वाराणसी (ब्यूरो)। यूक्रेन और रूस के बीच छिड़ी जंग से बचकर आए बनारस के बेटे-बेटियों ने चुनावी जंग में उत्साह से भाग लिया और वोटिंग की जिम्मेदारी का निर्वहन किया। इन बच्चों ने कहा कि जब विदेश में थे और जंग के बीच जान फंसी थी, तब समझ में आया कि स्वदेश क्या होता है। इसलिए इस बार जब लोकतंत्र के महापर्व में अपनी जिम्मेदारी निभाने का मौका मिला तो हम चूक कैसे सकते हैं? आज हमने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया तो जो खुशी मिली, उसका वर्णन नहीं कर सकते.
देना था वोट तो भूली कड़वी यादें
यूक्रेन से लौटीं प्रियंका यादव ने बताया कि युद्ध से बिगड़े हालात में घर वापसी की उम्मीद छोड़ दी थी। घर आने के बाद जब मतदान देने की बारी आई तो कड़वी यादों को भूल कर अपने परिवार के साथ मत का प्रयोग कर लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की।
वोट डाल चहकी कृतिका
कृतिका सिंह अब एक नई जिंदगी की तरफ बढ़ चुकी है। सोमवार को अपने परिवार के साथ उत्साहपूर्वक मत का प्रयोग कर लोकतंत्र के उत्सव की भागीदार बनी। जब वह मतदान केंद्र पर वोट डालकर लौटी तो उसके चेहरे की मुस्कान देखते ही बन रही थी.
हुई गर्व की अनुभूति
यूक्रेन में रह कर मेडिकल की पढ़ाई करने वाली वर्तिका अग्रहरी ने बताया कि उसे विश्वास ही नहीं हो रहा है बिगड़े हालात से निकलकर अब वह अपने घर में है। वर्तिका ने बताया कि लोकतंत्र के महापर्व में शामिल होकर वह गर्व का अनुभव कर रही है.