वाराणसी (ब्यूरो)। भारत में पहली बार बीएचयू में कोल बायोमिथेनाइजेशन पर रिसर्च शुरू हुआ है। अमेरिका और चीन के बाद अब भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश होगा, जो कोयले के बायो मिथेनाइजेशन परियोजना पर काम करेगा। माइक्रोब्स (जीवाणुओं) का इस्तेमाल करके कोयले को प्राकृतिक तरीके से मिथेन यानी कि कम हानिकारक या पॉल्यूटेड कंटेंट में बदल दिया जाएगा। इस तकनीकी से उत्सर्जित होने वाली गैस सीओ2 और ग्लोबल वार्मिंग में काफी कमी आ जाएगी। बायो मेथेनाइजेशन के बाद निकला ईंधन कोयले से ज्यादा कैपेसिटी वाला होगा। इस परियोजना पर स्टडी करने वाले जियोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रो। प्रकाश के। सिंह और बॉटनी डिपार्टमेंट की प्रो। आशालता सिंह ने लैब में ही रिसर्च की शुरुआत कर दी है। इनका मानना है कि इन-सीटू (प्राकृतिक और मूल रूप में जो कोयला पृथ्वी तल में मौजूद है), उसमें ही बायो मिथेनाइजेशन किया जा सकता है।
लैब में खदानों जैसे वातावरण क्रिएट करेंगे
कोयले का बायोमिथेनाइजेशन, क्लीन एनर्जी की एक नई अवधारणा है। इसे दुनिया में ज्यादा खोजा या शोध नहीं किया गया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि बीएचयू में स्टडी के दौरान, एनारोबिक चैंबर की मदद से लैब में एक इन-सीटू (प्राकृतिक और मूल रूप में जो कोयला पृथ्वी तल में मौजूद है) तरीके का वातावरण क्रिएट किया जाएगा। यहां प्रयोग के लिए एनारोबिक सूक्ष्म जीवों का इस्तेमाल किया जाएगा, जो कि कोयले को मिथेन में बदलेंगे। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की सफलता न केवल फ्यूचर रिसर्च के रास्ते खोलेगी, बल्कि ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में बड़ा मुकाम भी हासिल करेगी।
सीएमपीडीआई की टीम ने किया कैंपस का दौरा
बीएचयू को यह प्रोजेक्ट कोयला मंत्रालय के सीएमपीडीआई (सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट) द्वारा दिया गया है। सीएमपीडीआई के वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम ने बीएचयू का दौरा भी कर लिया है। प्रो। आशा लता सिंह, प्रो। प्रकाश के। सिंह और उनकी शोध टीम के साथ बायोमेथेनाइजेशन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा भी की। यह रिसर्च टीम जैविक और रासायनिक विधियों का उपयोग करके सल्फर युक्त कोयले के डीसल्फराइजेशन पर भी काम कर रही है। यह प्रोजेक्ट डीएसटी-एसईआरबी द्वारा दिया गया है.