वाराणसी (ब्यूरो)गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बतायअर्थात गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर हैगुर-शिष्य परंपरा में आज इतना अधिक ट्रेंड बदल गया है कि ज्यादातर यूथ चाहे देश के हों या फिर विदेश के, सनातन संस्कृति को ही अपनाना चाहते हैंयह यहां के गुरुओं की देन हैपिछले एक दशक में बाबा विश्वनाथ धाम, अयोध्या, मथुरा, और वृंदावन में दर्शन-पूजन करने वालों में सबसे अधिक यूथ ही हैैंमस्तक पर कोई त्रिपुंड लगाकर और राम-नाम, शिव, हरे-कृष्ण लिखा वस्त्र यूथ ही पहन रहे हैंइसी परंपरा को विदेशी यूथ भी अपना रहे हैंएक दशक पहले मठ, पीठों की एक-दो संस्थाएं थीं, आज दर्जनों संस्थाएं विदेशों में खोलकर सनातन संस्कृति का विस्तार कर रहे हैंइन संस्थाओं में कहीं औषधि देकर जटिल रोगों का इलाज किया जा रहा है तो कहीं शिक्षा का विस्तार कर लोगों को जोड़ा जा रहा हैइनमें सबसे अधिक विदेशी यूथ शामिल हैंकोई कृष्ण का टीका लगाकर तो कोई शिव का चंदन लगातर फोटो खिंचकर फेसबुक, ट्रिवटर और वाट्सएप पर अपडेट कर रहा है

मठ-मंदिरों में निभाई जा रही परंपरा

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर, अर्थात भगवान के रूठने पर तो गुरु की शरण मिल जाती है परंतु गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण नहीं मिलता हैयह कहावत आज के बदलते टें्रड में काफी कुछ बदल गया हैमठों में सिर्फ गुरु पूर्णिमा पर ही शिष्यों की भीड़ दिखायी नहीं पड़ती बल्कि आम दिनों में भी शिष्यों की भीड़ नजर आती हैक्योंकि आज के ज्यादातर यूथ आध्यात्मिक हो चुके हैं

बाबा विश्वनाथ, वृंदावन में भीड़

गुरु की ही देन है कि आज बाबा विश्वनाथ धाम, अयोध्या और वृंदावन में यूथ की संख्या सबसे अधिक हैकोई राम-नाम लिखा वस्त्र पहनकर शीश नवाता है तो कोई हरे-कृष्ण लिखा अंगवस्त्रम धारण कर प्रभु के भक्ति में लीन है तो कोई त्रिपुंड लगाए बाबा की भक्ति में मगन हैमंठ के गुरुओं की मानें तो बदलते टें्रड में 60 से 70 परसेंट यूथ आध्यात्मिक हो चुके हंै

माथे पर चंदन, टीका लगाने के बाद सेल्फी का क्रेज

देवालय, शिवालय हो या फिर मठ-मंदिर, दर्शन-पूजन करने सबसे अधिक यूथ ही पहुंच रहे हैंबाबा विश्वनाथ धाम में प्रतिदिन 40 से 50 परसेंट यूथ ही दर्शन-पूजन को आ रहे हैंअयोध्या और वृंदावन से लेकर मथुरा में भी यूथ की संख्या सबसे अधिक हैदर्शन-पूजन करने के बाद सेल्फी भी लेना नहीं भूल रहेइसके बाद फेसबुक पर भी लोड कर रहे हंै.

बढ़ गए विदेशों में शिष्य

आज के गुरु काफी हाईटेक हो चुके हैंउनके शिष्यों की संख्या अब हजारों में नहीं बल्कि लाखों में हो गई हैयह शिष्य सिर्फ सालभर में एक ही बार गुरु का आशीर्वाद लेने के लिए सामने नहीं आते बल्कि प्रतिदिन आनलाइन प्लेटफार्म पर अपने गुरु से आशीर्वाद लेते हैंऐसे शिष्यों की संख्या लाखों में हैइनमें जापान, जर्मनी, कैलिफोर्निया, अमेरिका, लंदन, ग्रीस, कनाडा समेत कई देशों में रहते हैं.

शहर से ज्यादा विदेशों में संस्थाएं

दो दशक पहले से शहर में मठ व पीठों की गिनी-चुनी ही संस्थाएं देखने को मिलती हैंबदलते ट्रेंड में आज पीठ और मठों की सबसे अधिक संस्थाएं विदेशों में हैंजर्मनी, आस्ट्रेलिया, रसिया, जापान, ग्रीस, कनाडा, इटली में संस्थाएं खुल चुकी हैंइन संस्थाओं में ज्यादातर शिष्य विदेशी ही हैंइन विदेशियों के बीच गुरु अपनी परंपराओं से परिचित करा रहे हैं

ऑनलाइन सनातन धर्म का प्रचार

शहर के मठ, मंदिरों के गुरु इतने हाईटेक हो चुके हैं कि सभी ऑनलाइन सिस्टम से जुड़ चुके हैंइसके लिए वह ऑनलाइन सिस्टम प्रणाली से अपनी संस्थाओं को लैस करा चुके हंैदेश या फिर विदेश में जितने भी शिष्य रहते हैं, सभी ऑनलाइन प्लेटफार्म से गुरुओं से शिक्षा ले रहे हैंविदेशों में जो संस्थाएं हैैं, वह भी हाईटेक सिस्टम से लैस हैंप्रतिदिन ऑनलाइन प्लेटफार्म पर गुरु अपने शिष्यों को दर्शन देते हैइसके बाद ज्ञान से सिंचित करते है

एक दशक में शिष्यों की संख्या सबसे अधिक बढ़ी हैबाबा विश्वनाथ धाम, अयोध्या, वृंदावन में दर्शन-पूजन करने सबसे अधिक यूथ ही जा रहे हैं.

संतोष दास सतुआ बाबा, महामंडेलश्वर, सतुआ बाबा आश्रम

रुद्राक्ष, तुलसी की माला धारण सबसे अधिक विदेशी यूथ कर रहे हैंसनातन संस्कृति को सबसे अधिक अपना रहे हैंएक दर्शन में 50 परसेंट विदेशी शिष्य बने.

बालक दास, महंत, पातालपुरी मठ

गुरु-शिष्य की परंपरा दिन पर दिन और प्रगाढ़ होती जा रही हैअब ज्यादातर यूथ सनातन संस्कृति को अपना रहे हैंविदेशों से भी शिष्य दवा और शिक्षा लेने के लिए आते हैं.

संजय सिंह, मीडिया प्रभारी, अघोरपीठ बाबा कीनाराम स्थल