वाराणसी (ब्यूरो)। यह वही दिन है जब गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजाद हुए भारत को अपना संविधान मिला था। 26 जनवरी का दिन हर भारतीय के लिए बेहद गर्व का दिन है, क्योंकि इसी दिन साल 1950 में भारत पूर्ण रूप से गणतंत्र बना था। संविधान लागू होने के जश्न को मनाने के मकसद से हर साल देशभर में इस दिन गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। गणतंत्र का अर्थ होता है हमारा संविधान, हमारी सरकार, हमारे कर्तव्य और हमारा अधिकार। हमारा संविधान हमें बोलने का और अपने विचार रखने का अधिकार देता है। 26 जनवरी को हम अपना 75वां गणतंत्र दिवस मनाएंगे। आज हम बात करेंगे प्रथम गणतंत्र के साक्षी रहे बुजुर्गों से.
गांवों में सिर्फ वंदेमातरम की गंूज
जानकी नगर कालोनी के रहने वाले 85 वर्षीय बुजुर्ग श्यामलाल शर्मा बताते हैं कि पहले और अब में बहुत फर्क आया है। वैसे पहले गणतंत्र दिवस की बात ही अलग है। आज भी याद कर तन-मन उमंग से भर जाता है। हमारे गांव की पंचायत ने सामूहिक रूप से सूजी का हलवा और चने की घुघरी घर-घर बांटे थे। आजादी के 20 साल तक गांव से लेकर स्कूलों में उत्सव का माहौल होता था। घर से हाथ से तिरंगा बनाकर स्कूल ले जाते थे। गांवों में भारत माता की जय और वंदे मातरम, शहीद भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस के नारे लगाते थे। आज के युवा, अंग्रेजी स्कूल में पढऩे वाले बच्चों में वह जज्बा गणतंत्र दिवस के प्रति नहीं दिखता है। हां, जश्न मनाने का तरीका आधुनिक हो गया है.
गुलामी का वह दौर
लहरतारा सिंदूरिया पोखरी की रहने वाली 85 वर्षीय पार्वती सिंह बताती हैंं कि गुलामी का वह दौर आंखों के सामने से अभी भी ओझल नहीं होता है। पहले गणतंत्र दिवस पर जश्न होली और दीपावली जैसी थी। गणतंत्र वाले दिन पूरे गांव में मटर की घुघरी बनी थी और खाड़ का रस। घर-घर दीये जलाए गए थे। गांव के बड़े बुजुर्ग से लेकर हम बच्चे भी गणतंत्र के इस महापर्व में शामिल थे। इसके बाद हर गणतंत्र दिवस पर गुड़ और लेमन चूस मिलते थे। पूरे मोहल्ले में एक जगह झंडा फहराया जाता था अब तो हर नुक्कड़ पर झंडा फहराया जाने लगा है। जिस तपस्या व कुर्बानी से गणतंत्र का उपहार मिला है, उसका सम्मान करना चाहिए। आज 75वें गणतंत्र दिवस पर सब कुछ बदल गया है।
गांव में झंडा लेकर निकलते थे छात्र
चोलापुर के रहने वाले 85 वर्षीय गणेश प्रसाद विश्वकर्मा बताते हैं कि पहले गणतंत्र दिवस पर गजब का उत्साह था। जगह-जगह लोग भारत माता की जय, वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे। हम लोग उस समय बच्चे थे। हाथों में तिरंगा लेकर घरों से पूरे गांव में दौड़ लगा रहे थे। बड़े बुजुर्ग भी काफी खुश थे, लोग तरह-तरह की चर्चाएं कर रहे थे। मंदिरों में हलवा और घुघरी चढ़ाकर बांटा गया था और शाम को लोगों ने घरों पर दीपक भी जलाए थे। अब उस तरीके का उत्साह बच्चों और युवाओं में नहीं दिखाई पड़ता है। आज भी अपनी आंखों से बदलते भारत को देख रहा हूं। युवाओं के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प से मन खुश हो जाता है।
तिरंगा लेकर मैं खुद दौड़ता था
लोहटिया के रहने वाले 90 वर्षीय नखडू राम बताते हैं कि गणतंत्र दिवस पर शहीदों को नमन करने के साथ ही अपना संविधान लागू होने की खुशी थी। युवा पीढ़ी को भारत के शहीदों से प्रेरणा लेनी चाहिए। युवाओं का कर्तव्य बनता है कि वह देश के विकास के लिए अपना पूरा योगदान दें। पहले गणतंत्र दिवस पर हर गांव की गली-गली तक जाते थे। तिरंगा लेकर मैं भी खुद जाया करता था। लोगों में उत्साह था, स्कूलों में सुबह सभी बच्चे पहुंचे थे और विद्यालय से निकलकर गांव की गली तक पैदल झंडा हाथ में लेकर गणतंत्र दिवस के नारे लगाते हुए जाते थे। जब विद्यालय में जुलूस पहुंचा तो वहां पर छात्रों ने गीत, संगीत और नाटक की प्रस्तुति दी थी। इसके बाद विद्यालय में लेमन जूस और जलेबी बांटी गई थी.
घर-घर बनता था पकवान
जैतपुरा के रहने वाले महेश सिंह बताते हैं कि पहले गणतंत्र दिवस पर मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। अंग्रेजों की हुकूमत में मेरे बाबा रणजीत सिंह बेरिस्टर हुआ करते थे। बाबा बताते थे कि आजादी के बाद जब संविधान बन रहा था तो मुझसे भी राय मांगी गई थी। बाबा भीमराव अंबेडकर से मेरे बाबा ने कई बार मुलाकात भी की थी। बाबा ही बताते थे कि लोगों में गजब का उत्साह था। क्षेत्र के सभी लोग वंदेमातरम और भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। घर-घर पकवान बना था। सुबह से ही हम लोग हाथों में तिरंगा लेकर अपने घरों से गांव-गांव टहलते थे.