वाराणसी (ब्यूरो)। भगवान भास्कर की उपासना से जुड़ा अटल साधना का अनूठा महापर्व डाला छठ पहला नियम-संयम नहाय-खाय के साथ शुक्रवार से शुरू हो गया। इसके साथ ही कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि 20 नवंबर तक आस्था और श्रद्धा की अटूट धार्मिक मान्यताएं निभायी जाएंगी। जबकि व्रती 36 घंटे का निराजल व निराहार उपवास का पालन 18 नवंबर की शाम खरना का विधान पूरा करने के बाद आरंभ कर देंगे.
पहला अघ्र्य 19 को
मुख्य एवं पहला अघ्र्य 19 नवंबर को अस्ताचलगामी भगवान भाष्कर को दिया जाएगा। इसके लिए सभी घरों में तैयारियों पूरी हो चुकी है। फल से लेकर गन्ना और सूप की खरीदारी हो चुकी है। अब भगवान भाष्कर को पहला अघ्र्य देने की तैयारी में है व्रती महिलाएं।
ध्यानपूर्वक निभाया गया विधान
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय-खाय्र के तहत सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया गया। सेंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी (लौकी की सब्जी और भात) मिट्टी के नए चूल्हे पर पकाया गया। फिर छठव्रतियों ने पवित्रता के साथ पकाए गए शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत की। व्रतियों द्वारा भोजन करने के बाद परिवार के अन्य सदस्यों ने भोजन ग्रहण किया्र। वहीं, महिला श्रद्धालुओं ने गंगा तट सहित पवित्र कुंडों व सरोवरों के किनारे के पूजन स्थल को शुद्ध किया। तत्पश्चात वहां मिट्टी का लेपन कर वेदी बनायी और दीया-बाती कर छठ पूजा की शुरुआत की.
दिनभर चलती रही खरीदारी
पंचमी, षष्ठी व सप्तमी तिथि पर भी व्रती महिलाएं इसी स्थल पर पूजन-अर्चन करेंगी। दिनभर पूजन सामग्रियों की खरीदारी का भी सिलसिला चलता रहा। पूजन सामान की खरीदारी में महिलाएं जुटी रहीं। कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन ग्रहण करेंगे। दिनभर उपवास के बाद प्रसाद रूप में भोजन ग्रहण करना ही खरना कहलाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। घाटों पर भी पूजन के लिए सीढिय़ों पत्थरों को घेरा गया है.