मेरठ (ब्यूरो)। सोलह संस्कारों में मौत के बाद अंतिम संस्कार को हमारे यहां बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी धर्मों और शास्त्रों के अनुसार मृतक की आत्मा की शांति के लिए रीति-रिवाज से संस्कार होना जरूरी है। हमने कई बार देखा कि कि जिनका कोई नहीं होता संस्कार विधि-विधान से नहीं होता। लावारिस लाशों को भी मुक्ति चाहिए। बस इसी सोच के साथ हम कुछ लोगों ने एक समिति बनाई और ऐसी लोगों के अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाया जिन्हें कोई नहीं अपनाता। हमें कहीं से भी जानकारी मिले या कोई ऐसा मृतक मिले तो हम पूरी निष्ठा के साथ उनका अंतिम संस्कार करते हैं। अब तक हम 42 सौ मृतकों का संस्कार उनके धर्म के अनुसार कर चुके हैं। 35 वर्षीय आशुतोष वत्स कहते हैँ कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। अपनी टीम की मदद से हम लगातार से काम कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। आशुतोष के इस काम के चलते उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं।

ऐसे शुरु हुआ सफर
2015 में हम मृतक पशुओं का संस्कार करते थे। हमारी टीम थी। हमने इसके लिए दो वाहन भी लिए हुए थे। हम इसी में आगे बढ़ रहे थे। एक साल बाद 2016 में एक दोस्त की बुआजी ने हमें मानव सेवा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने हमें लावारिस पार्थिव शरीरों का संस्कार करने की सलाह दी। साथ ही मदद का भी आश्वासन दिया। बस यही से हमारा सफर शुरु हो गया। अपनी समिति बनाई और आगे बढ़ते रहे। समिति में राहुल कस्तला, सोमेंद्र शास्त्री, ब्रजपाल शर्मा आदि शामिल हैं। मेडिकल कॉलेज, पुलिस प्रशासन, अस्पताल से संपर्क करते हैं और अगर ऐसा कोई मृतक मिलता है तो पूरे नियमानुसार ही आगे की प्रक्रिया पूरी की जाती है। मृतकों का संस्कार हम उनके धर्म के अनुसार की करते हैं। हिंदु, मुस्लिम, ईसाई हर धर्म के मृतकों का संस्कार उनके रिवाजों के साथ ही होता है।

कोविड काल में दिखाई हिम्मत
कोरोना काल के दौरान हमारी पूरी टीम एक्टिव थी। इस दौरान हमने सबसे अधिक अंतिम संस्कार कराएं। इसमें ऐसे मृतक शामिल थे जिनके परिजनों को या तो पार्थिव शरीर नहीं मिला या मृतकों का कोई नहीं था। ऐसे वक्त में जब अपने भी साथ छोड़ रहे थे तब हमारी टीम ने बिना किसी डर और चिंता के पूरी हिम्मत दिखाई और मृतकों को पूरे विधान के साथ संस्कार करवाया। जिन मृतकों के परिजनों नेमुंह मोड लिया उनके संस्कार की जिम्मेदारी हमने निभाई।

निभाते हैं पूरी जिम्मेदारी
हम मृतकों का सिर्फ अंतिम संस्कार ही नहीं करते हैं बल्कि पूरे विधि विधान का पालन करते हैं। मृतकों की शांति के लिए हवन, पूजन और श्राद्ध भी करते हैं। दाह संस्कार के बाद अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाता है। मरने के बार आत्मा को शांति मिले और उसे मोक्ष प्राप्त हो इसके लिए ये संस्कार जरूरी होते हैं। यूं तो ये सभी कार्य अपने परिवार के द्वारा ही किए जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें अपनों का साथ नसीब नहीं होता। बस हम ऐसे लोगों को ढूंढ लेते है और उनके अपने बनकर उनके मुक्ति के मार्ग को प्रशस्त करने का प्रयास करते हैं।