वाराणसी (ब्यूरो)। नए शैक्षिक सत्र शुरू होते ही अभिभावकों को महंगे किताब-कॉपी को खरीदने की चिंता सताने लगी है। पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष सभी कक्षाओं का कोर्स, किताब-कॉपी और स्टेशनरी के सामान के दाम तकरीबन 25 से 30 फीसदी तक बढ़ गए हैं। कम आय में घर खर्च चलाने के साथ अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का सपना देखने वाले अभिभावक लगातार बढ़ती महंगाई से परेशान हैं। एनसीईआरटी की किताबों में जहां 20 फीसदी तक की तेजी आई है। वहीं, दूसरी तरफ निजी प्रकाशकों के कोर्स की किताबों के दाम तो 50 फीसदी तक बढ़ गए हैं.
प्रकाशकों से महंगी मिल रही किताब
गुरुबाग में बुक स्टोर संचालकों ने बताया कि पिछले छह महीने में कागज के दाम 28 फीसदी तक बढ़े हैं। इस कारण सभी कक्षाओं का कोर्स पिछले वर्ष की तुलना में 25 से 30 प्रतिशत तक महंगा हो गया है। कीमतों में काफी उछाल आया है। कक्षानुसार किताबों के दाम 500 से लेकर 1500 तक बढ़े हैं। प्रकाशकों और ड्रिस्टीब्यूटर की तरफ से ही कोर्स महंगा आ रहा है, इसीलिए यहां किताबों के दाम बढऩा लाजिमी है। कोर्स के अलावा बैग, यूनिफॉर्म के दाम भी बढ़े हैं।
मुनाफे के चक्कर में बदल देते कोर्स
अभिभावकों का कहना है कि निजी स्कूल ज्यादा मुनाफे के चक्कर में हर साल कोर्स बदल देते हैं। साथ ही निश्चित दुकानों से ही किताबें खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। जिस वजह से अभिभावकों को मजबूरन हर साल नई किताबें खरीदने पड़ती हैं। निजी स्कूलों के हर साल कोर्स बदलने की नीति पर रोक लगनी चाहिए और सरकार को सभी बोर्ड के स्कूलों में समान रूप से एनसीईआरटी की किताबों को लागू करना चाहिए। ताकि गरीब अभिभावक भी अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिला सकें।
कम पेज की कॉपी के ज्यादा दाम
रजिस्टर और कॉपी के दाम में बढ़ोतरी तो हुई है लेकिन पेज की संख्या कम हो गई है। 120 पेज की 20 रुपये कीमत वाली कॉपी अब 80 पेज की हो गई है, जबकि कीमत 25 रुपये पहुंच गई है। वहीं, 50 रुपये वाली 200 पेज की कॉपी अब 60 रुपये में 120 पेज की हो गई है। 30 रुपये वाली रफ कॉपी 70 रुपये में मिल रही है। इसके अलावा तीन रुपये का बॉल पैन अब चार रुपये और पांच रुपये में मिल रहा है। 100 रुपये से कम में ज्योमेट्री बॉक्स मिलना मुश्किल हो रहा है.
निजी स्कूल ज्यादा मुनाफे के चक्कर में हर साल कोर्स बदल देते हैं। साथ ही निश्चित दुकानों से ही किताबें खरीदने के लिए मजबूर करते हैं, जिस वजह से अभिभावकों को मजबूरन हर साल नई किताबें खरीदने पड़ती हैं.
वंदना जायसवाल
अभिभावकों के लिए घर खर्च के साथ बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो रहा है। महंगाई तो कम होनी ही चाहिए। साथ में ज्यादा मुनाफे के लिए निजी स्कूल हर साल कोर्स बदल देते हैं इस पर रोक लगनी चाहिए.
प्रज्ञा विश्वकर्मा
पहले एक बार किसी क्लास की किताबें खरीदकर आती थीं तो उससे भाई-बहन और रिश्तेदारों के लड़के भी पढ़ लेते थे। जेब पर लोड भी नहीं बढ़ता था। अब तो हर साल किताबें बदल जा रही हैं, इस पर रोक लगना चाहिए.
उपमन्यु सिंह
कोर्ट ने कोरोना काल में वसूली गई फीस का 15 फीसद वापस करने का आदेश दिया था, जिसका अभी तक किसी स्कूल ने पालन नहीं किया। शासनादेश के बाद प्रशासन भी इन निजी स्कूलों के आगे लाचार दिखा रहा है.
संजय शर्मा