मेरठ (ब्यूरो)। मेरठ के युवा सजग हैं। बेहतर भविष्य की दिशा में ये अपने स्तर से हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। जीवन के लिए सबसे जरूरी पेड़, पानी, प्रकृति, पृथ्वी, पर्यावरण बचाने में जुटे में है। वह जानते हैं कि आने वाली पीढ़ी के लिए इन्हें सरंक्षित करना जरूरी है। अपने विकास कार्यों के जरिए इन्हें बचाने के लिए अलग-अलग माध्यम से प्रयासरत हैं। आज इंटरनेशनल यूथ डे है। प्रकृति के संरक्षण में जुटे शहर के ऐसे युवाओं की कहानी जो समाज के लिए प्रेरणा बने हैं।
क्लाइमेट चेंज को लेकर यूएन तक पहुंचीं : हिना सैफी
जानी के गांव सिसौला की हिना सैफी पर्यावरण के लिए काम करती हैं। संयुक्त राष्ट्र की ओर से उन्हें भारत की 17 यंग क्लाइमेट चेंज लीडर्स में शामिल किया जा चुका है। बकौल हिना पांचवी क्लास से ही स्कूल में होने वाली पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी। यहीं से मुझे लगा की जीवन में कुछ ऐसा ही करना है। हालांकि मैं ऐसे गांव से बिलांग करती थी जहां लड़कियों को घर से बाहर जाने की परमिशन भी नहीं थी। लेकिन मेरी दादी ने मुझे सपोर्ट किया। उनकी मदद से मैं एक एनजीओ से जुड़ गई। यहां पर्यावरण संरक्षण, वायु प्रदूषण, एक्यूआई जैसे मुददों पर काम करने लगी। लखनऊ में क्लाइमेट एजेंडा पर वर्कशॉप देखने गई थी। यही से जीवन में बड़ा बदलाव आया। हमारे सिटी में एक्यूआई काफी खराब थी। मशीनें भी दो ही थी। पॉल्यूशन बोर्ड को और मशीनें लगाने के लिए ज्ञापन भी दिया लेकिन उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। उसके बाद अपने स्तर से जागरूकता शुरु की। धीरे धीरे काम करना शुरु किया। यही सब करते हुए यूएन के वी द चेंज कैंपेन क्लाइमेट एजेंडा के लिए भारत से चुने गए 17 एक्टिविस्ट में से मुझे भी चुना गया। अब में डब्ल्यूसीसी के साथ काम कर रही हू।
समाज को पॉजिटिव चेंज देना है : नेहा वत्स कक्कड़
समाज ने हमें सब कुछ दिया है। आने वाली पीढिय़ों को इसे रिटर्न किया सके, समाज को पॉजिटिव चेंज दिया जा सके इसके लिए ही मैं पूरी तरह से प्रयासरत हूं। प्रकृति को सहेजना हमारी जिम्मेदारी है। हम समझेंगे, लोगों को समझाएंगे तभी हमारा आने वाला कल बेहतर हो सकेगा। हियर द साइलेंस की फाउंडर नेहा बताती हैं कि पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, पानी बचाने को लेकर अब तक हम कई मुहिम चला चुके हैं। हाल ही में नेहा को नगर निगम ने अपना ब्रांड अंबेसडर भी बनाया है। निगम के साथ मिलकर वह स्टूडेंटस को अवेयर कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मैं समाज में ऐसा बदलाव लाना चाहती हूं जिससे लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आए। बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं। एक बच्चा कई परिवारों को बदल सकता है। इसी उद्देश्य से मैं ये प्रयास कर रही हूं। कई स्कूल्स में अब तक मैं इस तरह के कैंपेन कर चुकी हैं जहां बच्चों को पर्यावरण संरक्षण का मैसेज जाता है। सोशल मीडिया पर भी हम कैंपेन चलाते हैं। मैंने तीन लोगों के साथ अपना सफर शुरु किया था आज मेरी मुहिम में दो सौ से अधिक लोग मेरे साथ जुड़ चुके हैं।
हरियाली बचा रही ईहा
प्रकृति को बचाने में जुटी ईहा दीक्षित ने पांच वर्ष की उम्र से ही पौधे लगाने शुरु कर दिए थे। वह बताती है कि अपनी मम्मी अंजलि के साथ मिलकर 22 मिनी फॉरेस्ट और 30 औषधीय वाटिका बना चुकी हैं। ईहा प्लांट्स एंड सीड बैंक भी तैयार किया है। प्लांट बैंक से लोगों को मुफ्त में पौधे दिए जाते हैं। मेरे प्लांट बैंक में कई दुर्लभ प्रजाति के बीज शामिल हैं। मैं घर में आने वाले फलों के बीजों का संग्रहण भी अलग तरीके से करती हूं। अपनी टीम के बच्चों के साथ मिलकर सीड बॉल बनाती हूं। बाद में इनसे नए पौधे तैयार किए जाते हैं। जब वो पौधे 4 से 5 फीट के हो जाते हैं तो उन्हें ग्रीन बेल्ट या मिनी फॉरेस्ट में मटका विधि से लगा दिया जाता है। पर्यावरण के क्षेत्र में सबसे कम उम्र में देश का सर्वोच्च बाल पुरस्कार प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार मिल चुका है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से वाटर हीरो भी मिल चुका है। अमेरिका, इंडोनेशिया, जर्मनी, फ्र ांस सहित कई देशों में मेरे काम सराहा जा रहा है। मेरा उद्देश्य है कि दुनियाभर के लोगों को पेड़ों के महत्व को बता सकूं।