वाराणसी (ब्यूरो)। रहस्यों से भरी है जैतपुरा की नागकूप। राहु, केतू के अलावा अगर किसी पर कालसर्प दोष है तो उसका भी निवारण मिनटों में होता है। नागकूप का दर्शन करते मात्र से ही सभी दोष दूर हो जाते हैं। ऐसा है नागकूप। वैसे तो प्रतिदिन यहां दर्शन करने को लोग आते हैं लेकिन नागपंचमी के पर्व पर नागकूप का दर्शन करना विशेष फलदायी होता है। 21 को नागपंचमी का पर्व है नागकूप में साफ-सफाई की तैयारियां तेज हो गयी हैं। कालसर्प दोष निवारण में प्रधान कुंड होने के कारण यहां देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं.
यही है प्रधान कुंड
देश में तीन जगह पर कालसर्प दोष का निवारण होता है। इसमें जैतपुरा का नागकूप प्रधान कुंड है। नागकूप के बाद उज्जैन में कालसर्प दोष का निवारण होता है। देश ही नहीं विदेश से भी लोग कालसर्प दोष के निवारण के लिए यहां आते हैं। अब तो नागकूप का दर्शन करने के लिए यूथ की भीड़ काफी आती है ऐसा कहना कुंदन पाण्डेय का।
यूथ हो रहे अवेयर
पं। कुंदन पाण्डेय का कहना है कि दोष के निवारण के लिए अब यूथ काफी अवेयर हो चुके हैं। दिल्ली, मुंबई, महाराष्ट्र, साउथ इंडिया के अलावा कई राज्यों से अब कालसर्प दोष को दूर करने के लिए यहां पूजन करते हंै। उनको इसका लाभ भी मिलता है। कितना ही पुराना से पुराना कालसर्प दोष कुंडली में हो कुंड में पूजन करने पर दोष दूर हो जाते हैं। यही वजह है अमेरिका, फ्रांस, लंदन, ग्रीस, कनाडा से भी लोग यहां आते है।
पाताल जाने का मार्ग
स्कंद पुराण के अनुसार यह वह स्थल है, जहां से पाताल लोक जाने का रास्ता है। इस कूप के अंदर सात कूप हैं, ऐसा कहना है कि यहां के लोगों का। पाताल लोक का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया, वैसे भी शाश्वत नगरी काशी में धार्मिक रहस्यों की कमी नहीं है। नागकुप को कारकोटक नागी तीर्थ के नाम से भी लोग जानते हैं। इसकी गहराई कितनी है यह कोई आज तक नहीं जान पाया। नागपंचमी के पर्व पर यहां कालसर्पदोष की शांति के लिए श्रद्धालु और नेमियों की भीड़ लगती है।
दर्शन से पापों से मुक्ति
बताते हैं कि करकोटक नाग तीर्थ के नाम से जाने जाने वाली इसी जगह पर शेषावतार नागवंश के महर्षि पतंजलि ने व्याकरणाचार्य पाणिनी के भाष्य की रचना की थी। डॉ। रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि शास्त्रों के आंतरिक ज्ञान तथा कोड पत्र का ज्ञान पांडुलिपियां जो हैं उनका ज्ञान शास्त्रार्थ से ही होता है इसलिए इस परंपरा को जीवंत रखना काशीवासियों का दायित्व है। यहां नाग पंचमी पर हर साल लाखों लोगों की जुटान होती है.
करते हैं परिक्रमा
शास्त्रों के अनुसार नाग पंचमी के दिन स्वयं पतंजलि भगवान सर्प रूप में आते हैं। वे बगल में नागकूपेश्वर भगवान की परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि शास्त्रार्थ में बैठते हैं और शास्त्रार्थ में शामिल विद्यार्थियों पर कृपा भी बरसाते हैं। नागकूप कालसर्प शांति का भी एकमात्र स्थान है। यहां नागेकूपेश्वर शिवलिंग का पाणिनविरचित अष्टाध्यायी के साढ़े चार हजार सूत्रों से अभिषेक और बिल्वार्चन किया जाता है। कालसर्प दोष से मु्िरक्त के लिए लोग नागकूप के जल में दूध और लावा भी चढ़ाते हैं।
संवत एक में जीर्णोद्धार
लोग बताते है पौने तीन हजार वर्ष पहले यानि संवत 1 में नागकूप का जीर्णोद्धार हुआ था। नागकूप कब का बना है, इसका उल्लेख आज तक लोगों को नहीं मिला। हर महीने की पंचमी, सप्तमी, नवमी, एकादशी और पूर्णिमा की शुक्लपक्ष तिथि में कालसर्प का दोष निवारण होता है.
नागकूप में पहले की अपेक्षा अब यूथ काफी आने लगे हैं। अमेरिका, फ्रांस, कनाडा समेत देश के कई राज्यों से यहां कालसर्प दोष के निवारण के लिए आते है.
कुंदन पाण्डेय, आचार्य
नागपंचमी के दिन नागकूप में कालसर्प के निवारण की विशेष मान्यता है। नागकूप कब का है यह किसी को नहीं पता., हां पौने तीन हजार वर्ष पहले संवत 1 में नागकूप का जीर्णोद्धार किया गया था.
डॉ। रामनारायण द्विवेदी, महामंत्री काशी विद्धत परिषद