नरसिंह यादव के परिवार और गांव का वीडियो देखें
हमरी ये आस तुम्ही से है
चोलापुर में लगभग हर मंदिर पर भजन-कीर्तन का दौर जारी है। मस्जिद में दुआएं हो रही हैं। कोई दैत्राबीर बाबा तो कोई पीर बाबा के पास जा रहा है। यहां के पहलवान नरसिंह यादव और धावक रामसिंह यादव पर बड़ी जिम्मेदारी है। ये देश का झण्डा उठाये ओलम्पिक में शामिल होने लंदन के सफर पर निकल चुके हैं। हर नजर इनसे गोल्ड की उम्मीद लगाए है। मां-बाप, गांव से लेकर सभी के हाथ दुआओं के लिए उठे हैं।
सबको यकीन है कि यह दुआ खाली नहीं जाएगी। दोनों गोल्ड मेडल हासिल करेंगे। गांव से लेकर लंदन तक का उनका सफर अंगारों भरा रहा है। बदन में ताकत और जिगर में हौसला है। इसी माहौल को कैमरे में कैद करने आई नेक्स्ट टीम इनके गांव पहुंची। हर ओर जोश और जज्बात ही नजर आया।
नरसिंह को बचपन से ही था पहलवानी का शौक
आई नेक्सट की टीम सबसे पहले पहुंची नरसिंह यादव के गांव नीमा में। यहां इनके पिता पंचम यादव अपना मकान बनवाते दिखे। हमारे आने की जानकारी हुई तो हमारे पास आए और नरसिंह के बचपन से लेकर लंदन तक के सफर की पूरी कहानी बतायी। नरसिंह यादव की कर्मस्थली मुम्बई बनी। दूध का कारोबार करने वाले पंचम यादव अपनी पत्नी भूलना देवी, बेटे विनोद, नरसिंह तथा बेटियां बिंदु, इंदू के साथ मुम्बई के उपनगर जोगेश्वरी में रहते थे। खुद पंचम भी पहलवानी का शौक रखते थे। जोगेश्वरी के घासवाला तबेला स्थित अखाड़े में जोर-आजमाइश करते थे। पंचम बेटों को भी साथ ले जाते और कुश्ती के दांव-पेंच सिखाते।
फिरहिरी में देखी प्रतिभा
पंचम को बेटों में अच्छे पहलवान बनने के गुण नजर आए। खासकर नरसिंह में। अखाड़े में इनकी चपलता को देखकर उसे नाम दिया फिरहिरी। बेटों के लिए टे्रनर की तलाश शुरू की। सबसे पहले तराशने की जिम्मेदारी भरत पहलवान को दी। इन्होंने दोनों को निखारा। साथ ही मुम्बई में होने वाली हर कुश्ती में लेकर जाते। दोनों ने हर कुश्ती जीती। कुश्ती के ही दम पर विनोद को रेलवे में टीसी की नौकरी मिल गयी। नरसिंह भी कुश्ती को कॅरियर बनाने के लिए पड़ोस के सबअर्ब कांदीवली स्थित साई हॉस्टल में पहुंच गए। यहां उन्हें तराशने का काम किया कोच जगमाल ने। नरसिंह हर दिन सफलता की सीढ़ी चढऩे लगे।
गांव से बना रहा जुड़ाव
नरसिंह की फैमिली का गांव से जुड़ाव रहा। साल में एक बार सभी गांव आते। पिता खेती में बिजी होते और नरसिंह अपनी प्रैक्टिस में। वह गांव के अखाड़े में रियाज करता था। साथ ही घर से दस किलोमीटर दूर महमूदपुर के अखाड़े भी पहुंचता था। अपने गांव के पहलवानों के पारम्परिक तरीकों और मुम्बई की टेक्निक के बीच अच्छा तालमेल करता था। गांव में आने के बाद वह रियाज के लिए अच्छे पहलवान खोजता। दूसरी तरफ गांव के अच्छे पहलवान भी उससे दो-दो हाथ करने को बेताब रहते थे।
सिर्फ एक बार देखी कुश्ती
नरसिंह महाराष्ट्र से लेकर देश और दुनिया के कोने-कोने में जाकर कुश्ती लड़ता रहा लेकिन पिता पंचम ने सिर्फ एक बार उसकी कुश्ती देखी है। दस साल पहले अंधेरी में एक कुश्ती हुई। नरसिंह के साथ लड़ रहा पहलवान कमजोर नहीं था। नरसिंह ने उसे पटखनी देने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सका। पंचम चिल्ला-चिल्लाकर उत्साह बढ़ाते रहे। नरसिंह ने पॉइंट के साथ कुश्ती जीत ली। पंचम को आज भी याद है कि जब वहां मौजूद दर्शक नरसिंह को कंधे पर उठाकर जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। पंचम अक्सर अपने कारोबार में रहते थे। इसके चलते कभी कुश्ती देखने का समय नहीं मिला। अब सारा कारोबार छोड़कर पत्नी के साथ गांव लौट आए हैं। यहां पैतृक घर के अलावा एक नया घर बनवा रहे हैं। अब पूरा जीवन यहीं गुजारने की इच्छा है।
बेटों को बादाम देती थी मां
फैमिली बड़ी लेकिन इनकम छोटी थी। मगर अपने बेटों के लिए नरसिंह की मां कोई कसर नहीं छोड़ती थीं। वह अपना पेट काटकर उनके लिए बादाम खरीद कर लाती थीं। पीस कर रखती थीं। बेटे रियाज करके आते तो दूध के साथ देती थीं। नरसिंह के साई हॉस्टल में होने के दौरान पंचम भी रोज उसे दूध पहुंचाते थे। बेटों को फैमिली की परेशानी का पता था। पंचम बताते हैं कि नरसिंह कई बार एक दिन में सात-आठ जोड़ कुश्ती लड़ता और बदले में बर्तन आदि जीत कर लाता था। उसके मन में था कि इससे हमारी फैमिली को हेल्प होगी। विनोद के रेलवे में नौकरी मिलने के बाद आर्थिक हालत में सुधार हुआ।
दुआ के लिए उठे हर हाथ
नीमा गांव में इन दिनों हर कोई भगवान की शरण में है। नरसिंह के मां-बाप दिन रात भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि जिस तरह उनके बेटे ने हर कुश्ती जीती है वैसे ही वह लंदन ओलम्पिक में भी जीत का परचम फहराये। नीमा गांव के अखाड़ों के पहलवान इकट्ठे होकर अपने ईष्टदेव को मना रहे हैं। गांव की महिलाएं दैत्राबीर बाबा से मन्नत मांग रही हैं। गांव में शाम को भजन-कीर्तन हो रहा है। हर कोई बस एक ही दुआ कर रहा है कि गांव का बेटा नरसिंह लंदन ओलम्पिक में गोल्ड मेडल हासिल करे।