वाराणसी (ब्यूरो)। मानसिक अस्पताल के पागल तो अच्छे-अच्छों को बेवकूफ बना देते हैैं। यही वजह है कि अब तक चार मानसिक पेशेंट्स यहां से चकमा देकर फरार हो चुके हैं। कोई स्वीपर का कपड़ा पहनकर भाग गया तो कोई अस्पताल के परिसर में बने गड्ढे में ही छिपा रहा और मौका मिलने के बाद भाग गया। हालांकि बाद में दो को पकड़ा गया, लेकिन दो का अब तक पता नहीं चल सका। इसकी वजह यहां कर्मचारियों की कमी को बताया जा रहा है.
प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल
पांडेयपुर मानसिक अस्पताल प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल है। प्रदेशभर के कारागारों में जब कोई कैदी अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है तो इसी अस्पताल में लाकर उसका ट्रीटमेंट किया जाता है। ऐसे पेशेंट्स का ट्रीटमेंट करना भी हास्पिटल के डाक्टर्स हों या फिर कर्मचारी, सभी के लिए चुनौती बन रही है। पलक झपकते ही कब भाग जाएं, यह कहना मुश्किल है। इसलिए इन मरीजों पर पैनी नजर रखी जाती है। हर एक एक्टीविटी पर नजर रखी जाती है। यहीं नहीं ऐसे पेशेंटस सुरक्षा के लिए भी खतरा बने रहते हैं.
361 बेड का हॉस्पिटल
प्रदेश के सबसे बड़े मानसिक चिकित्सालय में 361 बेड हैं। इनमें 2 सौ के करीब पेशेंट्स का ट्रीटमेंट चल रहा है। इनमें प्रदेशभर के जेल से आए 68 बंदी पेशेंट्स भी शामिल हैं। पेशेंट्स का इतना प्रेशर होने के बावजूद इन मनोरोगियों पर 24 घंटे नजर रखने के लिए महज 18 अटेंडेंट को तैनात किया गया, जबकि जरूरत 56 की है। मानसिक रोगियों के बीच अटेंडेंट डरे सहमे काम करते हंै। थोड़ी सी भी लापरवाही भारी पड़ जाती है.
भाग चुके हैं चार पेशेंट्स
कर्मचारियों की कमी के चलते चार मानसिक रोगी चकमा देकर भाग चुके हैं। इनमें से एक वहीं परिसर में बने गड्ढे में पूरे दिन छिपा रहा। उसकी खोजबीन पूरे अस्पताल में हो गई। दूसरे दिन वह गड्ढे में छिपा मिला। एक ने तो अपना गला खुद ही रेत लिया था। दो का पता नहीं चला। कई पेशेंट्स तो ऐसे हैं कि कर्मचारियों को मारकर घायल भी कर देते हैं। उनको संभालना बड़ा मुश्किल हो जाता है.
बावर्ची का भी करते काम
हॉस्पिटल में अटेंडेंट का यह हाल है कि मरीजों की देखभाल के साथ ही उन्हें बावर्ची का भी काम करना पड़ता है। खाना बनाने से लेकर कपड़ा धोने तक का काम करना पड़ता है। इसके अलावा सुबह होते ही भर्ती सभी मानसिक रोगियों को नित्य कर्म कराने से लेकर नहलाने, खाना खिलाने, उनका बिस्तर लगाने, सुलाने तथा समय पर उनकी दवाएं देने तक का काम करना पड़ता है.
गंदगी भी फैलाते हैं
जहां मानसिक रोगी रहते हैं वहां गंदगी भी काफी फैलाते हैं। साथ ही बिस्तर पर शौच कर देने पर स्थितियां और भी नारकीय हो जाती हैं, इससे अन्य मरीजों को भी परेशानी झेलनी पड़ती हैं। उनके गंदगी को साफ करने की जिम्मेदारी कर्मचारियों पर होती है.
चार महिलाएं सजायाफ्ता
मानसिक अस्पताल में इलाज करा रहे 68 कैदियों में करीब 50 अंडर ट्रायल के हैं जबकि शेष सजायाफ्ता हैं। इनमें चार महिलाएं भी शामिल हैं.
दो महीने में खत्म होगी दिक्कत
मानसिक चिकित्सालय के निदेशक डॉ। सीपी मल्ल का कहना है कि अटेंडेंट की कमी को दो महीने के अंदर पूरी कर ली जाएगी। इसके बाद प्रॉपर तरीक से मरीजों की देखभाल होगी। पूर्व में भी अटेंडेंट की कमी के संबंध में मुख्यालय के उच्चाधिकारियों को पत्र भेजा जा चुका है। निश्चित रूप से अटेंडेंट की कमी के चलते कार्य करने में असुविधा होती है।
हास्पिटल में की दिक्कतों को जल्द ही दूर किया जाएगा। अटेंडेंट जब रहेेंगे तो कोई मानसिक रोगी भाग नहीं सकता.
डॉ। सीपी मल्ल, निदेशक, मानसिक चिकित्सालय