वाराणसी (ब्यूरो)। कहते है इस धरती पर जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु भी निश्चित है। सभी के आने और जाने का समय सिर्फ ईश्वर के हाथ में होता है। डॉक्टर तो सिर्फ जरिया बनते है। लेकिन इस कलयुग में इंसान जन्म के समय को भी बदलने में लग गया है।
पैरेंट्स तय कर रहे डेट
बनारस में बच्चों के जन्म का समय और तिथि अब डॉक्टर नहीं, बल्कि ज्योतिषि और उनके पैरेंट्स तय कर रहे हैं। सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में होने वाली सीजेरियन डिलीवरी के लिए मैरिड कपल्स पहले अपने पुरोहित से शुभ दिन व मुहूर्त की जानकारी लेते हैं। अगर पुरोहित निर्धारित तिथि से एक दिन पहले या कई दिन आगे का मुहूर्त या कोई विशेष दिन बताते हैं, तो कपल्स इसी डेट को प्राथमिकता देते हैं.
सभी को चाहिए 22 जनवरी
इन दिनों मामला कुछ अलग ही दिख रहा है। दरअसल आयोध्या में रामलला की प्राण को लेकर प्रेगनेंट वीमेन में अलग क्रेज दिख रहा है। 18 से 26 जनवरी तक की डेट पाने वाली तमाम ऐसी महिलाएं है, जो चाहती है कि उनके बच्चे का जन्म 22 जनवरी को हो। इसके पीछे मंशा सिर्फ इतना है कि उस दिन रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होगी और यह दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा। सोच ये भी है कि इस दिन जन्म लेने वाला उनका बच्चा मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पदचिन्हों पर चलेगा।
समझाने का असर नहीं
सरकारी अस्पतालों की तुलना में ऐसे मामले प्राइवेट हॉस्पिटल्स में ज्यादा आ रहे हैं। यहां की गाइक्नोलॉजिस्ट की माने तो उनके पास ऐसे भी कपल्स आते हैं, जो डिलीवरी की तिथि में एक सप्ताह से 10 दिन तक आगे-पीछे फेरबदल कराने दबाव डालते हैं। उनका कहना है कि पहले नार्मल डिलीवरी होती थी, लेकिन अब सी-सेक्शन यानि ऑपरेशन से डिलीवरी अधिक होने लगी हैं। इस वजह से कपल्स का मानना है कि जब सिजेरियन ही होना है तो डेट आगे पीछे हो तो क्या हर्ज है। मगर ये मां और बच्चे दोनों के लिए कितना खतरनाक है ये शायद ये कपल्स समझ नहीं पा रहे।
मेडिकल थ्योरी के खिलाफ
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ। नेहा सिहं का कहना है कि हर कपल्स की चाहत होती है कि उनका बच्चा शुभ घड़ी में ही जन्म ले। कुछ लोग डिलीवरी के लिए पुरोहित से मुहूर्त निकलवा कर आते हैं वे मानसिक रूप से इतना तैयार होते हैं कि उन्हें डॉक्टर के समझाने का भी कोई असर नहीं पड़ता है। फिर हम इसके लिए तैयार नहीं होते हैं। कपल्स को यही सलाह दी जाती है कि स्वाभाविक रूप से जो स्थिति बनती है उसी के अनुसार ही डिलीवरी होगी। क्योंकि समय से पहले या बाद में डिलीवरी कराना मेडिकल थ्योरी के खिलाफ है।
दोनों के लिए खतरनाक
एक्सपर्ट की माने तो बच्चे की डिलीवरी एक शारीरिक प्रक्रिया है। उसे समय से पहले या बाद में करना मां और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। एसएस हॉस्पिटल-बीएचयू की गाइक्नोलॉजिस्ट डॉ। दीपा मिश्रा कहती है कि ऑपरेशन के समय में कुछ घंटे का फेरबदल तो चल जाता है, लेकिन बहुत जल्दी या देर नहीं किया जा सकता है। उनकी ओर से मरीजों को यही सलाह दी जाती है कि वे डॉक्टर द्वारा निर्धारित समय पर ही डिलीवरी कराएं.
प्री-मेच्योर डिलीवरी गलत
सिटी के प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के अनुसार, उनके पास कुछ दंपती सोचकर आती हैं कि जब ऑपरेशन से ही बच्चे का जन्म होना है, तो एक-दो दिन पहले या बाद से क्या फर्क पड़ता है। ऐसी चाहत लेकर 26 जनवरी, 15 अगस्त, 11.11.11 या 12.12.12, 20. 20.20 जैसी दुर्लभ तिथियों पर सबसे ज्यादा लोग आए थे। कई दंपती प्री-मेच्योर (समय से पहले) डिलीवरी करवाने से नहीं डरते हैं। ऐसे भी दंपती होते हैं, जो ग्रहण के दौरान बच्चे के जन्म से बचना चाहते हैं.
इंतजार बेहतर विकल्प
एक रिसर्च के मुताबिक हम गर्भावस्था को 9 महीने तक चलने वाला मानते हैं। लेकिन आदर्श रूप से यह लगभग 10 महीने तक चलना चाहिए। इस शोध से पता चलता है कि अगर गर्भ में पलने के लिए कम से कम 39 सप्ताह का समय हो तो बच्चे स्वस्थ पैदा होते हैं। लेकिन अब प्री डिलीवरी का ट्रेंड बढ़ा है, रिसर्च से पता चलता है कि 1990 से 2000 के मध्य तक वैकल्पिक डिलीवरी की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई। चिकित्सकों का कहना हैं कि अगर जल्दी डिलीवरी कराने का कोई विशेष चिकित्सीय कारण है, तो इंतजार न करना ही बेहतर है। लेकिन अगर माँ और बच्चा स्वस्थ हैं, तो बच्चे को जल्दी जन्म देने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि अर्ली डिलीवरी कराने से स्थायी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। लोगों को लगता है कि वे डिलीवरी का समय चुन सकते हैं। लेकिन सही मायने में होने वाला वह बच्चा, गर्भावस्था के आखिरी 4 हफ्तों में काफी तेज में विकास कर रहा होता है.
पनपता रहता शिशु
गर्भावस्था के 39 से 40 सप्ताह में, शिशु के मस्तिष्क का वजन 35 सप्ताह की तुलना में एक तिहाई अधिक होता है। फेफड़े और लीवर भी 39 सप्ताह तक विकसित होते रहते हैं और वे आखिरी कुछ सप्ताह बच्चे की त्वचा के नीचे वसा की परतों को बढऩे का समय देते हैं, जो जन्म के बाद शिशु को गर्म रखने में मदद करता है। रिसर्च से पता चला है कि गर्भधारण के 39 सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में गंभीर मेडिकल कॉम्लिकेशन जैसे हाई ब्लिडिंग, संक्रमण, सांस लेने और दूध पिलाने में समस्या का खतरा अधिक होता है । हालांकि हर गर्भावस्था में जोखिम होते हैं, अगर सभी अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं तो बच्चे के लिए जोखिम अधिक होता है।
इन डेट्स का क्रेज
26 जनवरी
15 अगस्त
02 अक्टूबर
11.11.11
12.12.12,
20. 20.20
इसके अलावा कोई विशेष जयंती
राजकीय महिला चिकित्सालय व अन्य सरकारी अस्पतालों में इलेक्टिव डिलीवरी तो होती ही नहीं है। यहां ज्यादातर वही केस आते हैं, जिनकी डेट फिक्स रहती है। प्लांटेड डिलीवरी सिर्फ सिजेरियन के केस में ही हो सकता है। लेकिन उसमें भी कुछ नियम कायदे हैं। चिकित्सकीय व्यवस्था के खिलाफ तो कोई भी नहीं जा सकता है। हां अगर डेट बेहद नजदीक है तो ज्यादा से ज्यादा 5 से 6 दिन ही रोक सकते हैं। इससे ज्यादा होने पर खतरा बढ़ सकता है.
डॉ। मनीषा सिंह सेंगर, एसआईएसी, राजकीय जिला महिला चिकित्सालय
शहरी महिलाओं में काफी जागरुकता आई है। लिहाजा, गर्भवती महिलाओं के खान-पान व रहन-सहन की विशेष देखभाल की जाती है। इससे गर्भ में बच्चों का वजन बढ़ जाता है। इसलिए ऑपरेशन करना पड़ता है। पहले से निर्धारित ऑपरेशन वाले मामले में दंपती अक्सर पूछते हैं कि हफ्ता 10 दिन आगे-पीछे डिलीवरी में फर्क तो नहीं पड़ेगा। ऐसी स्थिति में हम इसके लिए तैयार नहीं होते हैं। यही सलाह दी जाती है कि स्वाभाविक रूप से जो स्थिति बनती है उसी के अनुसार डिलीवरी होगी।
डॉ। दीपा मिश्रा, स्त्री रोग विशेषज्ञ, एसएस हॉस्पिटल बीएचयू
शहर में मुहूर्त देखकर डिलीवरी कराने का प्रचलन बढ़ गया है। धार्मिक मान्यताओं के तहत बहुत से कपल्स शुभ मुहूर्त में डिलीवरी का प्लान करके आते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें यही सलाह दी जाती है कि सिजेरियन के मामले में एक-दो दिन डेट आगे पीछे पॉसिबल है, लेकिन लंबा गैप या समय से पहले या बाद में डिलीवरी कराना मेडिकल थ्योरी के खिलाफ है। कपल्स को इसके साइड इफेक्ट भी बताते हंै मगर लोग मानने को तैयार नहीं होते।
डॉ। नेहा सिंह, गाइक्नोलॉजिस्ट