मेरठ (ब्यूरो)। आवंटित 974 दुकानों से सालाना करीब 35 लाख से ज्यादा किराया निगम के खाते में आता था। मगर बीते सालों में धीरे-धीरे निगम की कमाई कम होती गई। आय कम हुई तो मामले की जांच शुरू हुई, जिसमें खुलासा हुआ कि निगम के राजस्व में उसके कर्मचारियों ने ही सेंध लगा दी है। शुरुआती जांच में सामने आया कि निगम के रिकॉर्ड से करीब 388 दुकानों की पत्रावली ही गायब हो गई है। अब नगर आयुक्त ने इस मामले में जांच बैठाते हुए सभी दुकानों और निगम की संपत्तियों के पुराने रिकार्ड तलब कर लिए हैं।

800 दुकानें बेचने का मामला
गौरतलब है कि मेरठ में पिछले 10 साल से निगम की संपत्तियों के स्वरूप बदलकर बेचने और खरीदने का खेल चल रहा है। लेकिन निगम की शहर में 974 दुकानों में से करीब 800 दुकानें मिलीभगत कर बेचने का मामला एक माह पहले सामने आया था। सूत्रों के मुताबिक जब निगम ने सिकमी किरायेदारों की तलाश शुरू की तो पता चला कि खुद मूल आवंटी अब इन दुकानों के मालिक नहीं हैैं। अधिकतर आवंटियों ने अपनी दुकानें 100 रुपये के स्टांप पेपर पर किसी को भी सिकमी किरायेदार दर्शाकर 50 लाख से एक करोड़ रुपये तक मे बेच दी है।

रिहायशी इलाकों में गुम हुई दुकानें
इन दुकानों को जिन लोगों ने खरीदा उन्होंने भी अपनी सुविधा अनुसार इनका स्वरूप बदल कर अलग-अलग प्रकार के कारोबार शुरू कर दिए। अब इन दुकानों की पहचान कर पाना भी निगम के बस की बात नहीं हैैं। निगम की सबसे अधिक दुकानें घंटाघर, देहलीगेट, भगत सिंह मार्केट में हुआ करती थी, जो गुम हो गई हैं। जानकारी के मुताबिक कहीं तो अधिकतर दुकानों को एक होटल में बदल दिया गया है तो कहीं कुछ दुकानों की जगह एक बड़ा मार्केट विकसित हो चुका है।

इन बाजारों में थी निगम की दुकानें
घंटाघर मीना बाजार
घंटाघर पालिका मार्केट
मेट्रो प्लाजा
पाल होटल मार्केट
देहलीगेट
पूर्वा अरिहान
सिटी होटल मार्केट
हापुड़ अड्डा चौराहा
भगत सिंह मार्केट
जेल चुंगी चौराहा
कचहरी पूर्वी गेट
सर्किट हाउस चौराहा
सूरजकुंड रोड

10 साल पहले निर्धारण
नियमानुसार नगर निगम की दुकान, होटल आदि का किराया प्रत्येक 10 साल में 25 प्रतिशत बढ़ोतरी करके निर्धारित किया जाना चाहिए। 2012 में नगर निगम प्रशासन ने महानगर में निगम की दुकान व होटलों का किराया निर्धारित किया था और तब से लेकर अब तक वही किराया लागू है। ऐसे में नियम के अनुसार अप्रैल 2022 से नई दरों के साथ दुकानों का किराया निर्धारित होना चाहिए था, जो अभी तक नहीं हो पाया है।

सभी पत्रावलियों और दुकानों के मूल कागजात की जांच कराई जा रही है। कई दुकानों का पता चल चुका है पुरानी फाइलें है इसलिए कुछ समय लग रहा है।
ब्रजपाल सिंह, सहायक नगरायुक्त, नगर निगम