मेरठ (ब्यूरो)। छोटी-छोटी बातों पर जान देने का ख्याल आना या सुसाइड अटेंम्प्ट करने के मामले शहर में बढ़ रहे हैं। युवाओं के साथ ही हर वर्ग के लोगों में सुसाइडल रिस्क देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि बिगड़ी मेंटल हेल्थ और स्ट्रेस लाइफ इसकी बड़ी वजह बन रहे हैं। विवाद, रिश्तों में झगड़े, काम में समस्याएं या व्यक्तिगत असफलताओं के कारण लोगों में आत्महत्या की प्रवृित्त देखी जा रही है। लोगों में जीवन जीने की प्रेरणा और जीवन के महत्व को समझाने के लिए ही हर वर्ष 10 सितंबर को वल्र्ड सुसाइड प्रिवेंशन-डे मनाया जाता है।

ये है स्थिति
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार जिले में हर महीने 20 से 25 लोगों में सुसाइडल रिस्क मिल रहा है। इनमें युवाओं की संख्या अधिक है। प्रेम हो, पढ़ाई हो, वर्किंग लाइफ हो या फैमिली लाइफ हो इनमें आया फेल्योर ही लोगों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि लोग इन समस्याओं को छिपाते हैं। समाज के दबाव के कारण अपनी भावनाओं को खुलकर कह नहीं पाते हैं। वह किसी से मदद भी नहीं मांग पाते हैं। अत्यधिक तनाव उन्हें नकारात्मक विचारों की ओर धकेल देता है जो सुसाइड के खतरे को बढ़ा देता है।

ये बन रहीं स्ट्रेस की वजह
इम्बैलेंस्ड डाइट, वर्कप्लेस पर वर्कलोड, बढ़ती भागदौड़ व अनियमित कार्यशैली लोगों को तनाव दे रही है। केंद्रीय मंत्रालय की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक मेरठ की89 फीसदी आबादी तनाव की जद में है। एक्सपट्र्स बताते हैं कि बढ़ते स्ट्रेस ने लोगों को हाइपरटेंशन की बीमारी से ग्रस्त कर दिया है। स्ट्रेस हैंडल न कर पाने की वजह दिमाग पर जोर पडऩे लगता है और लोगों के मन में सुसाइड करने जैसे ख्याल घर करने लगते हैं।

तनाव में 51 फीसदी पुरुष, 38 फीसदी महिलाएं,
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक जिले में हर दूसरा पुरुष तनाव में है। पुरुषों की 51 फीसदी और महिलाओं की 38 फीसदी आबादी में तनाव और डिप्रेशन जैसे लक्षण मिल हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि पुरुष परिवार, बिजनेस, जॉब, घर और वर्कप्लेस की जिम्मेदारियों में दबे होते हैं। काम के घंटे अधिक होते हैं ऐसे में वह खुद को क्वालिटी टाइम नहीं दे पाते हैं इसलिए वह जल्दी डिप्रेस्ड हो जाते हैं।

ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सावधान
हार्ट रेट बढऩा
सिरदर्द बना रहना
आंखों में लाली
बात बात पर गुस्सा
सांसें तेज होना

समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना और लोगों को अपनी भावनाओं और समस्याओं के बारे में खुलकर बात करने के लिए प्रोत्साहित करना जरूरी है। जिससे लोग नकारात्मक विचारों से बाहर निकल सकें और एक स्वस्थ जीवन जी सकें।
डॉ। कमलेंद्र किशोर, मनोचिकित्सक

कार्यस्थल और घरेलू परेशानियों के चलते पुरुषों में तनाव अधिक पनपता है। पुरुषों में सहनशीलता भी महिलाओं की अपेक्षा कम होती है। तनाव की अधिकता से हायपरटेंशन, हार्ट स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है।
डॉ। तरुण पाल, एचओडी, मेेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट, मेडिकल कॉलेज

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोग अवेयर नहीं हैं। उन्हें स्ट्रेस या डिप्रेशन बीमारी ही नहीं लगती है। ऐसे में समाज में जागरूकता लाना जरूरी है। इसी के माध्यम से सुसाइड की घटनाओं में कमी लाना संभव हो सकता है। सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।
डॉ। विभा नागर, क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट