वाराणसी (ब्यूरो)। एसएस हॉस्पिटल-बीएचयू के कॉडियोलॉजी डिपार्टमेंट में मरीजों के बेड पर लगे डिजिटल लॉक और हॉस्पिटल के एमएस पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप से आज हर कोई वाकिफ हो चुका है। पिछले दो साल से चल रही बेड पर लगे लॉक की लड़ाई अब अस्पताल से निकलकर सड़क तक आ गई है। इस मसले को लेकर पिछले 9 दिन से आमरण अनशन पर बैठे डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो। ओमशंकर की बात पर हर कोई यकीन कर रहा है। लोग उनके समर्थन में लगातार आगे आ रहे हैं, लेकिन बीएचयू प्रशासन की तानाशाही चरम पर है, लेकिन प्रो। शंकर अपने बात पर कायम हैं। उनका कहना है कि उन्होंने अब तक जितनी भी बातों को सार्वजनिक किया है, उन सब का सबूत उनके पास है। इसलिए वो किसी से डरने वाले नहीं है। अगर उनकी बाते झूठी या गलत है तो बीएचयू उन पर मानहानि क्यों नहीं करता। क्यों चीजों को सार्वजनिक नहीं की जा रही है। हॉस्पिटल एमएस प्रो। केके गुप्ता जिस एनएमसी रूल की बात कर रहे हैं उसे तो वे खुद ही नहीं मानते। इस नियम को भी उन्होंने ताक पर रखकर बेड का डिस्ट्रिब्यूशन किया है.
कार्डियक में 3 यूनिट, फिर भी सिर्फ 47 बेड
प्रो। शंकर कहते हैं कि कार्डियक डिपार्टमेंट में 3 यूनिट है, जिसके पेपर पर साइन एमएस ने ही किया है। अब वो ये दलील दे रहे हैं कि इस डिपार्टमेंट में सिर्फ एक ही यूनिट है। एनएमसी रूल के हिसाब से एक यूनिट को मैक्सिमम 30 बेड दिया जा सकता है। जब हमारा विभाग 3 यूनिट का है तो एमएस को विभाग को स्वेच्छा से 90 बेड देने में क्या परेशानी है। एमएस हमारी मांगों को गलत ठहराने में लगे हैं और सभी अधिकारियों और मीडिया को भ्रमित और गुमराह कर रहे हैं। बेड डिस्ट्रिब्यूशन कही भी एनएमसी रूल के हिसाब से नहीं किया गया है। नियम के हिसाब से बीएचयू में एमबीबीएस के हिसाब से 4 यूनिट पर 100 बेड होते हैं। लेकिन यहां इस नियम को ताक पर रख दिया गया है.
जहां 100 की जरूरत, वहां 150 पार
बेड न मिलने की समस्या सिर्फ कॉर्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में ही नहीं, बल्कि नेफ्रोलॉजी, बर्न यूनिट और इमरजेंसी वार्ड में भी है। इमरजेंसी में पहुंचने वाले मरीजों के अटेंडेंट अपने मरीजों को स्ट्रेचर पर ही लेकर पड़े रहते हैं। मगर बेड नहीं मिलता, जबकि यहां बेड की कोई कमी नहीं है। एमएस डॉ। केके गुप्ता कहां कितने बेड है इसकी जानकारी तो शेयर नहीं कर रहे हैं, लेकिन दैनिक जागरण आईनेक्स्ट रिपोर्टर के हाथ अब यह लिस्ट लग गई है। इस लिस्ट में कुछ ऐसे विभाग को दिखाया गया है जहां एनएमसी रूल को बिल्कुल भी फॉलो नहीं किया गया है। 4 यूनिट के जिस मेडिसिन वार्ड को 100 बेड देने चाहिए, वहां 169 बेड दे दिया गया है। इसी तरह से चार यूनिट के जनरल सर्जरी डिपार्टमेंट में भी बेड की संख्या बढ़ाकर 162 कर दिया गया है। वहीं सिर्फ एक यूनिट के ऑप्थालमोलॉजी में भी 100 बेड दिए गए हैं। इसके अलावा तीन फ्लोर पर गायनी वार्ड में 113 बेड अलॉट किए गए हैं। जहां सबसे ज्यादा बेड की जरूरत है उस बर्न वार्ड में मात्र 6 बेड दिए गए हैं.
ये है एमएस की दलील
अस्पताल के किस विभाग को कितने बेड दिए गए। उसके बारे में बताने के बजाए एमएस केके गुप्ता सिर्फ एनएमसी के नियम की दलील दे रहे हैं। उनका कहना है कि एनएमसी नियमावली कहती है कि अगर डीएम या एमसीएस कैंडिडेट्स एक है तो 16, तीन है तो 20 और 5 है तो 30 बेड होने चाहिए। कहने का मतलब ये भी है कि एक यूनिट को मैक्सिमम 30 बेड दिया जा सकता है। सिर्फ बेड बढ़ाने से काम नहीं चलेगा। उसके लिए मैन पावर भी चाहिए। बेड बढ़ जाएगी तो उस पर एडमिट मरीज की जिम्मेदारी कौन लेगा। 90 बेड पर 15 रेजिडेंट चाहिए कहां से आएंगे। हर विभाग को एनएमसी के रूल के हिसाब से ही बेड उपलब्ध कराए गए हैं। जब तक रेजिडेंट डॉक्टर नहीं बढ़ेंगे तब तक कहीं भी बेड की संख्या नहीं बढ़ सकती।
अगर एमएस यूनिट वाइज बेड देने की बात कह रहे हैं तो उनकी तीन यूनिट हैं। इस लिहाज से तो उन्हें हमे स्वेच्छा से ही 90 बेड दे देना चाहिए, हॉस्पिटल प्रबंधन झूठ का प्रचार कर रहा है। अगर इतने सत्यवान है तो बेड डिस्ट्रिब्यूशन की लिस्ट सार्वजनिक क्यों नहीं करते.
प्रो। ओमशंकर, एचओडी, कार्डियोलॉजी- बीएचयू