वाराणसी (ब्यूरो)। इंटरनेट की सजी थाली में जहां यंगस्टर्स और टीनएजर्स फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम और रील्स में फंसे हैं, वहीं हाउस वाइफ डेली शोप, सीरियल, रील्स, रेसीपी तो बुजुर्ग यूट्यूब पर भजन, कथा और प्रवचन सुनने में मोबाइल डेटा खर्च कर रहे हैं। लोगों को इंटरनेट वाले मोबाइल की चाहत ने इतना बेचैन कर दिया है कि अगर सुबह मोबाइल का डाटा खत्म हो जाए तो ये लोग तब तक तनाव में रह रहे हैं जब तक दोबारा रिचार्ज न हो जाए। कुल मिलाकर इस समय हर घर में आटा से ज्यादा डाटा पर खर्च हो रहा है.
केस-1
रविंद्रपुरी में रहने वाले संजय जायसवाल के घर में चार मेंबर हैं। उनके घर में डेली करीब एक केजी आटा खर्च होता है। इस हिसाब से एक मेंबर पर 2.5 ग्राम आटे का खर्च आता है, जिसकी कीमत करीब 8 रुपए है। इनके घर के चारों मेंबर्स के पास एंड्रायड फोन हैं, जिसमें एक मेंबर के डाटा का खर्च करीब 19 रुपए है। मतलब जितने का वे आटा नहीं खा रहे, उससे कही ज्यादा वे अपने मोबाइल डाटा पर खर्च कर रहे हैं.
केस-2
कंचनपुर में रहने वाले अरूण चौहान के तीन बेटे समेत घर में कुल पांच लोग हैं। सभी के पास अपना मोबाइल फोन है। उनके सभी बेटे और पत्नी का डेटा डेली 10 जीबी से ऊपर खर्च होता है। इसके लिए हर माह करीब 1996 रुपए खर्च करते हैं, जबकि घर में रोटी सिर्फ एक केजी आटे की बनती है। जिस पर सिर्फ 960 रुपए ही खर्च करते हैं। ये भी आटा से ज्यादा खर्च कर रहे हैं.
ये दो सिर्फ एग्जाम्पल भर है। बनारस में कमोबेश हर फैमिली में यही कहानी है। ऐसा कोई घर और ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो एंड्रायड मोबाइल फोन और उसमें इंटरनेट डेटा का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक इंटरनेट डाटा के मकडज़ाल में इस कदर फंस चुके हैं कि अब वे चाहकर भी इससे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। हालांकि इसमें सबसे ज्यादा यंगस्टर्स और महिलाएं बताई जा रही हैं। ये वे लोग हैं, जो खाने से कंप्रोमाइज कर रहे हैं मगर मोबाइल डेटा से नहीं.
रोटी से ज्यादा ओटीटी
एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि इंसान दिन-रात मेहनत करके सिर्फ दो जून की रोटी के लिए पैसा कमाता है, लेकिन अब ये दो जून की रोटी बाद में, पहले ओटीटी के लिए पैसा कमा रहे हैं। इन्हें चिंता दो जून की रोटी की नहीं बल्कि दो जीबी डेटा की सता रही है। जब से वेब सीरीज का जमाना आया है तब से युवाओं के मोबाइल का ज्यादातर डाटा ओटीटी और रील्स देखने और बनाने पर खर्च हो रहा है.
ओटीटी की इंपॉर्टेंस
जानकारों की मानें तो लोगों की मूलभूत जरूरत को बताते हुए 70 के दशक में एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था रोटी कपड़ा और मकान। अगर यह फिल्म आज बनती तो उसका नाम शायद ओटीटी, कपड़ा और मकान होता। क्योंकि आज के यंगस्टर्स में रोटी से ज्यादा ओटीटी का इंपॉर्टेंस है.
सोशल मीडिया पर ध्यान
मोबाइल एडिक्शन एक्सपर्ट रूची चौरसिया बताती हैं कि यंगस्टर्स का पूरा ध्यान सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर टिक गया है। कोई ओटीटी पर तो कोई डेटिंग एप पर चैट करने में व्यस्त है। कोई स्टंट और करतब दिखाते हुए रील्स बनाने में परेशान हैं। ये सोचते हैं कि मोबाइल ही इनकी दुनिया है और यही पर इनका सबकुछ है। लेकिन, कोई ये नहीं समझ रहा कि मोबाइल इनसे है ये मोबाइल से नहीं हैं। जब तक लोग इस बात को नहीं समझेंगे तब तक आटा और डाटा का फर्क खत्म नहीं होगा।
फैक्ट फाइल
32
रुपए का है एक केजी आटा
19
रुपए का एक जीबी डाटा
240
रुपए हर माह प्रति व्यक्ति खर्च होता है आटा पर
399
रुपए हर माह प्रति व्यक्ति खर्च होता है डाटा पर
50
लाख के करीब है बनारस की आबादी
25
लाख के करीब है फीमेल्स
90
फीसदी से ज्यादा लोग कर रहे मोबाइल का इस्तेमाल
70
फीसदी के करीब लोग कर रहे इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल
क्या-क्या है आपके इंटरनेट की थाली में
किसका क्या मतलब
रोटी- ओटीटी
ट्विटर - दाल
इंस्टाग्राम- अचार
फेसबुक- खीर
रील्स- रायता
पबजी- पापड़
वाट्सअप- मिक्स वेज
डेटिंग एप- साही पनीर
यूट्यूब- साही पुलाव
डाटा हो या आटा, हर चीज के इस्तेमाल की एक लिमिट होती है। अगर कोई भी चीज अनलिमिटेड होगा तो उसका साइड इफेक्ट भी होगा। समाज जिस तरफ जा रहा है, उसमें हर किसी को समझाना काफी मुश्किल है। जो वर्किंग हैं, उनके डाटा खर्च की बात तो समझ आती है, लेकिन नॉन वर्किंग सिर्फ शौक में अपना डेटा बर्बाद कर रहे हैं.
डॉ। अंशु शुक्ला, सोशियोलॉजिस्ट, डिपार्टमेंट ऑफ सोशल साइंस, बीकेएम
हर चीज की लिमिट होती है। अगर आप रात में दो बजे तक जगकर इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और खत्म होते ही और खरीद रहे हैं तो इसका कोई मतलब नहीं है। इसका साइड इफेक्ट आपके बॉडी और डेली रूटीन पर पड़ रहा है। आप हाउस वाइफ हों या यंगस्टर्स, सभी के लिए एक लिमिट होनी चाहिए। लिमिट क्रास करेगा तो आने वाले दिनों में लोगों को इसके परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे.
डॉ। अनामिका सिंह, एपी, डिपार्टमेंट ऑफ फिलॉसपी, एएमपीजी कॉलेज