वाराणसी (ब्यूरो)। बनारस के एक स्कूल की खटारा बस का वीडियो वायरल होने के बाद दो दिन खूब फजीहत हुई। परिवहन मंत्री और कई अफसरों को ट्वीट किए गए। आखिरकार एक्शन लिया गया। बस सीज हुई, जुर्माना ठोका गया और कई विभाग रेस हो गए। मगर क्या आप जानते हैं कि इस तरह के हजारों अनफिट वाहन आपके बच्चों को घर से स्कूल लाने-ले जाने में लगे हैं। आपके लाडलों की सेफ्टी का मीटर कितना डाउन है, इस तरफ गौर जरूर फरमाइए.
दो हजार वाहन हैं रजिस्टर्ड
जिले के विभिन्न बोर्ड के स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों में से करीब 50 से 60 फीसदी बच्चे अलग-अलग प्राइवेट वाहनों से स्कूल जाते हैं। 40 फीसदी बच्चे अपने परिवार के वाहनों या फिर पैदल, साइकिल या रिक्शा से स्कूल पहुंचते हैं। बच्चे जिन वाहनों में सफर करते हैं, उनमें से बहुत कम स्कूलों की बस सुविधा अच्छी है, बाकी में बच्चों का रोज का सफर अनसेफ होता है। आरटीओ में जिले के करीब दो हजार वाहन ही रजिस्टर्ड हैं, जिनमें बस, वैन, ऑटो, टेंपो, मैजिक आदि हैं। इसके अलावा हजारों वाहन दौड़ रहे हैं, जो न तो फिटनेस में पास होते हैं और न ही इनमें सुरक्षा मानकों का पालन किया जाता है। इन वाहनों की स्टीयरिंग नाबालिगों और अनट्रेंड ड्राइवरों के हाथों में भी थमा दी जाती है। ट्रैफिक रूल्स का पालन करना भी इन्हों ने नहीं सीखा है.
स्कूल प्रबंधन नहीं लेते जिम्मेदारी
अगर आपका बच्चा स्कूल बस या स्कूली वैन से जाता है तो हर साल आपसे एक कंसेंट फार्म भरवाया जाता है। इस कंसेंट फार्म के भरने के बाद स्कूल बस में बच्चे की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की होती है। किसी निजी और प्रतिबंधित वाहन से बच्चो को स्कूल भेजने पर स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी नहीं होती है। वहीं अगर आपका नाबालिग बच्चा टू व्हीलर से स्कूल जाता है तो ये पूरी तरह से गैर कानूनी है। इस गैर कानूनी प्रक्रिया में भी स्कूल प्रबंधन अपना पल्ला झाड़ लेता है। हालांकि स्कूल प्रबंधन अपने यहां इन वाहनों को पार्क कराता है, लिहाजा जिम्मेदारी बनती है, लेकिन कोई भी प्रबंधन किसी लफड़े में नहीं पडऩा चाहता। इस कारण कोई रोक-टोक नहीं होती.
ओवरलोडिंग सीरियस मामला है
शहर में चल रहे स्कूली ऑटो, वैन और ई-रिक्शा में न सिर्फ क्षमता से अधिक बच्चे बैठाए जा रहे हैं, बल्कि उनमें आवश्यक सावधानियां भी नहीं बरती जा रही है। बावजूद इसके अभिभावक इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। वे भी बच्चों की जान जोखिम में डालकर उन्हें लापरवाह ऑटो चालकों के साथ स्कूल भेज रहे हैं। स्कूली बच्चों का परिवहन वैन व ऑटो में नियमों को ताक पर रखकर किया जा रहा है। हालत ये है कि ऑटो में 5 की जगह 8 बच्चे और वैन में 8 की जगह 14 बच्चों को ठूंस-ठूंस कर बैठाया जा रहा है। कई बार हादसे होने पर लोग जागते हैं। आरटीओ की तरफ से सुरक्षा मानकों को लेकर जांच-पड़ताल भी होती है, वाहन सीज किए जाते हैं मगर कुछ समय बाद फिर वही सिलसिला चल पड़ता है.
कोर्ट की गाइडलाइन का नहीं हो रहा पालन
स्कूली बच्चों को ले जाने वाले वाहनों के लिए हाईकोर्ट की ओर से गाइड लाइन तैयार कराई गई है। लेकिन इस गाइड लाइन का परिवहन और पुलिस प्रशासन पालन नहीं करा है। परिणामस्वरूप शहर में धड़ल्ले से ऑटो-वैन चालक लापरवाहीपूर्ण तरीके से बच्चों को घर से स्कूल और स्कूल से घर छोड़ रहे हैं। कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार ऑटो में अतिरि1त क्षमता के लिए फट्टी नहीं लगाई जा सकती, मगर इस नियम का पालन नहीं होता। हर वाहन में बच्चों की संख्या निश्चित की गई है, मगर गाइड लाइन को दर किनार कर दिया जाता है.
क्या-क्या है जरूरी
स्कूल प्रबंधन को खासतौर पर वाहनों की फिटनेस में उनका पंजीकरण, प्रदूषण प्रमाण पत्र, फिटनेस प्रमाण पत्र, चालक का डीएल, ड्राइवर का पुलिस वैरीफिकेशन, चालक ने वैक्सीन की दोनों खुराक ली या नहीं, वाहन पर मोबाइल नंबर, पुलिस हेल्पलाइन नंबर दर्ज है या नहीं, अग्निशमन यंत्र, वाहन में जीपीएस, सीसीटीवी कैमरा एवं स्पीड कंट्रोल डिवाइस का होना अति आवश्यक है। बिना इसके अगर वाहन संचालित होता है तो कार्रवाई का प्रावधान है.
इन चीजों पर जरूर गौर फरमाएं
-सीटों से ज्यादा बच्चे बैठाकर ले जाते हैं
-कई बार बच्चे खड़े होकर स्कूल जाते हैं
-बच्चों के बैग रखने को प्रॉपर व्यवस्था नहीं
-कंडम गाडिय़ों का इस्तेमाल कर रहे है
-स्कूल वाहन के नियमों को फॉलो नहीं करते
-गाड़ी बंद होने पर बच्चों से धक्का लगवाते