वाराणसी (ब्यूरो)। बाबा विश्वनाथ धाम के बाद जगत के पालनहार श्री आदिकेशव का दरबार भी अब भव्य दिखेगा। घाट से लेकर पूरे मंदिर परिसर को संवारने का कार्य तेजी से चल रहा है। 70 लाख रुपए की लागत से टूरिज्म डिपार्टमेंट घाट की सीढिय़ां, मढिय़ां और श्री आदिकेशव मंदिर के परिसर को निखारने जा रहा है। सुंदरीकरण होने के बाद टूरिज्म डिपार्टमेंट द्वारा इसे वेबसाइट से कनेक्ट किया जाएगा.
बनाए जा रहे 4 पिलर
आदि केशव घाट पर सुंदरीकरण के तहत चार पिलर बनाए जा रहे हैं। इनमें से दो पिलर बनकर तैयार हो चुका है। गुलाबी पत्थर से बने पिलर को नक्काशीदार तैयार किया गया है। मंदिर के द्वार के दोनों तरफ पिलर बन जाने से मंदिर की भव्यता और बढ़ गई है.
खर्व विनायक भी चमके
आदिकेशव से सटे खर्व विनायक मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया जा रहा है। मंदिर के चारों तरफ रंग-रोगन के साथ ही पेंटिंग भी की जा रही है। खर्व विनायक मंदिर के पूरे परिसर को भी चमकाया जा रहा है। चिंताहरण गणेश मंदिर को भी निखारा जा रहा है.
लाल पत्थर का सिंहासन
श्री आदिकेशव मंदिर के परिसर में लाल पत्थर से भव्य सिंहासन भी बनाया गया है। परिसर में दो सिंहासन बैठने के लिए बनाया गया है। नक्काशीदार सिंहासन देखने में काफी खूबसूरत लग रहा है।
भव्य दिख रहा खिड़किया घाट
खिड़किया घाट देश का पहला ऐसा गंगा तट होगा, जहां सौंदर्य के साथ प्राकृतिक छटा की अनुभूति मिलेगी। गंगा घाट से लेकर मुख्य मार्ग तक घाट के चारों तरफ अलग तरह के पौधे लगाए जाएंगे। इसके लिए वन विभाग को पौधों के चयन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। घाट का निर्माण के होने के बाद घाट किनारे पौधे लगाए जाएंगे.
आदिकेशव से कनेक्ट होगा घाट
खिड़किया घाट को आदिकेशव घाट से कनेक्ट किया जाएगा। दोनों घाटों के बीच लिंक पाथवे बनेगा। किनारे पौधे लगाए जाएंंगे। पाथवे बन जाने से पंचकोशी यात्रा में थोड़ी दूर आ रही बाधा भी खत्म हो जाएगी। साथ ही आदिकेशव घाट तक लिंक होने से वहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.
श्रद्धालुओं को जोड़ा जाएगा
श्री आदिकेशव मंदिर का जीर्णोद्धार होने के बाद श्रद्धालुओं को मंदिर से कनेक्ट किया जाएगा। अधिक से अधिक वहां श्रद्धालु जाएंगे तो मंदिर का विकास होगा। क्योंकि काशी में अभी तक सिर्फ लोग बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने आते है, आदि केशव के बारे में बहुत कम ही लोग जानते है। जबकि श्री आदिकेशव मंदिर भी काफी प्राचीन मंदिर है.
आदिकेशव मंदिर का इतिहास
मान्यता है कि ब्रह्मालोक निवासी देवदास को शर्त के अनुसार ब्रह्माजी ने काशी की राजगद्दी सौंप दी थी। इस कारण देवताओं को मंदराचल पर्वत जाना पड़ा। शिवजी इससे बहुत व्यथित हुए, क्योंकि काशी उनको बहुत प्यारी थी। तमाम देवताओं को उन्होंने काशी भेजा ताकि काशी उन्हें वापस मिल जाए लेकिन जो देवता यहां आते यहीं रह जाते। अखिर हारकर उन्होंने भगवान विष्णु और लक्ष्मी से अपना दर्द बताया। भगवान विष्णु, लक्ष्मी जी के साथ काशी में वरुणा व गंगा के संगम तट पर आए। यहां विष्णुजी के पैर पडऩे से इस जगह को विष्णु पादोदक के नाम से भी जाना जाता है.
अपनी मूर्ति की स्थापना की
यहीं पर स्नान करने के उपरांत विष्णुजी ने तैलेक्य व्यापनी मूर्ति को समाहित करते हुये एक काले रंग के पत्थर की अपनी मूर्ति स्थापना की और उसका नाम आदिकेशव रखा। इसके बाद ब्रह्मलोक में देवदास के पास गये और उसको शिवलोक भेजा और शिवजी को काशी नगरी वापस दिलाई। कहा- अविमुक्त अमृतक्षेत्रेये अर्चनत्यादि केशवं ते मृतत्वं भजंत्यो सर्व दु:ख विवर्जितां, अर्थात अमृत स्वरूप अवमुक्त क्षेत्र काशी में जो भी हमारे आदिकेशव रुप का पूजन करेगा, वह सभी दु.खों से रहित होकर अमृत पद को प्राप्त होगा.
70 लाख रुपए की लागत से श्री आदिकेशव मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। इससे मंदिर में टूरिस्टों की संख्या बढ़ेगी, क्षेत्र का विकास होगा.
आरके रावत, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी