वाराणसी (ब्यूरो)। दारानगर निवासी अनिल शाह अपने बच्चे को ऑटो से स्कूल भेजते हैं। स्कूल बस किराया से ऑटो महज 200 रुपए कम लेता है और शिवपुर स्थित एक स्कूल में उतार देता है। 100-200 रुपये के चक्कर में बच्चे के साथ ये रिस्क से कम नहीं है। इसी तरह छोटी पियरी के रहने वाले रितेश केशरी भी अपनी बच्ची के साथ रिस्क लेते हैैं। वह भी अपनी बच्ची को सिगरा स्थित एक स्कूल में पढऩे के लिए ऑटो से भेजते हंै। ऑटो वाला उनसे हर महीने 1000 रुपए लेता है। किराया सस्ता होने की वजह से वह अपनी ही बच्ची की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
यह तो सिर्फ दो केस हैं, लेकिन शहर में कई ऐसे अभिभावक हैं जो किराया सस्ता होने की वजह से अपने बच्चों को ऑटो में बैठाकर स्कूल भेज रहे हैं, जबकि यह स्पष्ट है कि आटो और ई रिक्शा से बच्चों को स्कूल भेजना कितना रिस्की है। लिहाजा पेरेंट्स को भी इस बचत को छोडऩा होगा, नहीं तो कभी भी आरुषि जैसा दुर्घटनाकांड हो सकता है।
दूरी से तय होता किराया
स्कूल के वाहन हों या फिर ऑटो चालक, घर से स्कूल की दूरी के अनुसार किराया तय करते हैं न कि किलोमीटर से। पांच किलोमीटर तक घर से स्कूल की दूरी है तो इसके लिए ऑटो चालक 800 से 1000 रुपए लेते हैं। वहीं, स्कूल संचालक 1200 से 1300 रुपए लेते हैं। पांच किलोमीटर से अधिक डिस्टेंस होने पर किराया बढ़कर 1500 से 1800 रुपए कर देते हैं। वहीं, ऑटो चालक भी 1200 से 1400 रुपए लेते हंै.
एक ऑटो में 6 से 7 बच्चे
ऑटो चालक भी अपने ऑटो में 6 से 7 बच्चों को ठंूसकर बैठा लेते हैं। किसी को सीट मिलती है किसी को नहीं। ऐसी स्थिति में ऑटो के साइड में लगे रॉड पर ही बैठा लेते हैैं। एक बच्चे से 800 रुपए भी किराया लेते हैं तो 7 बच्चों का किराया 5600 रुपए हो गया। इसी तरह से स्कूल की दूरी के अनुसार से किराया तय करते हैं.
167 सीबीएसई स्कूल
सीबीएसई स्कूल की कोआर्डिनेटर गुरमीत कौर ने बताया, 167 सीबीएसई स्कूलों में बसों का किराया तय है। किलोमीटर से नहीं रेडियस के अनुसार किराया लिया जाता है। बच्चों की स्कूल फीस के साथ वाहन शुल्क साथ में जमा होता है। ऐसा कोई पैमाना नहीं रखा जाता कि कम दूरी वालों को रियायत मिले। एक किलोमीटर की दूरी हो या फिर पांच किलोमीटर की दूरी, जो किराया तय किया जाता है। वही लिया जाता है.
फैक्ट एंड फीगर
167 सीबीएसई स्कूल जिले में
1143 परिषदीय व एडेड स्कूल जिले में
12 आईसीएसई स्कूल
स्कूल वाहन में सुरक्षा से जुड़े नियम
-बस के आगे व पीछे की तरफ स्कूल बस लिखा होना चाहिए.
-बस पीले रंग में रंगी होनी चाहिए.
-सीटों से अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए.
-खिड़कियों पर विंडो बार (लोहे की छड़) लगी होनी चहिए.
-फस्र्ट एड बॉक्स और अग्निशमन यंत्र होना चाहिए.
-बस पर स्कूल का नाम व टेलीफोन नंबर लिखा होना चाहिए.
-बस के दरवाजे पर लॉक लगा होना चाहिए.
-बस चालक को भारी वाहन चलाने का पांच वर्ष का अनुभव होना चाहिए.
-चालक के साथ एक सहायक होना चाहिए.
-बस में कम से कम एक अध्यापक या अध्यापिका होनी चाहिए.
-सेफ्टी बेल्ट और दो इमरजेंसी गेट होने चाहिए.
-गति को नियंत्रित करने को स्पीड अलार्म होना चाहिए.
स्कूलों का किराया (रु। में)
01 से 05 किमी। तक - 1200-1400
06 से 10 किमी। तक - 1400-2000
11 से 15 किमी। तक - 2000-2500
ऑटो का किराया (रु। में)
01 से 05 किमी.- 800-1000
06 से 10 किमी। -1000-1300
11 से 15 किमी। - 1300-1800
(नोट : किराया स्कूलों व आटो चालकों के मुताबिक है.)
ऑटो से बच्चों को स्कूल छोडऩा रिस्की होता है। इसमें अभिभावकों को सोचना चाहिए क्योंकि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हंै.
दीपक बजाज, चेयरमैन, जयपुरिया स्कूल
बच्चों का किराया सबसे अधिक लग रहा है। अगर स्कूल वाले बसों का किराया कम कर दें तो ऑटो से कोई क्यों भेजेगा.
राजेश कुमार सिंह, प्रहलादघाट
ऑटो से बच्चों को भेजना रिस्की है। स्कूल संचालक को भी बसों का भाड़ा कम करना चाहिए, जिससे अभिभावकों को सहूलियत मिले.
प्रतीक गुप्ता, विशेश्वरगंज