वाराणसी (ब्यूरो)। चिकित्सा को हमेशा से एक नोबल पेशे में गिना गया है। सहज शब्दों में कहें तो एक ऐसा पेशा जहां आपके हाथ में ईश्वर सुपर पॉवर दे देता है। अब इसे चाहे आस्था कहें, विश्वास कहें या चमत्कार। चिकित्सा जगत में ऐसे कई घटनाक्रम आम हैं, जहां गंभीर बीमारी या दुर्घटना से जूझ रहा व्यक्ति भी मौत के मुंह से वापस आ जाता है। इसमें ईश्वर की माया के साथ एक डॉक्टर की काबिलियत और खुद मरीज का विश्वास भी अहम भूमिका निभाता है। गौर करने वाली बात ये है कि यहां डॉक्टर की काबिलियत भी दो चीजों से जुड़ी है। कोई भी डॉक्टर आपको यह गारंटी नहीं दे सकता कि वह आपको चमत्कारी रूप से स्वस्थ कर देगा। यह आपका उसके प्रति विश्वास होता है, जिसको बनाए रखने के लिए वह पूरी ताकत लगा देता है। ऐसे में बिना गलती अगर डॉक्टर्स को ही हर बात के लिए दोषी ठहराया जाए तो ये कहीं से सही नहीं हो सकता। कई सारी परिस्थितियां बनती है जब डॉक्टर को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।
समय के साथ चिकित्सा सेवा और डॉक्टर्स का रूप भले ही बदला हो लेकिन आज भी लोग डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा ही देते हैं। जिस तरह से मेडिकल साइंस ने तरक्की की है वैसे ही डॉक्टर्स के रोल भी बदले हैं। चिकित्सा सेवा के प्रोफेशनल सर्विस में तब्दील होने के बाद से अक्सर ऐसा देखने को मिला है कि डॉक्टर्स पर तरह-तरह के आरोप लगे हैं। कमर्सियलाइज्ड हो चुके मेडिकल सर्विस में स्पेशलाइजेशन और सुपर स्पेशलाइजेशन का दौर चल पड़ा है। यही वजह है कि अब लोगों को लगने लगा है कि डॉक्टर सेवा नहीं, बल्कि पैसा कमाने में लगे हैं। डॉक्टर्स की सेवा के प्रति सम्मान जाहिर करने के लिए 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है। चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में कोरोना के दौरान डॉक्टर्स की अहमियत समाज के सामने आई। इस दौरान डॉक्टर्स ने भी अपने काम और कार्यशैली से एक नई मिसाल कायम की है। हमने ऐसे ही कुछ चुनिंदा डॉक्टर्स से बात की जो मरीजों के बीच विश्वास बनाकर स्वस्थ्य समाज का निर्माण कर रहे हैं।
1. डॉ। प्रीति अग्रवाल, एचएमओ, एआरटी सेंटर, जिला अस्पताल
कोरोना वायरस महामारी के कारण पैदा हुई स्थिति भला कौन नहीं जानता। हम और आप कभी भी इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि किस तरह से खुद को संक्रमित होने के डर के बावजूद डॉक्टर्स और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों ने लोगों की सेवा की है। कोरोना काल के दौरान अस्पतालों का मंजर बेहद डरावना था। लेकिन, महामारी के बीच डॉ। प्रीति अपने मरीजों की सेवा में ऐसे लगी रहीं। क्योंकि वह जानती थी कि अगर किसी भी एचआईवी पेशेंट की दवा छूटी तो मुसीबत बढ़ सकती है। वे खुद की परवाह किए बगैर निरंतर मरीजों की सेवा में लगी रहीं। खासकर उन गर्भवती महिलाओं की जो एचआईवी से पीडि़त थी। इसके अलावा भी डॉ। प्रीति के सामने कई ऐसे पेशेंट आते हैं, जो रूड बिहैव करते हैं। वे इसे भी बड़ी आसानी से टेकल कर लेती हैं।
2. डॉ। टीना सिंघल, रचना शारीर विभाग-आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज
कोरोना काल के दौरान आयुर्वेद चिकित्सकों ने भी अपने सेवा-भाव को बखूबी समझा और मरीजों की सेवा की। डॉ। टीना भी उन्हीं में से एक हैं। इनका मकसद धन अर्जित करने से ज्यादा मरीजों की सेवा करना है। ओपीडी में आने वाले मरीजों का बिहैवियर कितना ही खराब क्यों न हो मगर वे अपने पेशे की गरिमा बनाए रखते हुए हर चुनौती को खुशी-खुशी स्वीकारते करते हुए अपने पेशेंट की सेवा करती हैं। महिलाओं को स्वास्थ्य और सेहत से जुड़े मुद्दों पर जागरूक करने के लिए वह नि:स्वार्थ भाव से काम कर रही हैं। उनका कहना है कि बीमारी से परेशान होकर ही लोग अस्पताल आते हंै। अगर हम उनके साथ हमारा व्यवहार नम्र नहीं होगा तो हम अपने पेशे की मर्यादा बनाए रखने में नाकाम हो जाएंगे। उनके लिए मरीजों की सेवा उनका पहला धर्म है।
3. डॉ। सीपी गुप्ता-पीडियाट्रिक, मंडलीय हॉस्पिटल
अब चिकित्सा का व्यवसायीकरण हो गया है। ज्यादातर चिकित्सक जहां सरकारी सेवा छोड़ प्राइवेट हॉस्पिटल और क्लिनिक खोलकर मोटी कमाई के चक्कर में लगे हंै। वहीं डॉ। सीपी गुप्ता मंडलीय अस्पताल में अपनी सेवा देते हुए खुश हैं। उनका कहना है कि प्राइवेट से कहीं ज्यादा चुनौतियां सरकारी अस्पताल में फेस करनी पड़ती है। यहां हर क्लास के मरीज आते हैं, जिन्हें फेस करना आसान नहीं होता। फिर भी वे हर सेचुएशन को हैंडल कर लेती है, क्योंकि उन्होंने इस पेशे को सिर्फ धन कमाने के लिए नहीं बल्कि गरीब और जरूरतमंद मरीजों की पूरी सेवा भाव के साथ इलाज करने के लिए चुना है।
4. डॉ। अजय गुप्ता-कायचिकित्सा व पंचकर्म-आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज
डॉ। अजय सही मायने में डॉक्टर्स को लेकर कही जाने वाली कहावत धरती के भगवान को चरितार्थ कर रहे हैं। उनका मानना है कि चिकित्सा कार्य सेवा कार्य है। इसमें सेवा पहले, पैसा बाद में है। सेवा भाव से जो लोग आएंगे, उनके लिए अच्छा है। पैसा कमाने के लिए कोई और व्यवसाय किया जा सकता है, लेकिन सेवा के लिए डॉक्टरी जैसा पेशा कोई नहीं हो सकता। मेरे पिता ने बचपन में कहा था बेटा डॉक्टर बनना है, लोगों की सेवा करनी है। उसी बात को गांठ में बांधा और आज यहां हूं। डॉ। अजय ऑनलाइन माध्यम से भी लोगों को लगातार जागरूक करने में लगे है। उनका कहना हैं कि चुनौतियों का सामना तो हर किसी को करना पड़ता है। हम तो फिर भी एक डॉक्टर है। अगर आपके इलाज से मरीज स्वस्थ्य होकर खुश हो जाए तो समझे आपने हर चुनौती को आसानी से पार कर लिया।
5. डॉ। अनिल गुप्ता, चिकित्साधिकारी, स्वामी विवेकानंद हॉस्पिटल
डॉ। अनिल का कहना है कि लोग डॉक्टर को भगवान का दर्जा देते हैं। इस पेशे का लक्ष्य पैसा कमाना नहीं, बल्कि मरीजों की सेवा करना होना चाहिए। एक डॉक्टर मरीज के उपचार में कोई कसर नहीं छोड़ता। हालांकि आधुनिकता के दौर में इस पर भी कुछ असर पड़ा है। एक चिकित्सक को मरीज की बीमारी समझने के साथ उसको भी समझाने की जरूरत होती है, तभी मरीज और चिकित्सक के संबंध अच्छे हो सकते हैं और इसका सीधा फायदा मरीज को जल्दी स्वस्थ होने में मिलता है। वे अपनी मरीजों का इलाज शुरू करने से पहले उनकी भावनाओं को समझते हैं। कई तरह की चुनौतियां आती हैं, जिसका सामना किया जाता है। मरीज के ठीक होने के बाद सब सब चुनौती फीकी पड़ जाती है।