- आजादी से पहले का है मां का मंदिर
भक्त दीवारों पर लिखते हैं अपनी मुराद
Meerut : मेरठ के जागृति विहार में स्थित मां मंसा देवी के मंदिर में आने से हर किसी की मुरादें पूरी होती हैं। यह मंदिर आजादी से पहले का है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां से मां किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटाने देती हैं। मंदिर में कई भक्त ऐसे आते हैं, जिनकी कामना पूरी होने के बाद वह सालों से यहां लगातार आते हैं।
मरघट वाली मां का मंदिर भी कहते हैं
इस मंदिर के पुजारी भगवत गिरी और उनके भाई नरेश गिरी हैं। पुजारी भगवत गिरी ने बताया कि यहां पहले जंगल हुआ करता था। जंगल के पास ही ओरंग सहापुर डिग्गी की शमशान भूमि हुआ करती थी। जिसके बीच में मूर्ति हुआ करती थी। इसलिए इसे मरघट वाली मां का मंदिर भी कहते हैं। भगवत गिरी ने बताया कि मंदिर में सबसे पहले बेलाराम गिरी पुजारी थे, जिसके बाद उनके बाबा राम गिरी और उसके बाद उनके पिता चरुणुआ गिरी पुजारी रहे हैं और अब चौथे पीढ़ी में भगवत गिरी व उनके भाई नरेश को मां की सेवा का मौका मिला है। पुजारी भगवत गिरी ने बताया कि 1990 में भक्तों की भीड़ को देखते हुए मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
नौ दिन होते हैं मां के नौ रूप
मंदिर की खासियत है कि यहां भक्तों को नवरात्र के नौ दिन मां के नौ रूपों के दर्शन कराए जाते हैं। बुधवार को मां हरे रंग का चोला, गुरुवार को पीला, शुक्र को जामुनी, शनिवार को नीला या काला, रविवार को लाल रंग और सोमवार को सफेद और मंगलवार को मां को नारंगी रंग का चोला पहनाया जाता है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां कोई भी भक्त कभी खाली नही जाता है। मंदिर के बारे में लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि यहां अपनी मुरादें लिखने से मां उनकी मुरादें सुनती हैं। इसलिए लोग यहां दीवारों पर अपनी मुरादें भी लिखते हैं।
नवरात्र के नौ दिनों में सुबह मां का श्रृंगार किया जाता है और हवन किया जाता है। रात्रि में भी विशेष पूजा अर्चना व दर्शन होते हैं।
पं। नरेश गिरी, पुजारी, मंसा देवी मंदिर