-सुंदरपुर की रहने वाली गृहणी गरीब बच्चों को पढ़ाकर संवार रहीं उनका जीवन

-कई बच्चों का कराया स्कूलों में एडमिशन, लड़कियों की कराई शादी

VARANASI

ट्रैफिक सिग्नल या मंदिरों, मॉल्स के इर्द-गिर्द पैसे या खाना मांगते बच्चों को तो देखा ही होगा। कभी सोचा है आपने कि कौन हैं ये बच्चे? किनके हैं? कहां रहते हैं? क्या खाते हैं? शायद नहीं। मगर सुंदरपुर की रहने वाली एक साधारण सी गृहिणी के मन में ये सवाल कौंधा तो उसने जवाब ढूंढने की कोशिश भी की। इसके साथ ही शुरुआत हुई एक ऐसे पहल की जिसने कई गरीब-बेसहारा बच्चों की जिंदगी में खुशियों के रंग भर दिया और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।

अफसर बनने का देख रहे ख्वाब

सुंदरपुर की रहने वाली प्रतिभा सिंह गरीब और मजबूर बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उनका भविष्य संवारने के लिए हर जतन करती हैं। यह काम आसान नहीं था, तमाम बाधाएं थी लेकिन उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे सब नतमस्तक हुए। प्रतिभा ने वर्ष 2014 से अपने घर के एक कमरे से गरीब बच्चों का जीवन संवारने की शुरुआत की। पास की कंजड़ बस्ती के उन बच्चों को जुटाया जो दिनभर भीख मांगते या छोटी-मोटी चोरियां किया करते थे। ज्यादातर बच्चे आने को तैयार नहीं थे, कुछ के माता-पिता उन्हें भेजकर अपनी आमदनी का जरिया खराब नहीं करना चाहते थे। प्रतिभा ने बच्चों को अच्छा भोजन देने का लालच दिया। यह तरकीब काम कर गयी। आज प्रतिभा के इस स्कूल में 18 बच्चे हैं, जो पढ़-लिखकर बड़े अफसर बनने का ख्वाब देख रहे हैं।

बेटे के सवाल ने झंकझोर दिया

प्रतिभा बताती हैं कि अपने बेटे के हर जन्मदिन पर वह गरीब बच्चों में कपड़े और टॉफिया बांटा करती थीं। एक जन्मदिन पर पास की बस्ती में बेटा साथ गया। वहां तंगहाली में जिंदगी गुजार रहे बच्चों को देखकर पूछा कि 'ये बच्चे ऐसा जीवन क्यों जीते हैं?' बेटे के इस मासूम सवाल ने प्रतिभा को कई दिनों तक परेशान रखा। इसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि इन बच्चों के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी। शुरुआत में तमाम दिक्कतें आई मगर फिर दोस्तों, संस्थाओं और कई समाजसेवियों की मदद मिली। कुछ ऐसे भी हैं जो लगातार उन्हें आर्थिक मदद देते रहते हैं।

पढ़ाई की शुरुआत, एडमिशन का प्रयास

घर के कुछ कमरों को क्लासरूम की शक्ल देकर प्रतिभा इन बच्चों में पढ़ाई की प्रेरणा डालती हैं। यहां इनके पढ़ने और खेलने के साथ एक वक्त के भोजन का भी प्रबंध किया जाता है। बाद में इन बच्चों का एडमिशन स्कूलों में कराया जाता है। प्रतिभा बताती हैं कि कई कॉन्वेंट स्कूलों ने बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाई का जिम्मा उठाया है। आरटीई के तहत भी वह अब तक 35 से ज्यादा बच्चों का एडमिशन स्कूलों में करा चुकी हैं।

चार बेटियों की शादी भ्ाी कराई

2015 और 16 में प्रतिभा ने इन्हीं गरीब परिवारों की चार बेटियों की शादी भी कराई। वह बताती हैं कि यह लड़कियां उनके पास पढ़ने के साथ ही काम में हाथ भी बंटाती थीं। इनमें सगी बहनें पिंकी-रिंकी और ममता-पिंकी हैं।

जारी रहेगी लड़ाई

नन्हें हाथों में कटोरे की जगह कलम पकड़ाने की इस लड़ाई में दिक्कतें तमाम हैं। प्रतिभा बताती हैं कि कई बार लोग उनकी नीयत पर शक करते हैं। कई बार बच्चों के मां-बाप उन्हें स्कूल भेजने से इनकार कर देते हैं। एक वक्त ऐसा भी आया जब पति को बिन बताए प्रतिभा ने स्कूल के खर्च के लिए अपने कुछ गहने भी गिरवी रख दिए थे। प्रतिभा कहती हैं कि इसके बावजूद बच्चों की बेहतरी के लिए यह लड़ाई जारी रहेगी।