वाराणसी (ब्यूरो)। सुंदर और स्मार्ट दिखना कौन लड़की नहीं चाहती। लेकिन जब किसी के चेहरे पर पिंपल्स के दाग-धब्बे लग जाएं तो वे परेशान हो जाती हंै। इसे हटाने के लिए तमाम तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट पर हजारों रुपए खर्च भी करती हैं, फिर भी सुंदरता नहीं लौटती। यदि आप के साथ भी ऐसी समस्या है तो अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। ऐसी गल्र्स और वीमेंस के लिए आईएमएस बीएचयू के डिपार्टमेंट ऑफ आयुर्वेद में जड़ से खत्म करने वाला ट्रीटमेंट उपलब्ध है। यहां गल्र्स अपनी ब्यूटी के लिए लीच (जोंक) थेरेपी करा रही हैं। आयुर्वेद संकाय की ओपीडी में कील-मुंहासे और छाही दूर करने के लिए गल्र्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां हर माह 25 से ज्यादा गल्र्स इस ट्रीटमेंट का लाभ ले रही हैं। डॉक्टर्स का दावा है कि एक महीने तक लीच थेरेपी कराने से मुंहासे जड़ से खत्म तो होते ही हैं, इससे चेहरे की रंगत भी बढ़ जाती है।
चार माह पहले शुरुआत
आईएमएस बीएचयू के आयुर्वेद डिपार्टमेंट में चार माह पहले लीच सेंट्रल फैसिलिटी सेंटर यानी केंद्रीयकृत जोंक सुविधा केंद्र की शुरुआत हुई है। यहां स्किन संबंधित डिजीज, पिंपल्स, एकने, गठिया, ज्वाइंट पेन सहित अन्य प्रॉब्लम को लेकर भी लोग पहुंच रहे हैं। सबसे अधिक संख्या चेहरे पर पिंपल्स व एकने की समस्या लेकर पहुंचने वाली गल्र्स की है। इन गल्र्स की सप्ताह में एक बार लीच थेरेपी की जाती है। एसएस हॉस्पिटल (आयुर्वेद) के डिप्टी एमएस डॉ। पंकज भारती ने बताया कि शरीर से दूषित खून निकालने में जोंक उपयोगी होते हैं। युवतियों के मुंहासे वाले स्थान पर जोंक रख दिए जाते हैं। वे धीरे-धीरे दूषित ब्लड को अवशोषित कर लेते हैं। फिर पिंपल्स जड़ से समाप्त हो जाते हैं। इसके बाद चेहरे पर निखार के साथ ग्लोव बढऩे लगता है।
एक माह का ट्रीटमेंट
डॉ। अवधेश पांडेय ने बताया कि आयुर्वेद विधि से ट्रीटमेंट के दौरान मुंहासे को ठीक होने में चार सप्ताह का समय लगता है। इसमें सप्ताह में एक दिन लीच थेरेपी की जाती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान चेहरे पर एक से दो जोंक रखे जाते हैं। ट्रीटमेंट के दौरान जोंक को मुंहासे की ऊपरी सतह पर बैठा दिया जाता है। करीब 30 से 45 मिनट के अंदर जोक दूषित खून को सोख लेता है। इसके बाद चेहरे पर मुलेठी, मुखक्रांति, एलोवेरा, चंदन और मंजिष्ठा का लेप लगाया जाता है। फिर सभी जोंक को अलग जार में बंद कर रख दिया जाता है.
जोंक थेरेपी क्या
जोंक थेरेपी एक तरह से ब्लड शुद्धिकरण प्रक्रिया है। इसमें औषधीय जोंक का उपयोग किया जाता है, जो खराब खून को चूसते हैं। साथ ही खून में कुछ एंजाइम छोड़ते हैं जो प्रतिरक्षा बढ़ाने के साथ-साथ शरीर की उपचार शक्ति बढ़ाने में सहायक होते हैं। सूजन के साथ ही जोड़ों में दर्द, साइटिका, चर्म रोग, ब्लड सर्कुलेशन में बाधा, बाल उगाने आदि में जोंक से उपचार की विधि बेहद कारगर है।
ऐसे किया जाता उपचार
स्किन डिजीज या ज्वाइंट पेन के इलाज के लिए शरीर के प्रभावित स्थान पर जोंक को रख दिया जाता है। जोंक उस स्थान पर चिपक जाती है। अगर वह स्वयं खून चूसना शुरू नहीं करती तो निडिल चुभाकर ब्लड बहाया जाता जाता है। जोंक इस स्थान पर अपनी प्रवृत्ति के मुताबिक करीब 35 से 45 मिनट तक खून चूसती है। मरीज का रोग समाप्त होने तक सप्ताह में एक बार यह प्रक्रिया दोहराई जाती है.
दिल्ली व असम से आते जोंक
डॉ। पंकज कुमार भारती ने बताया कि यहां पहले से जोंक से उपचार किया जा रहा है। लेकिन पहले मरीजों को खुद ही जोंक खरीद कर लानी पड़ती थी। अब इसे असम और दिल्ली से मंगाया जाता है। जोंक मेडिशनल के साथ-साथ छोटे और मध्यम आकार के होते हैं। स्किन डिजीज के लिए लंबे जोंक तालाबों से ही मिल जाते हैं।
ये भी जानें
- जोंक अपने मुंह से ऐसे एंजाइम निकालते हैं जो व्यक्ति को जरा भी अहसास नहीं होने देते की शरीर से खून चूसा जा रहा है.
- कृमि प्रजाति के इस जीव की खास बात ये है कि इसके स्लाइवा में मिलने वाला हिरुडिन नामक एंजाइम है, जो खून में थक्का नहीं बनने देता है.
- जोंक दो तरह की होती हैैं, सविष और निर्विष।
-जोंक के खून चूसने के दौरान सुई जैसी चुभन या खुजली हो तो इसका मतलब शुद्ध खून चूस रही है। ऐसे में इन्हें तुरंत हटा देना चाहिए।
- अगर जोंक शरीर को न छोड़े तो सेंधा नमक छिड़कना चाहिए।
यहां पहले से जोंक से उपचार किया जा रहा है। पहले लोगों को इसकी ज्यादा जानकारी नहीं थी। लीच फैसिलिटी सेंटर बनने के बाद इसका क्रेज बढ़ रहा है। वैसे तो इसका इस्तेमाल ज्वाइंट पेन, हेयर फॉल और स्वेलिंग व घाव भरने में भी किया जाता है। लेकिन पिंपल्स व एकने के ट्रीटमेंट के लिए युवतियां ज्यादा आ रही हैं। इसके बाद चेहरे पर ग्लो बढ़ जाता है।
डॉ। पंकज कुमार भारती, डिप्टी एमएस, आयुर्वेद संकाय, एसएस हॉस्पिटल, बीएचयू