केस-1
बुखार से पीडि़त से 22 वर्षीय मरीज ने चैट बोट से पूछकर पांच दिन तक दवाइयां खा ली। पांचवें दिन हालत बिगड़ी तो डॉक्टर के पास पहुंचा। इंवेस्टिगेशन में उसे काला पीलिया निकला। गलत दवाओं के सेवन से उसकी तबियत और बिगड़ गई।

केस-2
35 वर्षीय एक महिला को जोड़ों में दर्द था। डॉक्टर के पास जाने की बजाय उसने मेटा वर्स से इलाज पूछा। दवा भी खा ली। इसकी वजह से उसकी शुगर बढ़ गई। दिक्कत बढ़ी तब डॉक्टर के पास पहुंची।

मेरठ (ब्यूरो)। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के दौर में शहरवासी इलाज के लिए रोबोटिक एप्स का सहारा ले रही है। मामूली बीमारी समझकर वह डॉक्टर्स के पास जाने की बजाय एआई एप्स टूल पर निर्भर हो रहे हैं। जिससे उनकी परेशानी कम होने की बजाय बढ़ रही है। ये स्थिति देख डॉक्टर्स भी हैरान हैं। उनका कहना है कि कोई भी प्रोग्राम बेस्ड एप सटीक इलाज नहीं बता सकती है। पढ़े-लिखे लोग ऐसे एप्स का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। ये काफी खतरनाक हो सकता है। रेफरेंस के लिए इनकी मदद ली जा सकती है लेकिन इलाज पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

ये है स्थिति
प्राइवेट डॉक्टर्स बताते हैं कि उनके पास आने वाले मरीजों में हर दिन तकरीबन 25 प्रतिशत केस ऐसे ही आते हैं। चैट जीपीटी, मेटा वर्स जैसी एप्लीकेशन की मदद से लोग इलाज पूछ लेते हैं। खुद ही दवा खा ले रहे हैं। इससे उनमें रिएक्शन आ जाते हैं। बीमारी बढ़ जाती है। वहीं सरकारी अस्पतालों में भी एक से दो प्रतिशत मामले ऐसे पहुंच रहे हैं।

अच्छा आइडिया नहीं है
डॉक्टर्स के अनुसार एआई एप्स के जरिए इलाज लेने के आइडिया अच्छा नहीं है। ऐसे एप्स फिजिकल एग्जामिनेशन नहीं करते, जबकि सही इलाज के लिए ये बहुत जरूरी है। वहीं कई पैरामिटर्स जैसे फैमिली हिस्ट्री, वेट, ऐज या दूसरी बीमारियों का कैल्कुलेशन करने की दवा लिखी जाती है। एप्स पर ऐसा नहीं होता है जिसकी वजह से डायग्नोस ठीक नहीं हो पाता है। इसलिए एप्स के इलाज पर भरोसा भी नहीं किया जा सकता है।

ये मरीज ढूंढ रहे सबसे अधिक इलाज
शुगर, ब्लड प्रेशर, मोटापा, बुखार जैसी बीमारियों में मरीज इन एप्स पर सबसे अधिक इलाज ढूंढ रहे हैं। यहीं लोग डॉक्टर्स की बताई दवाओं को इन एप्स पर क्रॉस चेक भी करते हैं। डॉक्टर्स बताते हैं कि दवाओं को लेकर लोग कई तरह के सवाल पूछते हैं। किसी सॉल्ट के बारे में एआई एप्स से जानकारी लेकर वह यह तक कहते हैं कि उन्हें मलेरिया या हार्टअटैक की दवाई क्यों दी है। कई बार मरीज डर भी जाते हैं। डॉक्टर्स बताते हैं कि एक दवा कई बीमारियों में यूज होती है। एप्स पर ऐसा नहीं होता है।वह अपने फीड डेटा के अनुसार ही जानकारी देती है। यहां से जानकारी लेकर लोग परेशान हो जाते हैं और सवाल खड़े कर देते हैं।

ये होती हैं ए आई एप्स
एआई एप्स आर्टिफिशिल इंटीलिजेंस बेस्ड चैट बोट एप्लीकेशन होती हैं। ये रोबोटिक टेक्नोलॉजी बेस्ड होती हैं। इन्हें इस तरह के तैयार किया जाता है कि ये किसी भी पूछे गए सवाल का जवाब दे सकता है। सबसे अधिक चैटजीपीटी, मेटा वर्स जैसी चैट बोट एप्स का प्रयोग लोग कर रहे हैं।

इनका है कहना
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जेनेरेटेड एप्स टूल का प्रयोग कर मरीज ट्रीटमेंट लेते हैं। यह सही नहीं है। कोई भी एप फिजिकल एग्जामिनेशन नहीं कर सकता है। इससे ंबीमारी और बढ़़ सकती है।
डॉ। संदीप, प्रेजिडेंट, क्रिटिकल केयर सोसाइटी

किसी भी टूूल की मदद से अगर सेल्फ मेडिकेशन किया जाता है तो बहुत संभावना है कि रोग बढ़ सकता है। दवाइयां देने से पहले बहुत सारे फैक्टर चेक किए जाते हैं।
डॉ। अरविंद कुमार, मेडिसिन डिपार्टमेंट, मेडिकल कॉलेज

पहले गूगल से मरीज इलाज पूछते थे। अब एआई एप्स टूल भी इसमें शामिल हो गए हैं। दवाइयों को देने के लिए बहुत तरह के एग्जामिनेशन किए जाते हैं। एप्स से ये संभव नहीं है। ये किसी भी तरह से ठीक नहीं है।
डॉ। मनीषा त्यागी, सीनियर गायनी