जमीन पर तेज भागने वाले जानवरों में नीलगाय भी शामिल है। चोलापुर के बभियांव गांव का 15 साल का एक लड़का इसकी पूंछ पकड़कर 20 गांवों का चक्कर लगा आया। अंतत: नीलगाय थक कर गिर गयी। जिसने इस वाकये को देखा दांतो तले अंगुली दबा ली। उस लड़के के दमखम और रफ्तार का किस्सा सालों बाद भी चोलापुर एरिया के हर गांव के हर शख्स की जुबान पर है। यही लड़का रामसिंह आज देश के सर्वश्रेष्ठ लम्बी दूरी के धावकों में शामिल है। अपने दमखम के दम पर ही लंदन ओलम्पिक का टिकट कटा लिया है.

Indian Athlete Ram Singh from Varanasi in 2012 London Olympics

स्कूल में निखरी प्रतिभा
रामसिंह की जिंदगी की शुरुआत मुम्बई से हुई। पिता कन्हैया यादव पत्नी और बेटों दलसिंगार, लल्लन, रामसिंह और बेटी कमला के साथ जोगेश्वरी में रहते थे। यहीं छोटा-मोटा काम कर जीवन-यापन करते थे। परिवार ने अलग कर दिया तो पत्नी बच्चों को साथ लेकर बभियांव लौट आए। इस समय रामसिंह की उम्र 12 साल थी। इनका एडमिशन क्लास सेवेंथ में हथियर स्थित इंटर कालेज में कराया गया। रामसिंह रनिंग काफी अच्छी करता था। उसका सपना था कि वह दुनिया का सबसे अच्छा धावक बने। यहां दौडऩे के लिए स्कूल का ग्र्राउंड मिल गया और कोच के रूप में मिले टीचर प्रेम शंकर तिवारी।

सपनों को लगा पंख
रामसिंह की स्टेपिंग और स्पीड काफी अच्छी थी। प्रेमशंकर तिवारी ने इसे देखा तो उसे तराशना शुरू कर दिया। रामसिंह ने धीरे-धीरे अपनी प्रैक्टिस बढ़ायी और सुबह और शाम मिलाकर सात से आठ घंटे रियाज करता था। इस दौरान वह अपने गांव से पाण्डेयपुर तक की दौड़ लगाता। सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसके बाद भी उसे थकान नहीं होता और पसीना नहीं आता था। उसकी स्टेमिना का हर कोई कायल था। स्कूल में पढऩे के दौरान उसने इंटर स्कूल लेवल की प्रतियोगिता में अपना सिक्का जमाया। फिर स्टेट लेवल सब जूनियर और जूनियर कम्पटीशन में कामयाबी हासिल की। इसके बाद तो वह सफलता की सीढिय़ां चढ़ता गया। स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद वर्ष 2001 में आर्मी ज्वाइन कर ली। इन्होंने सिंगापुर में हुई वल्र्ड कैडेट आर्मी मैराथन में भाग लिया और जीत हासिल की। वह दुनिया की नजरों में आ गए। इसके बाद ही इंदिरा मैराथन, दिल्ली मैराथन, मुम्बई मैराथन में जीत का पताका लहराया। देश और दुनिया की नजरों में रामसिंह सितारा बन चुके थे।

चोखा-रोटी खाकर करता प्रैक्टिस
नरसिंह की मां बताती हैं कि मुम्बई से लौटने के बाद इकनामिकल कंडीशन अच्छी नहीं थी। रामसिंह जब प्रैक्टिस कर लौटता तो उसे एक गिलास दूध भी नहीं दे पाती। घर में मौजूद चोखा और रोटी खाकर वह फिर से प्रैक्टिस पर निकल जाता था। खेल में उसका कॅरियर काफी अच्छा दिख रहा था मगर रामसिंह की स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद सिर्फ खेल नहीं हो सकता था। अपनी रनिंग के दम पर ही रामसिंह ने आर्मी में नौकरी हासिल कर ली। इसके बाद घर की आर्थिक स्थिति तो ठीक हो गयी लेकिन लगा रामसिंह का कॅरियर अब खत्म हो गया। उसकी मेहनत उसके साथ थी। उसने यहां भी अपने लिए रास्ता बना लिया और आज ओलम्पिक के सफर पर है.

बखूबी निभाते हैं जिम्मेदारी

नौकरी की शुरुआत के साथ ही रामसिंह की शादी गाजीपुर की उर्मिला यादव के साथ हुई। इनके तीन बच्चे अमित, अंकित और आलोक हैं। आलोक एक महीने का है। ऊर्मिला कहती हैं कि देश की जिम्मेदारी निभा रहे रामसिंह परिवार की जिम्मेदारी भी उतनी ही खूबी से निभाते हैं। नौकरी और प्रैक्टिस में बिजी होने की वजह से पत्नी और बच्चे गांव पर ही फैमिली के साथ रहते हैं। रामसिंह चाहे जितने बिजी हों दिन में दो से तीन बार पत्नी से बात जरूर करते हैं। गांव पर फैमिली के मकान का निर्माण करा रहे हैं। पास ही धरसौना मार्केट में माता-पिता के लिए एक मकान बनवाया दिया है।

Indian athlete Ram Singh family wishing him good luck

गांव को चाहिए गोल्ड
रामसिंह के ओलम्पिक जाने की जानकारी होते ही गांव में खुशी छा गयी। सबका सीना गर्व से चौड़ा हो गया। अब गांव का बच्चा-बच्चा उनसे गोल्ड मेडल की डिमांड करता है। गांव के चट्टी से लेकर चौपाल तक जहां लोग जमा होते हैं बस यही बात होती है। हर कोई रामसिंह को अपने तरीके दुआ रहा है और उनकी हौसला अफजाई कर रहा है। ग्राम देवता दैत्राबीर बाबा को सुबह शाम भोग लगाया जा रहा है। उनसे मन्नत मांगी जा रही है कि रामसिंह लंदन में सबको पछाड़ दे।

Report by: Devendra Singh

Ram Singh के घर और फैमिली की इमेजेस देखने के लिए नीचे स्क्रॉल करें

Indian athlete Ram Singh Yadav house

Ram Singh Yadav mother sitting in shop

 

Indian athlete Ram Singh Yadav father

Indian athlete Ram Singh Yadav children