मेरठ (ब्यूरो)। शहर में 14 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं। इसके बावजूद सीवर का पानी भूमिगत जल के लेवल को रिचार्ज करने के बजाए शहर के नालों में बहाया जा रहा है। हालत यह है कि सीवरेज से निकलने वाली सिल्ट तक को शहर की सड़कों पर फेंका जा रहा है। सबसे खराब स्थिति गंगानगर, लोहिया नगर और रक्षापुरम के प्लांट की है। यहां मशीनों के रखरखाव और संचालन आदि में प्लांट की मशीनें कई माह से बंद पड़ी हैं। ऐसे में सीवरेज को साफ करने वाले ये प्लांट कहीं स्वच्छता सर्वेक्षण में वाटर प्लस की दावेदारी से नगर निगम को महरूम ना कर दें।

वाटर ट्रीटमेंट के नाम पर खानापूर्ति
गौरतलब है कि शहर से लगभग 378.50 मिलियन लीटर सीवेज प्रतिदिन उत्पन्न होता है। इस सीवरेज की ट्रीटमेंट का जिम्मा 14 एसटीपी प्लांट पर है। इनमें से 13 एमडीए के पास हैं। इन 13 प्लांट का संचालन मार्च से नगर निगम को करना है जिसके लिए इनके अपग्रेड होने का काम चल रहा है। एसटीपी को अपग्रेड करने के लिए जलनिगम विद्युत यांत्रिकी गाजियाबाद शाखा को सौंपा हुआ है। लेकिन अभी तक प्लांट का अपग्रेडशन तो दूर संचालन भी सही से नही हो रहा है।

बिना ट्रीटमेंट यूज हो रहा पानी
स्थिति यह है कि प्लांटों पर सीवेज शोधन से संबंधित किसी प्रकार का रिकार्ड तक मेंटेन नही किया जा रहा है। कितना सीवेज रोजाना आ रहा है और कितना शोधित हो रहा है यह डाटा तक उपलब्ध नही है। प्लांट में शोधित जल की सैंपल रिपोर्ट तक तैयार नही की जा रही है जबकि इसका रिकार्ड रखना होता है। साथ ही शोधन के दौरान पानी में मिलाई जाने वाले क्लोरीन तक का रिकार्ड प्लांट संचालकों के पास नही है। प्लांट संचालन के लिए प्रयोग होने वाले सिलेंडर तक के उपयोग का रिकार्ड मेंटेन नही किया जा रहा है।

सड़कों पर डाली जा रही स्लज
इससे भी अधिक गंभीर स्थिति प्लांट में सीवरेज से निकलने वाली स्लज की है। नियमानुसार इस स्लज को ट्रीट कर खाद बनाकर खेती के लिए उपयोग किया जाता है। लेकिन सूत्रों की मानें तो इस स्लज से खाद तैयार करने वाली मशीनें ही कई माह से बंद पड़ी हैं। ऐसे में खाद बनाने के बजाए इस स्लज को खाली मैदान, कूड़ा स्थल या सड़कों के किनारे फेंका जा रहा है।

वाटर प्लस के खिताब को खतरा
वहीं नगर निगम ने इन एसटीपी प्लांट के दम पर वाटर प्लस सिटी के खिताब की स्वच्छता सर्वेक्षण में दावेदारी दिखाई है, लेकिन एसटीपी प्लांट की यह स्थिति वाटर प्लस खिताब पर भारी पड़ सकती है। वाटर प्लस सिटी का खिताब उन शहरों को दिया जाता है, जो एसटीपी के शोधित जल को दोबारा उपयोग में ला रहे हों। ताकि भूमिगत जल का उपयोग कम हो और भूमिगत जल का स्टोरेशन अधिक रहे। इन शहरों में एसटीपी का शोधित जल पार्कों में पेड़-पौधों की सिंचाई, सड़क पर पानी छिड़काव और औद्योगिक इकाइयों में उपयोग किया जा रहा है। उम्मीद थी कि सभी एसटीपी के सही संचालन से मेरठ में यह संभव हो पाएगा।

हाल ही में निरीक्षण के दौरान सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों के संचालन में गंभीर लापरवाही मिली थी। वहां लगी मशीनें जंग खा रही हैं। सीवरेज शोधन का रिकार्ड मेंटेन नही किया जा रहा है इतना ही क्लोरिन, ब्लोअर, डिजिटल फ्लो मीटर तक उपलब्ध नहीं हैं। एसटीपी से गंदा पानी नालों में डाला जा रहा है।
सौरभ गंगवार, नगर आयुक्त

सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का संचालन सही से होना बहुत जरूरी है , इससे नालों में बहने वाली गंदगी काफी हद तक काम हो सकती है और वाटर लेवल भी रिचार्ज होने में भी मदद मिलती है।
गिरीश शुक्ला, पर्यावरणविद्

शहर के सारे नाले पहले से ही गंदगी से अटे हुए है, सीवरेज व्यवस्था सही हो जाए तो नालों की गंदगी भी दूर होगी और भूमिगत जल की उपलब्धता भी बनेगी।
पंकज गुप्ता