मेरठ (ब्यूरो)। शहर में सड़क हादसों न हों, इसके लिए जरूरी है कि ट्रैफिक नियमों के मुताबिक वाहनों को चलाया जाए। वाहन चलाने की समुचित जानकारी दी जाए। यही नहीं, नियमों के मुताबिक डीएल बनाए जाएं। सुगम यातायात संचालन और सुरक्षित सफर की जिम्मेदारी आरटीओ की है। आरटीओ के ग्रीन सिग्नल के बाद ही वाहन सड़कों पर आते हैं। वाहनों की जांच के साथ योग्य अभ्यर्थियों को ही डीएल यानि ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाता है, ताकि वे नियमानुसार व्हीकल ड्राइव करें। अब सवाल यह है कि क्या आरटीओ की कार्यप्रणाली बेहतर है। शायद नहीं, क्योंकि आरटीओ में वाहनों की चेकिंग से लेकर डीएल बनवाने तक में लापरवाही का आलम है। आरटीओ की इसी सच्ची तस्वीर को प्रस्तुत करने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने सात दिवसीय कैंपेन चलाया था। इसके जरिए संभागीय परिवहन विभाग की खामियों को दर्शाया है।

सोशल मीडिया पर कराया सर्वे
आरटीओ की हकीकत को प्रकाशित करने के साथ ही आम लोगों के अनुभव भी मांगे थे। ऐसे में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर आम लोगों ने आरटीओ के एक्सपीरियंस को शेयर किया था। इसके साथ ही सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर सर्वे कराया गया। इस सर्वे में तकरीबन 100 लोगों ने पार्टिसिपेट करके अपनी राय शेयर की। इस सर्वे में 86 फीसदी लोगों ने यही कहा कि आरटीओ में दलालराज के कारण धांधली चलती है।

नहीं बन गया फिटनेस ट्रैक
गौरतलब है कि करीब 7 साल पहले आरटीओ में फिटनेस ट्रैक तैयार किया गया था। मकसद था कि 20 लाख के इस ट्रैक में अत्याधुनिक सुविधाओं से जांच होगी। इसमें ट्रैक, आरआई केबिन, शेडो समेत कंप्यूटराज्ड सिस्टम कैमरे, सेंसर आदि लगना था, लेकिन अब तक केवल फिटनेस ट्रैक और आरआई केबिन को तैयार किया गया है। आज भी गाडिय़ों को ट्रैक पर खड़ा कर ऊपरी तौर पर ही जांचा जाता है।

नाम का ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल
गौरतलब है कि करीब पांच साल पहले ड्राइविंग लाइसेंस के आवेदकों को ड्राइविंग ट्रेनिंग और बेसिक यातायात के नियमों की जानकारी देने के लिए साकेत में ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल खोला गया था। इस कार्यालय में डीएल आवेदकों की ड्राइविंग स्किल जांच के लिए बकायदा ड्राइविंग ट्रैक भ्ीा तैयार किया गया था जिसको विभिन्न सेंसर से लैस होना था लेकिन आज तक यह स्कूल सिर्फ नाम का बना हुआ है। लगभग चार करोड़ रुपये की लागत से आईटीआई परिसर में बनी इस बिल्डिंग के क्लास रूमों में ईवीएम भरी हुई हैं और ट्रैक जर्जर हो चुका है। क्लास रूम में स्मार्ट बोर्ड, वाहन चलाने के लिए लाए गए हैवी व्हीकल सिम्यूलेटर तक धूल फांक रहे हैं लेकिन इनका प्रयोग नही हो रहा है।

आरटीओ में क्या वाहनों की फिटनेस से लेकर डीएल प्रक्रिया में दलाल राज हावी है।
हां- 86
नहीं- 10
पता नहीं- 4

क्या बिना ड्राइविंग टेस्ट के ही डीएल जारी कर दिया जाता है।
हां- 77
नहीं- 10
पता नहीं- 13

क्या विभाग की लापरवाही के कारण ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल एक सपना बन गया है।
हां- 85
नहीं- 10
पता नहीं- 5