वाराणसी (ब्यूरो)। अदुभत है जगन्नाथ जी का रथयात्रा मेला। मेला स्थल से लेकर प्रभु जगन्नाथ जिस रथ पर विराजमान हैैं, वह भी अपने आप में अविस्मरणीय है। जगन्नाथ जी का रथ तीन सौ साल से भी पुराना है। इस रथ को खींचने अब यूथ की संख्या काफी बढ़ गयी है। एक दशक पहले जहां रथ को खींचने के लिए कुछ लोग ही आते थे आज युवाओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। क्योंकि आज भी इस रथ में तीन सौ वर्ष पुरानी लकड़ी शामिल है.
नक्काशीदार है प्रभु का रथ
प्रभु जगन्नाथ जी का रथ 1802 में नेपाली साखू की लकड़ी से तैयार किया गया था। इसके बाद 1966 में रथ की लकडिय़ां कुछ जगह खराब होने लगी। उस समय रथ की मरम्मत कर शीशम की लकड़ी से बनाया गया। शीशम की लकड़ी के साथ नेपाली साकू की लकडिय़ों को भी बीच-बीच में लगाया गया। आज भी प्रभु जगन्नाथ के रथ में तीन सौ साल पुरानी नेपाली साखू की लकडिय़ां देखने को मिलती है। उस समय जिस कारीगर ने नक्काशी दार रथ को तैयार किया था वैसे कारीगर अब नहीं रह गए।
घोड़े का मुख क्रोमियम
रथ के आगे जो घोड़ा लगा है उसका मुख क्रोमियम से बनाया गया जो जिसमें चांदी का प्रयोग किया गया। आज भी घोड़े की मुख चमकता है। सारथी काष्ठ की लकड़ी से बनाया गया है। 1802 में जगन्नाथ मेले की शुरुआत पं। बेदीराम ने की थी। उन्होंने ही प्रभु जगन्नाथ के रथ को नेपाली साकू के लकड़ी से बनवाया था।
ध्वज पताका चांदी का
प्रभु जगन्नाथ जिस पर रथ पर विराजमान उसका ध्वजा पताका चांदी से तैयार किया गया। वह भी तीन सौ वर्ष से पुराना है लेकिन आज भी वह चमकता है। मेले के आयोजक दीपक शापुरी बताते हैं कि प्रभु जगन्नाथ जी का रथ खींचने के लिए काफी दूर-दराज से आते है। इसमें अब तो यूथ की संख्या काफी बढ़ गयी है.
तीन दिन में पांच लाख की भीड़
मेला स्थल इतना अद्भत है कि तीन दिन में पांच लाख लोगों की भीड़ आती है। इसमें सबसे ज्यादा यूथ रहते हंै। प्रभु जगन्नाथ जी का दर्शन भी करते हैं और यहां की पारंपरिक चीजें जैसे ननखटाई की भी खरीदारी करते हैं.
तीन दिवसीय रथयात्रा का श्रीगणेश
बाबा विश्वनाथ की नगरी में भगवान विष्णु के स्वरूप जगन्नाथ के भइया बलभद्र व बहन सुभद्रा संग रथ पर विराजमान होते ही तीन दिवसीय रथयात्रा मेला का श्रीगणेश मंगलवार से हो गया। पीताम्बर वेष में भगवान जगन्नाथ ने सकुटुम्ब भक्तों को अपने दर्शन दिए और उन्हें धन्य किया। भक्तों ने भगवान जगन्नाथ के चरणों में तुलसीदल की माला, सुगंधित बेला, पुष्पों की लड़ी और फल श्रद्धाभाव से धरी। शीश नवाते, कामना कहते और लगे हाथ अपना दुख-सुख भी सुनाते श्रद्धालु प्रसन्नचित होते.
पीताम्बर में सजे प्रभु जगन्नाथ
आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितिया, मंगलवार को प्रात: 05:11 बजे पं। राधेश्याम पांडेय ने मंगलाआरती के साथ मेला आरंभ किया। इससे पूर्व रथयात्रा स्थित पं। बेनीराम बाग में भोर 03:00 बजे पुजारी पं। राधेश्याम पाण्डेय के आचार्यत्व में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्रजी के विग्रहों का पीत पीताम्बर पहनाकर पीला गेंदा और गुलाब के फूलों से भव्य शृंगार किया गया।
14 पहियों वाले रथ पर विराजमान
भगवान को 14 पहियों वाले सुसज्जित रथ पर विराजित कर, 20 फीट ऊंचे शिखर तक भव्य शृंगार किया गया। जैसे ही रथमंदिर का पट खुला तो प्रभु मूरत के दर्शन पाने को भक्तों का मन आतुर हो चला। बेला के फूलों से सजे मन्दिर के आकार वाले रथ की छतरी एवं शिखर दूर से ही हर किसी को आकर्षित कर रहा था। दर्शनार्थियों की भीड़ सुबह के बाद शाम से रात तक ज्यादा थी.
रथ खींचने को मची होड़
चूंकि भगवान भ्रमण पर निकलते हैं ता उनका रथ खींचने की मान्यता रही है। इसी कड़ी में मेला के पहले दिन प्रभु का रथ दो फीट खिचाया। प्रभु रथ खिचने के लिए भक्तों में होड़ मची रही। मंगला आरती के बाद भक्तों ने रस्सी के सहारे अष्टकोणीय रथ को खींचा। रथ खींचने का क्रम दूसरे और तीसरे दिन भी जारी रहेगा.