वाराणसी (ब्यूरो)। एक दौर था जब दो नाली बंदूक रखना लोग अपनी शान समझते थे। जिस जगह से वह गुजरते थे तो लोग एकटक निहारने लगते थे। जब वह अपनी मूंछों पर ताव देते थे तो लोग दूरी बनाना ही उचित समझते थे। लेकिन, बदलते जमाने में आज इसकी पूछ खत्म हो गई है। अब इसकी जगह रिवाल्वर, पिस्टल और रायफल का क्रेज बढ़ता जा रहा है। असलहा विभाग में दो नाली बंदूक का सरेंडर कराने वालों की संख्या बढ़कर पांच सौ के आसपास पहुंच गई है। वजह लाइसेंस का नवीनीकरण में झंझट तो बताया ही जा रहा है, साथ ही अब लोग नए वेपंस ज्यादा पसंद कर रहे हैं। पिस्टल के लिए सौ से अधिक लोगों ने आवेदन किया है.
शस्त्र लाइसेंस नवीनीकरण में झंझट
दो नाली बंदूक के नवीनीकरण के झंझट से बचने के लिए अब लोग शस्त्र रिन्यूअल नहीं करा रहे हैं। ज्यादातर लोग लाइसेंस सरेंडर कराना चाहते हैं, क्योंकि अब लोगों का मोह दो नाली बंदूक से भंग हो चुका है। पहले के लोग साथ लेकर चलने में शान समझते थे। जिन लोगों के पास दो नाली बंदूक है वह भी काफी परेशान हैं.
दो नाली बंदूक बना सिरदर्द
जिनके पास दो नाली बंदूक है, उनके लिए सिरदर्द बन चुका है। हर पांच साल में रिन्यूअल कराना पड़ता है। इसके बाद यह भी ध्यान देना पड़ता है कि कोई इसे चला न दें। हमेशा जान के लिए खतरा बना रहता है। इससे बचने के लिए अब लोग पुराने हथियार को सरेंडर करना ज्यादा सेफ समझ रहे हंै। आउटडेटेड शस्त्र घर में रखना नहीं पसंद कर रहे हैं। अब तक करीब 500 सौ लोगों ने सरेंडर के लिए आवेदन कर दिया है। आवेदन की संख्या को देखने से पता चलता है कि शस्त्र के प्रति लोगों की दिलचस्पी घटती जा रही है। यही नहीं लाइसेंसी हथियार नवीनीकरण के लिए की जा रही कार्रवाई में सबसे ज्यादा परेशानी उन बंदूकधारियों को हो रही है, जिनके पास वर्षों पुरानी बंदूकें हैं। ऐसे लोग अब हथियारों की जरूरत न बताते हुए अपने लाइसेंसों को सरेंडर करने में लगे हुए हैं.
हर साल 100 लोग कर रहे सरेंडर
प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले तीन साल में 500 लोगों ने हथियारों को सरेंडर किया है। वहीं 100 से अधिक आवेदन पेंडिंग हैं। हर साल करीब सौ लोग हथियार का सरेंडर कर रहे हैं। सरेंडर की प्रक्रिया यह बताता है कि लोगों में हथियार के प्रति लगाव नहीं रह गया है। शस्त्र लाइसेंस आवेदनकर्ताओं से अधिक सरेंडर करने वालों की संख्या ज्यादा बढ़ रही है। दरअसल 40-50 साल पुरानी बंदूक (बारूद भरकर चलाई जाने वाली) की कीमतें काफी कम हुआ करती थी। इनके रिन्यूवल के लिए लगने वाली फीस बंदूक की कीमत से ज्यादा है.
नए लाइसेंस नहीं किए जा रहे जारी
फिलहाल नए वेपंस के लिए लाइसेंस जारी नहीं किए जा रहे हंै। लाइसेंस बनवाने के लिए और बड़ी संख्या में लाइसेंस सरेंडर करने के लिए लोग शस्त्र विभाग के चक्कर काट रहे हैं। बीते चार सालों में एक भी नए लाइसेंस को जारी नहीं किया गया है। जो भी आवेदन आ रहे उसे पेंडिंग में रखा जा रहा है.
असलहा रखना टेंशनभरा
फिलहाल विभाग के अफसरों की मानें तो शस्त्र लाइसेंस रखना अब लोगों के लिए आसान नहीं है। कोई भी त्योहार या चुनाव आता है तो सबसे पहले लाइसेंसधारी को खोजा जाता है। पुलिस की बार-बार इंक्वायरी भी की जाती है। लाइसेंस रिन्युअल के लिए विभागों के चक्कर काटने पड़ते हैैं। यही नहीं विरासत लाइसेंस को ट्रांसफर न होने के कारण भी परेशान होना पड़ता है। इसके अलावा अलग-अलग कारणों से भी लोग हथियार को सरेंडर कर रहे हैं.
पुराने बंदूक आउटडेटेड हो चुके हैं। सरेंडर के लिए आवेदन तो आ ही रहे हैं। पुराने शस्त्र लोग अब रखना पसंद भी नहीं करते.
अजय मिश्रा, सिटी मजिस्ट्रेट