वाराणसी (ब्यूरो)। अब सिर्फ वीमेंस ही नहीं मेंस भी इनफर्टिलिटी यानी बांझपन का शिकार हो रहे हैं। इनमें यह समस्या लगातार बढ़ रही है। इन सबके पीछे इनका स्ट्रेस बताया जा रहा है। आफिस का वर्क लोड, प्रेशर, घर की फाइनेंसियल प्रॉब्लम और अनियमित दिनचर्या से मेंस के शुक्राणुओं का डीएनए बार-बार बदल रहा है। मेडिकल के लैंग्वेज में इसे स्पर्म डीएनए फ्रेगमेंटेशन (टूटना) कहते हैं, जो अब इनके पार्टनर यानी वीमेंस के लिए प्रॉब्लम क्रिएट कर रहे हैं। स्पर्म डीएनए फ्रेगमेंटेशन की वजह से वीमेंस को कंसीव (गर्भधारण) करने में दिक्कतें आ रही हैं। एक्सपर्ट की मानें तो जो वीमेंस बार-बार अबॉर्सन का दंश झेल रही हंै, उसके पीछे भी जिम्मेदार मेंस ही माने जा रहे हैं। सिटी में इस तरह के केसेस में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। महिला व प्रसूति रोग विशेषज्ञों की मानें तो अबॉर्सन से जुड़े 50 फीसदी से ज्यादा समस्याएं मेंस में आए ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस की वजह से आ रही हैं। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस जैसे-जैसे बढ़ता है, वैसे-वैसे स्पर्म में एंटीऑक्सीडेंट्स का स्तर घटने लगता है, जो मिसकैरेज होने के चांसेस को बढ़ा देता है.
मेंस में लगातार बढ़ रही इनफर्टिलिटी
एसएस हॉस्पिटल, बीएचयू के महिला एवं प्रसूति विभाग की विभागाध्यक्ष गाइक्नोलॉजिस्ट डॉ। संगीता राय की मानें तो सिर्फ बनारस ही नहीं देशभर में मेंस इनफर्टिलिटी लगातार बढ़ रही है, जिसका असर वीमेंस पर पड़ा रहा है। डिपार्टमेंट में जांच के लिए आने वाले कपल्स में जब मेंस का इंवेस्टीगेशन कराया जाता है तो इनके पैरामीटर्स वीमेन पार्टनर की तुलना में काफी खराब व कम आते हैैं। पहले ये 10 से 15 परसेंट थे, लेकिन अब यह रेशियो बढ़कर 25 इसे 30 परसेंट हो गए हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि जब मेल पार्टनर का स्पर्म टेस्ट कराते हैं तो उसमें मॉर्टिलिटी, काउंट और मार्फोलॉजी देखते हैं। इन सब में कमियां पाई जा रही हैं और अब ये कमियां बढ़ती ही जा रही हंै। इन सब में जब प्रॉब्लम आती है तब डीएनए फ्रेगमेंटेशन इंडेक्स कराते हैं। इसके साथ ही वाइक्रोमोडम डिलेशन भी कराते हैं.
अबॉर्सन के लिए अधिकतर पुरुष जिम्मेदार
गाइक्नोलॉजिस्ट का कहना है कि हाल ही में मैन एंड मिसकैरेज रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि महिलाओं के एक से ज्यादा बार अबॉर्सन के लिए अधिकतर पुरुष जिम्मेदार हैं। पुरुषों में यह समस्या ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के चलते बन रही है। इनमें इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम बढ़ रही है। हैरानी की बात ये भी है कि कम उम्र के युवाओं में ऐसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह भी बताया प्रत्येक 6 वीमेंस में से एक वीमेन में का अबॉर्सन मेन्स के डैमेज स्पर्म की वजह से हो रहा है। इसमें ज्यादातर वीमेंस का अबॉर्सन 20 विक के अंदर कई बार हुआ है.
दो साल पहले संकेत, अब कंफर्म
गाइक्नोलॉजिस्ट डॉ। नेहा सिंह बताती है कि करीब करीब दो साल पहले लंदन के इंपीरियल कॉलेज के एक रिसर्च में भी इसी तरह का संकेत दिया गया था, मगर अब इस बात की पुष्टि हो गई है। क्लिनिकल केमिस्ट्री में पब्लिश हुई इस रिपोर्ट के अनुसार शोध में ऐसी 50 वीमेंस के मेन्स पार्टनर को शामिल किया गया था। रिसर्च में इन वीमेंस के पार्टनर्स के स्पर्म डीएनए काफी कमजोर पाए गए। उनके सीमन (वीर्य) में वे मॉलिक्यूल भी मिले जो डीएनए को लगातार डैमेज करते हैं.
लगातार बढ़ रहा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस
एक्सपर्ट का कहना है कि आजकल के यंगस्टर्स पर काम का बोझ बहुत ज्यादा बढ़ गया है। ऑफिस से लेकर घर तक में वे प्रेशर झेल रहे हैं, इसके चलते वे स्ट्रेस में आ रहे हैं। जिसे कम करने के लिए वे सिगरेट और शराब भी पी रहे हैं। इस तरह की स्थिति को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कहते हैं। यह उनके लाइफ की सबसे खराब स्थिति मानी जाती है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस जैसे-जैसे बढ़ता है, वैसे-वैसे स्पर्म में एंटीऑक्सीडेंट्स का स्तर घटने लगता है। यह समस्या उम्र बढऩे पर होती है, मगर कम उम्र के युवा भी इसकी चपेट में तेजी से आ रहे हैं।
बच्चों का बचपन भी हो रहा बीमार
एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि स्पर्म डीएनए के विखंडन से न केवल पुरुषों की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है बल्कि खराब स्पर्म डीएनए से जन्मे बच्चे भी बचपन में कई बीमारियों से पीडि़त होते हैं। ऐसे बच्चों में मानसिक असंतुलन, रेटिनोब्लास्टोमा (आंखों के कैंसर), मिरगी, ह्दय रोग, हकलाना, अति उत्साह, चिड़चिड़ापन आदि पाया जाता है।
कपल्स भी पा सकेंगे संतान सुख
गाइक्नोलॉजिस्ट का कहना है कि अब स्पर्म डीएनए फ्र गमेंटेशन टेस्ट से मेन्स में नपुंसकता का इलाज हो सकेगा और कपल्स संतान सुख प्राप्त कर सकेंगे। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचने के लिए मेन्स को कुछ समय निकालकर आराम करें। अपने लाइफ स्टाइल में सुधार करने के साथ ही एक्सरसाइज, योगा करें और पौष्टिक आहार लें। मेंस हो या वीमेंस दोनों ही नशे से दूर रहे, स्मोकिंग बिल्कुल भी न करें। इससे अबॉर्सन की आशंका 50 फीसदी तक बढ़ जाती है.
किस उम्र में कितना बदल रहा डीएनए
आयु डीएनए फ्रेगमेंटेशन (फीसदी)
30 से कम 36.0
30 से 39 39.4
40 से 49 42.0
50 से अधिक 47.7
धूम्रपान से स्पर्म डीएनए पर प्रभाव
स्मोकिंग डीएनए फ्रेगमेंटेशन (फीसदी)
नो स्मोकिंग 8.0 (औसतन)
शॉर्ट टर्म स्मोकिंग 18.0
स्मोकिंग 24.0
लांग टर्म स्मोकिंग 30.0
सोर्स--मैन एंड मिसकैरेज
मेन्स में इनफर्टिलिटी की वजह ये भी
प्रदूषण सहित कारक पुरुषों की प्रजनन क्षमता और विशेष रूप से शुक्राणु की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं.
मेन्स में इनफर्टिलिटी के संकेत
-बालों के विकास में असामान्य परिवर्तन
-कम यौन इच्छा
-अंडकोष में और उसके आसपास सूजन
-गांठ या दर्द
-स्तंभन में समस्या
-छोटे अंडकोष
इनफर्टिलिटी की समस्या इन दिनों महिलाओं और पुरुषों दोनों में आम हो चुकी है, लेकिन अब यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा बढ़ गया है। रिसर्च में कही इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मेंस के डैमेज स्पर्म के डीएनए से अबॉर्सन के केसेस ज्यादा बढ़ रहे हैं। मेंस में यह समस्या ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के चलते बन रही है, जिसके चलते इनमें इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम बढ़ रही है.
डॉ। संगीता राय, एचओडी, महिला एवं प्रसूति विभाग, एसएस हॉस्पिटल, बीएचयू
स्पर्म डीएनए फ्रेगमेंटेशन की वजह से वीमेंस को कंसीव करने में दिक्कतें आ रही हैं। ऐसे केसेस लगातार देखने को मिल रहे हैं। बार-बार अबॉर्सन की प्रॉब्लम फेस करने के पीछे जिम्मेदार मेंस हैं, क्योंकि इनमें इनफर्टिलिटी की समस्या बढ़ रही है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस जैसे-जैसे बढ़ता है, वैसे-वैसे स्पर्म में एंटीऑक्सीडेंट्स का स्तर घटने लगता है, जो मिसकैरेज होने के चांसेस को बढ़ा देता है.
डॉ। नेहा सिंह, गाइक्नोलॉजिस्ट, स्वास्तिक हॉस्पिटल