वाराणसी (ब्यूरो)। श्री काशी विश्वनाथ के लिए सावन का महीना काफी पवित्र माना जाता है। पूरे महीने करीब डेढ़ से दो करोड़ दर्शनार्थी बाबा दरबार में हाजिरी लगाते हैं, जिसमें आधे से अधिक कांवडिय़ों की संख्या होती है। साथ ही बनारस के लिए यह महीना काफी मुफीद होता है। यही वजह है कि सावन का महीना करीब आते ही बनारस में नशे का कारोबार पैर जमाने लगता है। पक्का महाल की गलियों से लेकर घाटों तक हर जगह नशा के सौदागार सक्रिय हो जाते हैं। असम और उड़ीसा से गांजे की खेप बनारस आनी शुरू हो जाती है। कोरोना काल से पहले बनारस आने वाले सैलानियों में गांजा की खपत ज्यादा होती थी, लेकिन अब विदेशी का आना लगभग बंद हो गया है। ऐसे में नशे के सौदागरों ने कांवडिय़ों को टारगेट बनाया है। प्रसाद के बहाने कांवडिय़े गांजा का कश लेते हैं.
हर महीने 30 क्विंटल गांजे की खपत
राजस्व आसूचना निदेशालय यानी डीआरआई के अनुसार बनारस में नशे के कारोबार में कई अंतराज्यीय गिरोह सक्रिय हैं। यह गांजा, भांग, अफीम, हेरोइन, चरस का अवैध व्यापार कर रहे हैं। आए दिन इनकी गिरफ्तारियां भी होती हैं। एक आंकलन के अनुसार वाराणसी शहर में हर महीने करीब 30 क्विंटल गांजा और 50 किग्रा हेरोइन की खपत हो रही है। जबकि, हर रोज दस हजार लीटर से अधिक अवैध शराब की सेल होती है। भांग की खपत तो कई क्विंटल है। बिहार और बंगाल से आने वाले गांजे की खपत भांग के ठेकों पर होती है। जबकि, अवैध तरीके से अफीम और हेरोइन पुडिय़ों में बिकती है। हेरोइन की पुडिय़ा महिलाएं व बच्चे उपलब्ध कराते हैं। घाटों पर मौजूद साधु वेशधारी भी नशे की तस्करी में अहम भूमिका निभाते हैं.
काशी में कश आम बात
काशी में लगभग 30 के आसपास भांग की लाइसेंसी दुकानें हैं। भांग की इन दुकानों की आड़ में चोरी छिपे गांजा की बिक्री होती है। काशी के घाटों और रास्ते में कांवडि़ए कश खींचते मिल जाएंगे। घाट व घाट से सटी संकरी गलियों में नशे का सामान आसानी से मिल जाता है। कई कांवडि़ए तो सिर्फ कश लगाने के चक्कर में काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। काशी में इसे बाबा का प्रसाद मानकर इसका सेवन करने वालों को खोजने की जरूरत नहीं। काशी में चवन्नी, अठन्नी और रुपया गांजे के लिये कोड वर्ड के रूप में इस्तेमाल होता है.
गांजे का डंपिंग सेंटर बना बनारस
बम्पर कमाई व हल्की सजा होने के कारण इस नशे के कारोबार में अपराधी व व्हाइट कॉलर के लोग शामिल हैं। उन्हीं के इशारे पर उड़ीसा से गांजा लाकर बनारस में डम्प किया जाता है। इसके बाद यहां से दिल्ली, मुरादाबाद, मेरठ, उत्तराखंड व पंजाब तक गांजे की सप्लाई की जाती है.
रीफ्रेेशमेंट के लिए गांजा
युवा वर्ग तेजी से नशे की गिरफ्त में आ रहा है। इनमें गांजा को लेकर ज्यादा क्रेज है। लाइट नशा या रीफ्रेशमेंट के लिए गांजा सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। बीएचयू के आसपास इलाकों में अधिकतर युवा सिगरेट पीते दिखे जाएंगे। सिगरेट में गांजा भरा होता है। गंगा घाट किनारे भी बड़ी संख्या में युवा नशा करते दिख जाएंगे। इसके अलावा लॉज, होटल, रेस्टोरेेंट में धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल होता है.
गांजे में बंपर कमाई
उड़ीसा में एक किलो गांजे की कीमत तीन से चार रुपये होती है, लेकिन बाजार में आते ही कीमत पांच से छह गुना बढ़ जाती है। यही वजह है कि जरायम की दुनिया में रहने वालों ने हिरोइन, चरस, अफीम से दूरी बनाकर इस नशे को मुख्य कारोबार बना लिया है। हालांकि एक दशक पहले बनारस में अफीम व चरस का धंधा भी तेजी पर था, लेकिन कठोर सजा व पुलिस की सख्ती के चलते तस्करों ने दूरी बना ली। भांग की दुकानों पर चोरी-चुपके गांजा भी बेचा जाता है। जानकारी होने के बावजूद पुलिस कार्रवाई नहीं करती है। इसलिए गांजा बम्पर कमाई का जरिया बन गया है.