वाराणसी (ब्यूरो)। सीर गोवर्धन में संत रविदास की प्रतिमा का अनावरण करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 फरवरी को आ रहे हैैं। इसको लेकर प्रशासन ने कमर कस ली है। तैयारी जोर-शोर से हो रही है। लेकिन, क्या आपको मालूम है कि काशी में कई स्थानों पर संत रविदास की यादें जुड़ी हुई हैैं। आज हम आपको ऐसे ही एक स्थान से रूबरू कराने जा रहे हैैं। मांडूर नगर में भी संत रविदास का भव्य मंदिर है। यहां भी 24 फरवरी को जयंती के दिन भव्य आयोजन होंगे। इसे लेकर मंदिर समिति की ओर से जबर्दस्त तैयारी चल रही है.
मंदिर का लिया रूप
संत शिरोमणि गुरु रविदास सेवा समिति के सचिव प्रभु प्रसाद के अनुसार मांडूर नगर स्थित संत रविदास की जन्मस्थली ने वर्तमान में मंदिर का रूप ले लिया है। मंदिर के सामने नीम का पेड़ है, जो सदियों पुरानी है। लहरतारा तालाब के किनारे नीम के पेड़ के नीचे बैठकर संत रविदास उपदेश देते थे। इसी पेड़ के नीचे संत रविदास और करीब दास के बीच सामाजिक ताना बाना को लेकर शास्त्रार्थ हुआ था। कबीर और रविदास पड़ोसी और समकालीन थे। संत रविदास की जयंती के मौके पर देश के विभिन्न हिस्से से बड़ी संख्या में रविदास के अनुयायी वाराणसी आते हैं.
प्रतिदिन देते थे उपदेश
काशी के कण-कण में भगवान शंकर का वास है और संतों का स्थान भी है। 15वीं शताब्दी में संत कबीर व संत रविदास ने समाज में भाईचारा बढ़ाने और कुरीतियों को खत्म करने के लिए घूम-घूमकर संदेश दिया था, लेकिन विश्वनाथ मंदिर के रास्ते में मैदागिन पर संत रविदास हर दिन उपदेश दिया करते थे। इसलिए मैदागिन को उनकी उपदेश स्थली कहा गया। इसी जगह पर उन्होंने मीराबाई को भी उपदेश दिया था। संत रविदास के उपदेश से ही मीराबाई ने अध्यात्म और भक्ति की राह पकड़ी थी। संत रविदास ने सामाजिक समरसत्ता के ढांचे को मजबूती प्रदान की है और उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाया है.
संतन में रविदास
कबीर ने संतन में रविदास कहकर इन्हें मान्यता दी है। मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रविदास का बिल्कुल भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है.
मीरा के गुरु
कहते हैं मीरा के गुरु रैदास ही थे। उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से उनके विशिष्ठ गुणों का पता चलता है। उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने समाज में फैली छुआ-छूत, ऊंच-नीच दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचपन से ही रविदास का झुकाव संत मत की तरफ रहा। वे संत कबीर के गुरुभाई थे। मन चंगा तो कठौती में गंगा यह उनकी पंक्तियां मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती हैं.