वाराणसी (ब्यूरो)घर से स्कूल का बस से सफर सबसे सेफ माना जाता है, बशर्ते बसों में मानकों का पालन हो और सुविधा-सुरक्षा के सारे मापदंड पर बसें खरी उतरती होंमगर अपने बनारस की स्कूली बसों में बच्चों को क्षमता से अधिक बैठाया जाता हैन जाने कितनी कंडम बसें दौड़ रही हैंदैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम गुरुवार को शहर में निकली तो बसों की बेबसी की कहानी सामने आईमड़ौली से निकलने वाली 38 सीटर स्कूल बस में 58 बच्चे सवार थेलहरतारा में प्लाइ ओवर के पास दौड़ रहीं बसों के पीछे कोई डिटेल नहीं थीकई जगह बसें कंडम नजर आ रही थींबस के पीछे का हिस्सा पूरी तरह ब्लैंक थाड्राइवर का नाम, हेल्प लाइन नंबर समेत कोई भी जानकारी नहीं थीबस पर नाम किसी और स्कूल का लिखा था, लेकिन अंदर बच्चे किसी और स्कूल थेयह तो एक नमूना हैपिछले दिनों एक स्कूल की खटारा बस वीडियो वायरल होने के बाद सीज हुई थीइस तरह की बेबस बसें सैकड़ों की संख्या में दौड़ रही हैं.

50 फीसदी बसें मानक नहीं करतीं पूरा

बनारस में बड़े और नामी स्कूलों की संख्या 50 से अधिक हैलगभग सभी स्कूलों के पास अपनी बसें हैं, कुछ स्कूल तो अपनी खुद की 200-200 बसें चलाते हैंपड़ताल के दौरान 50 फीसद से अधिक स्कूली बसों में मानक के अनुसार सुरक्षा के इंतजाम नहीं दिखेशासन का आदेश है कि स्कूली बसों में विंडो के साथ जाली, जीपीएस, फस्र्ट एड बॉक्स के साथ एक हेल्पर भी होना चाहिए, लेकिन अधिकतर बसों में यह चीजें नहीं दिखीं.

पंजीकृत से तीन गुना दौड़ रहीं बसें

वाराणसी के हर गली-मुहल्ले में निजी स्कूल दिख जाएंगे, लेकिन ठीक-ठाक बच्चों की संख्या वाले स्कूलों की संख्या करीब 200 हैइन स्कूलों की बसों की संख्या करीब सात हजार है, लेकिन आरटीओ में महज 2500 ही बसें ही पंजीकृत हैंइसमें महाविद्यालय की बसें भी शामिल हैंखास बात ये है कि ज्यादातर बस ड्राइवरों के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं होतेऔर ही वाहन चलाने का अधिक अनुभव हैये वाहन पुलिस थाना, ट्रैफिक पुलिस चौकी, परिवहन विभाग के आगे से होकर गुजरते हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं हो पाती.

बसों की निर्धारित दूरी का उल्लंघन

कुछ ही बड़े निजी स्कूलों की बसों के रेट तय हैं, जो दूरी के हिसाब से निर्धारित हैंजानकारी करने पर पता चला कि स्कूलों की ओर से कम से कम 1000 तो अधिकतम 3000 रुपए तक बस फीस ली जा रही हैनियमों के अनुसार शहर में 10 किमी और बाहरी इलाकों में 20 किमी की परिधि के अंदर ही बच्चों को लाने-ले जाने के लिए बसें जा सकती हैं, लेकिन यहां पर 25 से 30 किमी तक बच्चों को लेने के लिए बसें भेजी जाती हैंकुछ स्कूल ऐसे भी हैं, जिनकी बसें नहीं है, लेकिन उनके नाम पर अवैध तरीके से बसों का संचालन हो रहा है

अभिभावक नहीं करते आपत्ति

वाहनों में अधिक बच्चों को बैठाकर परिवहन करने के बावजूद अभिभावक न तो चालकों से टोका-टोकी करते हैं और न ही स्कूल प्रशासन से शिकायत करते हैंबस में जगह नहीं होने पर ड्राइवर खुद अपनी सीट के दोनों तरफ बच्चों को बैठाने के साथ खड़ा कर लेते हैं.वाहनों के रवाना होने के दौरान कई बच्चे भागते हुए चढ़ते हैं तो कई गेट पर खड़े रहते हैंशहर सहित आसपास क्षेत्र में संचालित निजी स्कूलों में ये हालात हरदम देखे जा सकते हैं.कई जगहों पर कंडक्टर छोटे बच्चों को रोड पर उतारकर आगे बढ़ते दिखते हैंकई वाहन इतने कंडम हैं कि सड़क पर चलते-चलते बार-बार बंद हो जाते हैं

पिछले साल चला था अभियान, स्कूली बसें हुई थीं सीज

पिछले साल परिवहन विभाग ने अभियान चलाते हुए स्कूली बसों को सीज करने के साथ भारी तादाद में चालान किए थेइससे स्कूल संचालकों में अफरा-तफरी मच गई थीकई स्कूल प्रबंधन के लोग बसें छुड़वाने पहुंच गए थेतब यात्रीकर अधिकारी ने बताया था कि कई स्कूल बसों का फिटनेस, इंश्योरेंस फेल था और चालक के पास डीएल नहीं थाकुछ स्कूली बसों के पास कोई प्रपत्र नहीं मिले थेकई चालक बिना बेल्ट लगाए स्कूली वाहनों को चला रहे थेइसके अलावा बसें अन्य मानकों का उल्लंघन कर रही थींउस समय जुर्माना वसूलने के साथ चेतावनी भी दी गई थीइसके बाद ढर्रा नहीं बदला और वही सिलसिला जारी रहा.

बस में बैठकर कई घंटे तक घूमना पड़ता है बच्चों को

शहर के कुछ स्कूलों में कम बसों और बड़े स्कूलों के ज्यादा रूट होने की वजह से बच्चों को कई-कई घंटे तक बसों में बैठे रहना पड़ता हैपिछले साल पैरेंट्स की शिकायतें आई थीं कि बच्चों को स्कूल से घर पहुंचने में दो से ढाई घंटे का समय लग जाता हैइसके बाद आरटीओ ऑफिस ने स्कूलों को पत्र भेजकर आदेश जारी किया था कि बच्चे एक घंटे के अंदर अपने घर पहुंच जाएंअगर इस आदेश की अनदेखी हुई तो स्कूल पर कार्रवाई होगीसरकार के भी इस तरह के निर्देश जारी किए थे.

कभी बस पलटी तो कभी ब्रेक हो गए फेल

केस-1 : 28 अप्रैल 2019 को शिवपुर के तरना में ओवरब्रिज से उतरते समय स्कूल बस की ट्रक से टक्कर हो गई थी, जिसमें बस में सवार 23 में से 7 घायल हो गए थेस्थानीय लोगों ने बच्चों को बाहर निकाल अस्पताल पहुंचाया थापता चला था कि ओवर ब्रिज से उतरते समय किसी बच्चे को बैठाने के लिए चालक ने बस में ब्रेक लगाया था, जिससे पीछे से आ रहे ट्रक ने टक्कर मार दी थी

केस-2 : 4 सितंबर 2018 को वाराणसी के रोहनिया क्षेत्र के भदवर गांव में नेशनल हाइवे के पास एक स्कूल की बस फुटपाथ में बनी रेलिंग से टकराकर पलट गई थीहादसे में बस में सवार 14 बच्चों में से छह को चोट आईबच्चों के चीखने की आवाज सुनकर मौके पर ग्रामीण पहुंचे थे बस का शीशा तोड़कर बच्चों को बाहर निकाला था

केस-3 : 29 अप्रैल 2013 को चौबेपुर के डुबकिया के एक स्कूल की बस दोपहर में छुट्टी के बाद बच्चों को छोडऩे जा रही थीचौबेपुर बाजार के पास ब्रेक फेल हो गएबस अनकंट्रोल्ड हो एक मैजिक और कार को ठोंकने के बाद साइकिल सवार को टक्कर मारती हुई मकान के दीवार से जा भिड़ीबस में सवार आधा दर्जन बच्चे घायल हो गए थे

स्कूली बसों के मानक

-खिड़कियों पर रॉड लगी होनी चाहिए, ताकि बच्चे हाथ या सिर बाहर न निकालें.

- शीशों पर काली फिल्म न लगी हो, बैग रखने के लिए छत पर लगेज हैंगर लगा हो

- फायर एक्सटिंग्यूशर चालू हालत में हो और ड्राइवर-कंडक्टर इसे ऑपरेट करना जानते हों.

- फस्र्ट एड बॉक्स हो, जिससे हादसे के हालात में प्राथमिक चिकित्सा दी जा सके.

- बस का रंग पीला होदो जगह ड्राइवर का नाम-नंबर, स्कूल का नाम-नंबर लिखा हो.

- ड्राइवर और कंडक्टर वर्दी में हो और प्लेट पर उसका नाम जरूर लिखा हो.

- ड्राइवर के पास कॉमर्शियल वाहन चलाने का अनुभव और ड्राइविंग लाइसेंस हो.

- जितनी सीट हैं, उतने ही बच्चे बिठाए जाएंबच्चे स्टैंडिंग में न ले जाए जाएं.

- ड्राइवर, कंडक्टर नशा न करते हों, उनका समय-समय पर मेडिकल परीक्षण हो.

समय-समय पर स्कूली बसों की चेकिंग को लेकर अभियान चलाया जाता हैफिटनेस समेत अन्य मानक के विपरित मिलने पर कार्रवाई होती हैपिछले दिनों अभिभावकों की शिकायत के आधार पर खटारा बसों पर कार्रवाई हुई थीअवैध और मानक के विपरीत बसों का संचालन रोका जाएगा.

-सर्वेश चतुर्वेदी, एआरटीओ