्र के साथ-साथ बस के पिछले हिस्से में बस के दरवाजे के विपरीत दिशा में एक आपातकालीन दरवाजा लगा होना चाहिए, लेकिन अधिकतर बसों में इन नियमों का पालन नहीं हो रहा है। इसका खामियाजा जब दुर्घटना होती है तो यात्रियों को भुगतना पड़ता है। लंबी रूट की रात्रिकालीन बसों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर बसों में फस्र्ट एड बॉक्स और अग्निशमन यंत्र नहीं है.
रोजाना दस हजार यात्री करते सफर
शहर से पूर्वांचल के विभिन्न जिलों के लिए 35 एसी बसें चलती हैं। इनमें 17 बसें कैंट डिपो व 18 काशी डिपो से चलती हैं। इन बसों से रोजाना करीब दस हजार यात्री सफर करते हैं। बसों में सुरक्षा मानकों का कोई ख्याल नहीं रखा जाता। भीषण गर्मी में आए दिन एसी बसें खराब रहती हैं। रोडवेज के वर्कशाप में हमेशा चार से पांच बसें खड़ी मिल जाएंगी। इनमें किसी का एसी खराब रहता है तो किसी में ब्लोअर काम नहीं कर रहा होता.
नॉन एसी बसों की टूटी खिड़कियां
रोडवेज की कई नॉन एसी बसों की स्थिति काफी खराब है। किसी की खिड़की टूटी हंै तो किसी का सीट फटा हुआ है। यहीं नहीं कल-पूर्जे भी खस्ताहाल हैं। इन बसों का मेंटेनेंस न होने से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है.
आग बुझाने के लिए अग्निशमन यंत्र नहीं
यहां से छूटने वाली लंबी रूट की कई बसों में फस्र्ट एड बाक्स तक नहीं है। यही नहीं अगर शार्ट सर्किट या अन्य किन्हीं कारणों से आग लग जाए तो आग बुझाने के लिए अग्निशमन यंत्र भी बसों में नहीं देखने को मिलेंगे। हालांकि रोडवेज के अधिकारी बसों में यह सबकुछ रखने का दावा करते हैं लेकिन मौके पर कुछ भी नजर नहीं आता.
नहीं होता बैज नंबर
नियमों के मुताबिक चालक व कंडक्टर को वर्दी और बैज नंबर के साथ होना चाहिए पर एसी बसों के चालक और कंडक्टर वर्दी में होते हैं लेकिन उनका बैज नंबर नहीं होता। इसके अलावा बसों में महिलाओं और दिव्यांगों के लिए अलग से सीटों के आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान है। कुछ बसों को छोड़ दिया जाए, तो अधिकतर बसों में इस आरक्षण का प्रावधान नहीं होता। इसके चलते महिलाओं को भी कई बार खड़े-खड़े ही सफर करना पड़ता है.
एसी बसों की सुरक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जिन बसों में अग्निशमन यंत्र नहीं नहीं हैं, उनमें रखवाया जाएगा.
महेंद्र पांडेय, एआरएम