मेरठ (ब्यूरो)। कभी एनईपी, कभी एनसीएफ, कभी एनसीआरएफ और एचपीसी जैसी न जाने कितनी एजुकेशन पॉलिसी को लेकर सीबीएसई और यूजीसी रोजाना दिशा-निर्देश जारी करते हैैं। ऊपर से सरकारी आदेश अलग। मगर इस बाबत कोई प्रॉपर ट्रेनिंग न होना और वर्क बर्डन का बढ़ता डोज टीचर्स को कंफ्यूज कर रहा है। यही कंफ्यूजन टीचर्स को डिप्रेशन से लेकर एंजाइटी तक का शिकार बना रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक अब तक 100 प्राइवेट स्कूलों के करीब 67 टीचर्स सीबीएसई काउंसलर्स के पास पहुंचे हैैं।

रोज नए बदलाव, नई पॉलिसी
एनईपी (न्यू एजुकेशन पॉलिसी-2020) के तहत कभी एनसीएफ (नेशनल करिकुलम फ्रेम वर्क), कभी एनसीआरएफ (नेशनल क्रेडिट फेम वर्क) और कभी एचपीसी (होलिस्टिक प्रोग्रेस कार्ड) जैसी न जाने कितनी पॉलिसी समेत सफल एग्जाम 2024, एसक्यूएए 2024 जैसे न जाने कितने बदलाव रोजाना किए जा रहे हैैं। मगर इन सबके लिए टीचर्स को कोई प्रॉपर ट्रेनिंग नहीं दी जा रही है। जिसका असर ये हुआ कि टीचर्स पर वर्क बर्डन तो हो गया लेकिन वो इसे खत्म कैसे करें इसको लेकर वो कंफ्यूजन में आ गए।

काउंसलिंग को पहुंचे 67 टीचर्स
गौरतलब है कि 100 प्राइवेट स्कूलों के करीब 67 टीचर्स ऐसे हैैं, जो अब तक सीबीएसई काउंसलर्स के पास पहुंचे है। इनमें डिप्रेशन के 54 टीचर्स हैं। वहीं, बाकी टीचर्स एंजाइटी के शिकार पाए गए हैैं। ये 54 टीचर वो हैैं, जो डिप्रेशन के साथ ही ज्यादा वर्क बर्डन व कंफ्यूजन के चलते एंजाइटी की स्टेज तक पहुंच गए है। सीबीएसई काउंसलर्स इन सभी की काउंसिलिंग कर रहे हैं। वहीं जरूरत पडऩे पर टीचर्स के लिए मनोचिकित्सक की मदद भी ली जा रही है।

तनाव से हार्मोन हो रहे डिस्बैलेंस
तंत्रिका और हार्मोनल संकेतों के माध्यम से प्राकृतिक तनाव प्रक्रिया प्रणाली गुर्दे के ऊपर पाए जाने वाले अधिवृक्क ग्रंथियों को एड्रेनालाईन और कोर्टिसोल जैसे हार्मोनों की वृद्धि जारी करने के लिए प्रेरित करती है। एड्रेनालाईन दिल की धड़कन को तेज करता है और रक्तचाप को बढ़ाता है। तनाव के कारण ग्लूकोकोर्टिकोइड्स, कैटेकोलामाइन, ग्रोथ हार्मोन और प्रोलैक्टिन सहित कई हार्मोन के सीरम स्तर में बदलाव हो सकता है।

इस तरह के केस सामने आ रहे हैं, जिसमें टीचर्स में डिप्रेशन और एनजाइटी देखने को मिल रही है। ऐसे में हम उनके सभी न्यूरो केमिकल को बैलेंस करने के लिए कुछ दवाएं देते हैं। साथ ही कुछ एक्सरसाइज भी बताते हैं।
डॉ। विकास सैनी, सीनियर साइकेट्रिस्ट

काउंसलिंग और बिहेवियरल थेरपी से इस स्थिति को दूर किया जा सकता है। बाकी यह हर पेशेंट की अपनी-अपनी कंडीशन पर निर्भर करता है। जरूरत महसूस होने पर सायकाइट्रिस्ट की सलाह भी लेनी चाहिए।
डॉ। पूनम देवदत्त, मनोवैज्ञानिक

ये बिल्कुल ठीक बात है कि सीबीएसई और सरकार की तरफ से विभिन्न पॉलिसी लगातार आ रही हैं। टीचर्स की परेशानी लाजिमी है। ऐसी स्थिति में टीचर्स को पेशंस रखना बेहद जरूरी है।
राहुल केसरवानी, सहोदय सचिव