वाराणसी (ब्यूरो)। बनारस में सर्दी का असर कम होते ही सभी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ उमडऩे लगी है। महंगाई, बेरोजगारी, पिछले दो लाकडाउन, परिवारिक समस्या, काम-धंधों में नुकसान, प्रतिस्पर्धा, परीक्षा, अमीर बनने की ख्वाहिश, डिजिटल वल्र्ड और विपरित परिस्थिति में धैर्य खोने वाले तेजी से मानसिक रोगी बन गए हैैं। वाराणसी मानसिक चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ अमरेंद्र कुमार ने बताया कि मनोरोग के शिकार बच्चे, नौजवान और बुजुर्ग सभी हो रहे हैैं। मानसिक रोगियों में 20 से 35 आयुवर्ग के 60 फीसदी पेशेंट हैैं। सर्दी कम होते और तापमान में इजाफा होने से मानसिक रोगियों की संख्या में इजाफा भी देखने को मिल रहा है। रोजाना ओपीडी में 600 से अधिक पेशेंट पहुंच रहे हैैं। इनमें साइकोसिस, डिप्रेशन और मेनिया के पेशेंट हैैं.
दौर के हिसाब से बढ़ रही चुनौतियां
मनोरोग एक्सपर्ट के अनुसार दिसंबर और जनवरी में हल्के लक्षण वाले पेशेंट को परेशानी होती है और उचित इलाज नहीं मिलने से ऐसे पेशेंट क्रिटिकल कंडीशन में भी जा सकते हैैं। बनारस में मानसिक पेशेंट को रोग से उबरने के हौसले पर कोविड ने तो प्रभावित किया ही था। अब बदलते दौर में हवा, पानी, शोर, धूल-धुआं और चकाचौंध मानसिक रोगियों पर बुरा असर पड़ रहा है.
बिखर रहा सामाजिक तानाबाना
कमोबेश अब कोई ऐसा गांव, कस्बा, कॉलोनी और इलाका नहीं होगा, जहां आधुनिकता की आंधी न बहती हो। गांव टूटकर कस्बे, कस्बे बदलकर शहर होते जा रहे हैैं। अभी हाल ही में बनारस के 84 गंाव नगर निगम के शहरी सीमा में शामिल कर लिए गए हैैं। इससे सीधा-सादा जीवन गुजारने वाले नागरिकों को शहरी भागदौड़ व मिजाज गवारा नहीं हो रहा है। साथ ही समाज में बढ़ती नशाखोरी भी बड़ा कारण है। लंबे समय तक सामाजिक मेल-मिलाप से अलग-थलग रखने पर इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.
नुकसान पहुंचाने के बढ़े केस
मानसिक अस्पताल की ओपीडी में क्रिटिकल कंडीशन वाले मरीजों की तादात रोजाना सौ से पार है। जिनको अचानक सुनाई देता है कि उन्हें खुद को मारना है, तो कभी अपने बच्चों को मारने के लिए कोई कहता हुआ सुनाई देता है। आसपास से गुजर रहे व्यक्ति को तेजी से धक्का मार देना है। यहां ऐसे पेशेंटों का इलाज किया जा रहा है। लेकिन, अभी बनारस में ऐसे रोगियों में बीमारी के स्तर के जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। सिर्फ लक्षण के आधार पर दी दवा दी जा रही है.
केस-1
फ्यूचर को लेकर अवसाद
कई सालों से इलाहाबाद में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले 28 वर्षीय संजय (चौबेपुर, बदला हुआ नाम व पता) का कहीं सेलेक्शन नहीं हो पाया। लिहाजा, अपने फ्यूचर को लेकर संजय अवसाद में रहने लगा। इसी में दो साल का लॉकडाउन भी लग गया। लंबे समय का अकेलापन संजय को तोड़ कर मनोरोगी बना दिया। मानसिक असंतुलन होने से को घायल करने के साथ संजय दूसरों को भी नुकसान पहुंचा देता है। इनका इलाज चल रहा है.
केस-2
गुमसुम बैठी रहती है मोना
पिंडरा क्षेत्र की 35 वर्षीय मोना (बदला हुआ नाम) सरकारी स्टाफ हैैं। परिजनों ने बताया कि मोना को सदैव डर लगता है, भीड़ में जाने से घबराहट, उल्टी-सीधी बातें, रात में घूमने का प्लान, अचानक जोर-जोर से हंसना और रोने लगना। तीन साल पहले से नाम। पता और काम भूलने के हल्के सिम्पटम्स थे। इनका इलाज तो चल ही रहा है। लेकिन स्वास्थ्य में जैसा चाहिए, वैसा सुधार नहीं हो पाया.
इस लक्षण के बढ़े पेशेंट
-अभी-अभी की बात को भूल जाना
-कन्फ्यूजन या भ्रम की स्थिति में पड़ जाना
-एकांत का आदी होना
-हाईफाई रहना, अचानक से रोना और अचानक से हंसने लगना
-रात में हंसना और रोना
-अपनी बात किसी पर थोपना, नहीं मानने पर हिंसा पर उतर आना
-भीड़ में जाने से घबराहट
-काम में मन नहीं लगना और बेचैनी का बढऩा
-नींद नहीं आने और भूख की कमी
-रात में अचानक नहाना और कपड़े धोना
आंकड़ों पर एक नजर
तिथि पेशेंट संख्या
24 जनवरी 533
25 जनवरी 578
27 जनवरी 610
28 जनवरी 603
29 जनवरी 595
30 जनवरी 605
कुल- 3524
हाल के दिनों में मानसिक विकार के पेशेंट में इजाफा हुआ है। पेशेंट में रोग की गंभीरता की वजह से टाइम टेकिंग है। ऐसे लोग पेसेंस के साथ समय पर दवा लेते रहें। अन्य रोगों की तरह ही मानसिक रोग भी है। हल्के मानसिक विकार की अनदेखी न करें। तत्काल मनोचिकित्सक को दिखाएं। अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें। समय पर उचित इलाज से मानसिक रोग को जड़ से मिटाया जा सकता है.
डॉ। अमरेंद्र कुमार, प्रमुख अधीक्षक, मानसिक चिकित्सालय