मेरठ (ब्यूरो)। असौड़ा हाउस स्थित श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर में अभिषेक व शांतिधारा का आयोजन सोमवार को किया गया। जिसका सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य रमेश चंद्र जैन परिवार को मिला। वहीं कुबेर बनने का सौभाग्य विपुल जैन-संस्कार जैन को मिला। जिसके बाद मंदिर पूजन विधान संपन्न हुआ। इस अवसर पर मुनिरी ज्ञानानंद महाराज ने प्रवचनों से पहले देव शास्त्र को नमन किया। इसके बाद उन्होंने साधना और ध्यान के बारे में जानकारी दी।
साधना होना बेहद जरूरी
उन्होंने कहा कि साधना क्या होती है यह जानना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि दुनिया में यदि अपने मन पर हम विजय प्राप्त कर लेते हैं तो मानो संपूर्ण विश्व पर विजय प्राप्त कर लोगे। साधना का मतलब जब हम विधिवत अपने मन को स्थिर कर लेते हैं और मनोवांछित कार्य करने में सक्षम हो जाते हैं तो इस प्रकार से यह हमारी साधना होती है। साधना होना जीवन में बहुत जरूरी है और इसी साधना और एकाग्रता से ही हम लक्ष्य को पा सकते हैं।
ध्यान से निर्वाण संभव है
महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा कि सर्वश्रेष्ठ साधना कोई है तो वह ध्यान है। ध्यान से ही निर्वाण संभव है। भोगो में योगों की चंचलता होती है और योग में मन, वचन, कर्म की स्थिरता होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जिन्होंने वासनाओं को उतार दिया है, उन्होंने वसन भी उतार दिए हैं। जिनका अंबर ही वसन है वही दिगंबर हैं।
शून्य प्रदान कराने वाला
महाराज ने कहा कि विश्व को शून्य प्रदान करने वाला जैन दर्शन ही है। शून्य सर्व शक्तिमान है। पानी की बूंद शून्य है। इसलिए शून्य की रक्षा करो। एक अंक पर एक शून्य रख दो तो वह संख्या 10 गुणा हो जाती है। बिना शून्य के अंक की कोई कीमत नहीं है और बिना अंक के शून्य का कोई महत्व नहीं है। इसी प्रकार आत्मा भी शून्य स्वभाव है। शाम को गुरु भक्ति एवं आनंद यात्रा हुई। जिसमें श्रद्धालुओं ने महाराज के मीठे वचन सुने। महाराज ने प्रश्नोत्तरी कराई, जिसमें सभी विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। मंदिर परिसर में विनोद जैन, हेमचंद जैन, रचित जैन, शुभम, श्रेय, शालू, प्रियंका, सौम्या, आर्जवि आदि उपस्थित रहे।