वाराणसी (ब्यूरो)। लड़कों की संख्या ज्यादा और लड़कियों की संख्या कम होने की फिक्र करने वाले लोगों के लिए ये गुड न्यूज है। अब वाराणसी डिस्ट्रिक्ट में इन दोनों के बीच में बहुत ज्यादा का अंतर नहीं रह गया है। क्योंकि पिछले पांच साल से बेटियों ने लैंगिकता को संभाले रखा है। एक दौर था जब धर्म नगरी काशी में जन्म लेने वाले बेटों की तुलना में बेटियों की संख्या में काफी अंतर पाया जाता था.
पहले था काफी अंतर
कभी 1000 हजार बेटों पर मात्र 850 से 900 बेटियां ही होती थी। इन दोनों जेंडर की खाई को पाटने के लिए सरकार से लेकर हेल्थ डिपार्टमेंट तक ने जो मेहनत की है, उसका नतीजा अब दिखाई देने लगा है। बेटे और बेटियों के बीच बनी ये खाई भरती नजर आ रही है। बेटियों के जन्म दर की करें तो इस साल बेटियां बेटों के बराबरी पर तक पहुंच गई हैं.
घट गया अंतर
स्वास्थ्य विभाग की ओर से हेल्थ इनफॉर्मेशन सिस्टम के पोर्टल पर बालक-बालिका के जन्मदर के आंकड़े वर्तमान की स्थिति बता रहे हैं। पिछले तीन सत्र के आंकड़ों पर गौर करें तो सत्र 2023-24 में बेटा और बेटी बराबरी पर हैं। इस सत्र (अप्रैल से मार्च 2024 तक) में अब तक 9 महीने में दिसंबर 2023 तक कुल 29963 बेटों का जन्म हुआ, खास बात ये है कि इतनी ही संख्या बेटियों की भी हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से किए गए पिछले दो सर्वे में अगर 1000 बालक के अनुसार बालिकाओं के आंकड़े को देखा जाए तो 2015-16 और 2019-21 में हुए सर्वे में संख्या प्रति एक हजार बेटों पर 951 बेटियां हैं। इस बार भी यह संख्या बराबरी पर पहुंच गई है.
अब बच रहीं बेटियां
केन्द्र सरकार के बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ अभियान की सफलता सिर्फ देश के अन्य राज्यों या शहरों में नहीं बनारस में भी दिखाई दे रहा है। सरकार के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से अभियान चलाते हुए बेटियों के जन्म को लेकर लोगों को जागरुक किया जा रहा है। लगातार चल रहे अभियान और सफलता के शिखर पर पहुंच रही बेटियों को देखकर लोगों में काफी जागरुकता आई भी है। अफसरों का कहना हैं कि लोग अब बेटियों को बेटों से कम नहीं समझ रहे हैं.
जन्म पर मनाते खुशी
इसी का नजीता है कि अब घरों में बेटों के जन्म लेने पर जिस तरह से खुशियां मनाई जाती है, उसी तरह की खुशी बेटी के जन्म पर भी मनाएं जा रहे हैं। यहां अब बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं समझा जा रहा है। अब वो समय नहीं रहा कि बेटी के जन्म से पहले ही उसे मार दिया जाए। अब कोई अवॉर्सन की सोचता तक नहंी है। कई ऐसे परिवार भी है, जो चाहते है कि उनके घर में पहले बेटी ही जन्म ले। लोगों में इस तरह की बन रही सोच का ही नतीजा है कि अब बेटियां बच भी रही है और पढ़ भी रही है.
बेटियों का जन्मदर बेटों के बराबर होना हमारे लिए फक्र की बात है। इसमें कोई दो राय नहंी है कि बेटी बचाओं के उद्देश्य से चलाई जा रही योजनाएं सफल हो रही है। इसे लेकर लोग जागरूक हुए हैं और उसका लाभ भी ले रहे हैं। हर साल जन्म लेने वाले बच्चों (बेटे-बेटी) का रिकार्ड एचएमआईएस पोर्टल पर भी अपलोड कराया जाता है, ताकि इसकी जानकारी सभी को मिलती रहें.
डॉ। संदीप चौधरी, सीएमओ
एनएफएचएस में 1000 बेटों पर बेटियों का जन्म
2015-16 2019-21
भारत 991 1020
उत्तर प्रदेश 995 1017
वाराणसी 951 951
बनारस जिले का जन्म दर
वर्ष बेटा बेटी
2021 27967 25383
2022 31591 28723
2023 29963 29963