मेरठ (ब्यूरो)। जल ही जीवन है या फिर जल है तो कल हैये बातें और इनका अर्थ आज शायद ही कोई न जानता हो। मगर ये बड़े दुख की बात है कि सब कुछ जानते-बूझते हुए भी हम भूगर्भ जल के दोहन तक आ पहुंचे हैैं। यह हम नहीं बल्कि भूगर्भ जल संरक्षण विभाग के आंकड़े कह रहे हैैं। आंकड़ों की मानें तो जनपद में भूगर्भ जल की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। 12 ब्लॉकों में शुमार मेरठ अतिदोहित जोन में जा पहुंचा है। बात यहीं खत्म नहीं होती। खरखौदा और माछरा ब्लॉक क्रिटिकल जोन में शामिल हैं। हालांकि विभाग के प्रयास से रजपुरा ब्लॉक क्रिटिकल जोन से निकलकर सेमी क्रिटिकल जोन में आ गया है।
सात ब्लॉक पर खतरा
जनपद के 12 ब्लॉक में से सात ब्लॉक की स्थिति भूगर्भ जल स्तर के मामले में खराब बनी हुई है। इनमें खरखौदा और माछरा क्रिटिकल जोन, हस्तिनापुर, मवाना, परीक्षितगढ़ रजपुरा सेमी क्रिटिकल जोन और मेरठ ब्लॉक अति दोहित जोन में बने हुए हैैं। जबकि रोहटा, सरधना, सरूरपुर, दौराला और जानी ब्लॉक सेफ जोन में हैैं। हालांकि गत वर्षों की अपेक्षा प्री-मानसून के डाटा से ग्राउंड वाटर लेवल की स्थिति में इस बार सुधार दिखा है। पोस्ट मानसून के आंकडों में सुधार की संभावना जताई जा रही है।
जनपदों के 12 ब्लॉॅकों में ग्राउंड वाटर लेवल की स्थिति
ब्लॉक जोन
दौराला सेफ जोन
हस्तिनापुर सेमी क्रिटिकल
जानी सेफ जोन
खरखौदा क्रिटिकल
माछरा क्रिटिकल
मवाना सेमी क्रिटिकल
मेरठ अति दोहित
परीक्षितगढ़ सेमी क्रिटिकल
रजपुरा सेमी क्रिटिकल
रोहटा सेफ जोन
सरधना सेफ जोन
सरूरपुर सेफ जोन
क्रिटिकल जोन से रजपुरा बाहर
मेरठ में साल 2020 तक तीन ब्लॉक खरखौदा, रजपुरा और माछरा क्रिटिकल जोन में शामिल थे। मगर दो साल बाद रजपुरा क्रिटिकल जोन से बाहर आ गया है। इसके लिए भूगर्भ जल संरक्षण विभाग द्वारा जल चौपाल कार्यक्रम चलाकर लोगों को जागरूक करने का कार्य किया। मगर अभी भी खरखौदा और माछरा ब्लॉक की स्थिति खराब बनी हुई है। वहीं हस्तिनापुर, मवाना, परीक्षितगढ़, रजपुरा सेमी क्रिटिकल और मेरठ अति दोहित जोन में बना हुआ है।
वाटर लेवल गिरने की वजह
तेजी से बढ़ती पॉपुलेशन
सबमर्सिबल का अत्याधिक उपयोग
एग्रीकल्चर और इंडस्ट्रीज में अत्याधिक जलदोहन
जरूरत से कम बारिश होना
रेन वाटर हार्वेस्टिंग यूनिट की कमी
तालाबों की कमी या सही से देख-रेख नहीं हो पाना
पीजो मीटर से निगरानी
भूगर्भ विभाग के आंकडों पर यदि नजर डालें तो भूगर्भ जल विभाग शहर में 50 से अधिक स्थानों पर पीजोमीटर के जरिए भूजल स्तर की मॉनिटरिंग कर रहा है। हर साल मानसून से पहले और मानसून सीजन खत्म होने के बाद भूजल स्तर की रीडिंग ली जा रही है। ग्राउंड वाटर की प्रयोग की निगरानी ना होने के कारण घरों से लेकर निजी संस्थानों, होटलों, गैराज में जमकर पानी का दोहन हो रहा है। इसके चलते पिछले पांच साल में वाटर लेवल 300 सेमी से नीचे जा चुका है।
क्या है डार्क जोन
भूगर्भ जल में गिरावट के स्तर के आधार पर विकास खंडों को सेफ, सेमी क्रिटिकल, क्रिटिकल और अति दोहित श्रेणी यानि डार्क जोन में रखा जाता है।
90 प्रतिशत से ज्यादा जल निकासी और प्री मानसून या पोस्ट मानसून (दोनों में से एक) सीजन में भूगर्भ जल में 20 सेंटीमीटर से ज्यादा गिरावट होने पर उस ब्लॉक को क्रिटिकल श्रेणी में रखा जाता है।
90 प्रतिशत से ज्यादा जल निकासी और प्री मानसून व पोस्ट मानसून (दोनों में) सीजन में भूगर्भ जल में 20 सेंटीमीटर से ज्यादा गिरावट होने पर अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में रखा जाता था।
70-90 प्रतिशत जल निकासी और प्री या पोस्ट मानसून सीजन में से किसी एक में भूजलस्तर में 20 सेंटीमीटर से ज्यादा गिरावट होने पर उस ब्लॉक को सेमी क्रिटिकल श्रेणी में रखा जाता था।
प्री-मानसून वाटर लेवल में साल दर साल सुधार हो रहा है। जागरुकता के चलते रजपुरा ब्लॉक क्रिटिकल से सेमी क्रिटिकल जोन में आ गया है।
नवरत्न कमल, सहायक भू-भौतिकी विधि अधिकारी, भूगर्भ विभाग