-बैंक में खाता न होने से प्रसूताओं व आशाओं के हाथ खाली
-राजकीय महिला हॉस्पिटल में बच्चों को जन्म देने वाली 28 फीसदी महिलाओं को नहीं मिले रुपये
VARANASI
केस 1
हरहुआ की रहने वाली निर्मला देवी ने सात महीने पहले राजकीय हॉस्पिटल में बच्चे को जन्म दिया था। उन्हें उम्मीद थी कि जननी योजना से मिले पैसे से उनका और उनके बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार हो जाएगी। लेकिन खाता न होने से अभी तक पैसा नहीं मिला।
राजातालाब की रहने वाली शकुंतला देवी ने छह माह पहले बच्चे को जन्म दिया था। लेकिन अभी तक कोई पैसा नहीं मिला है। सोचा था कुछ आर्थिक मदद मिल जाएगी तो बच्चे की देखभाल ठीक से हो जाती। आधार न होने से खाता नहीं खुला।
महिलाओं में जानकारी का अभाव कहें या हॉस्पिटल की लापरवाही, वजह चाहे जो भी हो, मगर बैंक एकाउंट के अभाव में जिले की जननी की सुरक्षा नहीं हो रही। ये दोनों केस यही बता रहे हैं। बीते वर्ष जिले की 1365 महिलाओं के हाथ सिर्फ इसलिए खाली रह गए कि उनके पास बैक एकाउंट नहीं था। ये हम नहीं राजकीय महिला चिकित्सालय की रिपोर्ट कह रही है। यहां प्रेगनेंट विमेन को डिलिवरी के बाद जननी सुरक्षा का लाभ नहीं मिल रहा है। इससे जच्चा-बच्चा का स्वास्थ्य तो खराब हो ही रहा, साथ ही मातृ व शिशु मृत्यु दर बढ़ने का खतरा भी बढ़ रहा है। हॉस्पिटल में आने वाली आधी से ज्यादा महिलाओं के पास बैंक खाता नहीं होता। जिसके कारण हर प्रसूता को योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
28 फीसदी के हाथ खाली
1 अप्रैल 2017 से 28 फरवरी 2018 तक यहां कुल 5047 महिलाओं की डिलिवरी हुई।
1 मार्च 2018 से अभी तक करीब 200 महिलाओं ने शिशुओं को जन्म दिया।
1 साल में यहां 52047 महिलाओं की डिलिवरी कराई गई।
3428 महिलाएं शहरी क्षेत्र से,
1619 ग्रामीण क्षेत्र की है।
3682 प्रसूताओं को ही जननी सुरक्षा योजना का लाभ मिला है।
1365 महिलाओ के हाथ अभी भी खाली हैं।
बैंक नहीं लेते इंट्रेस्ट
हॉस्पिटल प्रबंधन का कहना हैं कि प्रसूताओं को लाभ न मिलने की सबसे बड़ी वजह इनका बैंक खाता न होना है। बहुत सी महिलाओं का खाता आधार से लिंक नहीं है। कई बार बैंकों कर्मचारियों बुलकार प्रसूताओं का खाता खुलवाया गया। लेकिन प्रसूताओं द्वारा खाता मेंटेन न करने से बैंकों ने भी इंट्रेस्ट लेना बंद कर दिया।
ये है योजना
जननी सुरक्षा योजना मातृ व शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए केन्द्र सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) द्वारा संचालित एक सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम है। एनआरएचएम अंतर्गत प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत माता एवं शिशु की मृत्यु दर को घटाना इसका प्रमुख लक्ष्य है।
ऐसे मिलता है लाभ
-प्रसूता का नेशनलाज्ड बैंक में खाता होना जरूरी है।
-हॉस्पिटल में खाता नंबर दर्ज कराने के बाद धनराशि सीधे खाते में पहुंचती है
-संस्थागत प्रसव वाली शहरी महिलाओं को एक हजार जबकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को 1400 रुपये मिलते है।
प्रसूताओं का खाता खुलवाले का प्रयास किया जाता है। लेकिन आईडी या आधार न होने से ऐसा संभव नहीं हो पाता। तीन माह तक मरीजों का इंतजार किया जाता है। उसके बाद पैसे को सीएमओ को भेज दिया जाता है। कुछ तो रकम कम होने की वजह से दोबारा नहीं आती।
डॉ। शैला त्रिपाठी, एसआईसी, महिला चिकित्सालय