वाराणसी (ब्यूरो)। अभी ठंड पूरी तरह से बढ़ा भी नहीं है कि उससे पहले दमा और सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गई है। मौसम में बदलाव और शहर की बिगड़ी आबोहवा से सांस संबंधी बीमारियों को लेकर मरीज अस्पताल पहुंचने लगे हैं। सरकारी से लेकर प्राइवेट हॉस्पिटल और क्लिनिकों में सामान्य दिनों की तुलना में वर्तमान में ऐसे मरीजों की संख्या में करीब 30 प्रतिशत तक इजाफा हुआ है। डॉक्टर्स का कहना है कि दिवाली से पहले ही मरीजों की संख्या बढऩा ठीक नहीं है। इससे यह साबित होता है, कि बनारस में धूल और धुएं के मिश्रण से बने स्मॉग का असर बढ़ गया है। मंडलीय अस्पताल के जनरल ओपीडी में डेली करीब 500 मरीज इलाज के लिए आते हैं। इनमें से 100 से ज्यादा बुखार, खांसी के साथ सांस की समस्या लेकर आ रहे हैं। सामान्य रोग विशेषज्ञ डॉ। एके गुप्ता ने बताया कि प्रदूषण का स्तर बढऩे की वजह से उनकी ओपीडी में सांस रोगी मरीजों की संख्या बढ़ गई है। पिछले 10-15 दिनों से डेली 45 से 50 मरीज सांस के आ रहे हैं। जिनकी उम्र 50 से ऊपर है.
तापमान कम होना खतरनाक
डॉक्टर्स की मानें तो पहले सांस रोगी मरीज पंप का इस्तेमाल काफी कम करते थे, लेकिन अब मरीज दिन में दो बार कर रहे हैं। उनका कहना है कि काला दमा व अस्थमा के मरीजों के लिए पॉल्यूशन और कम तापमान खतरनाक होता है। अन्य माह की अपेक्षा सर्दियों के चार महीनों (नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी) में अस्पतालों में इनकी संख्या 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। डॉ। गुप्ता का कहना है कि अब डेंगू, मलेरिया के मरीजों की संख्या कुछ कम हुई है, लेकिन सांस के मरीज बढ़ गए हैं। ठंड का सीजन आते ही डेंगू का मच्छर अपने आप ही खत्म हो जाता है। एक सप्ताह पहले तक अस्पताल में सबसे अधिक मरीज बुखार के ही आ रहे थे.
अब स्मॉग का अटैक
बीएचयू के टीबी रोग व चेस्ट रोग विभाग के पूर्व एचओडी डॉ। एसके अग्रवाल का कहना है कि फेस्टिव सीजन में कार्बन डाईऑक्साइड और वायु प्रदूषण के दूसरे तत्वों के स्तर में इजाफा हो जाता है। दीपावली आने से पहले घरों में साफ-सफाई का दौर शुरू हो गया है। घरों से निकलने वाले धूल के कण हमारे फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं। इस तरह हम यह कह सकते हैं कि जहां पहले से शहर में पॉल्यूशन का प्रकोप है उसमें यह धूल आग में घी डालने का काम कर रहा है। यही वजह है कि ठंड आने से पहले सांस और दमा के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। पहले 50-60 वर्ष की आयु वाले लोगों में भी सांस संबंधी समस्याएं होना सामान्य नहीं था, लेकिन पॉल्यूशन और स्मॉग के कारण यह बीमारी 25 से 60 वर्ष की आयु वाले लोगों में होना भी सामान्य बात हो चुका है। ऐसे मरीजों की संख्या में 30 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है। उनका कहना हैं कि कोविड ने पहले लोगों के शरीर को खोखला किया। इसके बाद वायरल फीवर और चिकनगुनिया ने शरीर को तोड़ दिया, अब स्मॉग के चलते सांस और दमा का अटैक होने लगा है।
पहले जहां रोजाना 15 से 20 मरीज जांच के लिए आते थे, वहीं अब हर दिन लगभग 40 से 45 दमा व सांस के मरीज जांच के लिए पहुंच रहे हैं। पहले मरीजों की संख्या दिवाली के बाद बढ़ती थी, लेकिन इस बार पहले ही मरीज बढ़ गए हैं। जैसे-जैसे ठंड बढ़ेगी, वैसे-वैसे सांस और दमा के मरीजों की संख्या बढ़ेगी। अब नए मरीज भी आ रहे हैं, इसमें युवा भी शामिल हैं.
डॉ। एके गुप्ता, फिजिशियन, मंडलीय अस्पताल
इन दिनों लोग कई तरह की बीमारियों से लड़ रहे हैं। कोविड होने के बाद अभी लोगों का शरीर अन्य बीमारियों से लडऩे की क्षमता जुटा भी नहीं पाया था कि वायरल फीवर ने परेशान कर दिया। अब समय से पहले ठंडी के दस्तक देने और स्मॉग होने से सांस के रोगियों की मुसीबत बढ़ गई। उनकी ओपीडी में डेली आने वाले 50 मरीजों में 40 सांस और दमा से पीडि़त पाए जा रहे हैं.
डॉ। एसके अग्रवाल, टीबी रोग व चेस्ट रोग विशेषज्ञ
यह है लक्षण
- तेजी से सांस लेना.
- बलगम के साथ खांसी आना.
- सीने में इंफेक्शन व जकडऩ होना.
- कमजोरी आ जाना
ये बरतें सावधानी
मरीजों को हमेशा गर्म कपड़े पहनने चाहिए
बाहर निकलने पर नाक और मुंह को कवर जरूर करें
गंभीर मरीज बाहर निकलते समय मास्क का इस्तेमाल करें
अस्थमा और दमा पीडि़तों के कमरे में अंदर धूपबत्ती न जलाएं.
मरीज के लिए सप्ताह में तीन से चार बार 45-45 मिनट के लिए व्यायाम बेहद आवश्यक है.