मेरठ (ब्यूरो)। बरसात की शुरुआत होते ही शहर में मच्छरजनित रोगों की शुरुआत हो चुकी है। हर साल की तरह इस साल भी डेंगू के केसों से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह तैयार है। बजट भी भरपूर है और दवाएं भी एकत्र कर ली गई है और प्लानिंग भी तैयार है। बावजूद इसके मच्छरों का प्रकोप कम नही हो रहा है। हालत यह है कि प्लानिंग को अमल में लाने के लिए स्टॉफ नही है। क्योंकि 11 साल से खाली कीट संग्रहक का पद इस साल भी खाली ही है। इस पद पर नियुक्ति ना हो पाने के कारण डेंगू मलेरिया के मच्छरों की रोकथाम का प्रयास अधूरा साबित हो रहा है।

सिर्फ कागजों में हो रही फॉगिंग
शहर में फॉगिंग के लिए नगर निगम ने 90 वार्डों के लिए करीब 10 लाख रुपये के बजट का व्यय करता है। वहीं मलेरिया विभाग के पास करीब 500 लीटर फॉगिग की दवा और 300 लीटर एंटी लार्वा मुख्यालय स्तर से उपलब्ध कराई गई है। दोनों विभाग मिलकर रोस्टर के अनुसार फागिंग करते हैं। इस बजट में फॉगिंग के लिए दवाई, तेल, मशीन की मरम्मत आदि सभी शामिल है। 24 लाख की आबादी वाले शहर में 10 लाख रुपये फागिंग का रखा गया है। इस बजट के साथ 75 हैंड फागिंग मशीन के साथ 3 बड़ी मशीनों को फागिंग का काम रोस्टर के अनुसार दिया हुआ है। रोजाना शाम के समय शहर के वार्डों में रोस्टर के अनुसार फागिंग की जा रही है लेकिन इसके बाद भी शहर के अधिकतर वार्ड फागिंग से महरूम हैं।

विभाग में स्टॉफ की कमी
मच्छर जनित बीमारियों से शहर के लोगों को निजात दिलाने के लिए जिम्मेदार मलेरिया विभाग खुद बीमार है। मलेरिया विभाग के पास न स्टाफ पूरा है और न ही गाडिय़ां हैं। स्टॉफ और गाडिय़ों की कमी के चलते एंटी लार्वा अभियान से लेकर दवा की छिड़काव तक में खानापूर्ति हो रही है। इससे से भी बुरी स्थिति यह है कि मलेरिया विभाग में दवा छिड़काव करने वालों की संख्या तीन गुना कम हो गई है। जहां विभाग में दवा छिडकाव करने वालों की संख्या शुरुआत में 64 थी मगर अब 14 रह गई है।

कीट संग्रहकर्ता के पद खाली
गौरतलब है कि मलेरिया विभाग के मुताबिक, शहर के अलग-अलग इलाकों में मच्छरों की अलग-अलग प्रजातियां हैं। ये कई तरह के वायरस और पैरासाइट के जरिए विभिन्न बीमारियां फैलाते हैं। इन मच्छरों के अध्ययन और बीमारी फैलाने वाले मच्छरों की रोकथाम के लिए मलेरिया विभाग में कीट संग्रहकर्ता का पद करीब 11 साल से खाली चल रहा है। मलेरिया विभाग में कीट संग्रहकर्ता के 2 पद 80 के दशक में निर्धारित किए गए थे। अब कीट संग्रहकर्ता के पद पर नियुक्ति ना होने के कारण डेंगूू मलेरिया रोकथाम अभियान में महज खानापूर्ति रहती है।

साल दर साल बढ़ रही मरीजों की संख्या
वही पिछले छह साल के बीमारियों के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2016 में जहां डेंगू मरीजों की संख्या 195 तक सीमित थी वहीं साल 2020-21 में डेंगू के मरीजों की संख्या 1668 पहुंच गई थी। जबकि 2022-23 में यह संख्या 1348 पर थी।

ये है स्थिति
साल 2016 2017 2018 2019 2020 2021 2022 2023
डेंगू 195 660 202 215 35 1668 348 1348
मलेरिया 211 93 53 61 06 09 40 188

वीआईपी वार्ड तक सीमित फागिंग
गौरतलब है कि नगर निगम मच्छरों को मारने के लिए केवल फागिंग पर ही निर्भर है और फागिंग भी केवल कुछ ही वार्ड में गिनी चुनी गलियों तक सीमित है। हालत यह है कि शहर की मलिन बस्तियों में तो फागिंग नाम मात्र तक सीमित है। राजेंद्रनगर, कैलाशपुरी, मदीना कालोनी, मेवगढ़ी, विकासपुरी, शेरगढ़ी, सरायकाजी, वेदव्यासपुरी, गौतमनगर, जाकिर कालोनी, मलियाना, कंकरखेड़ा जैसी सैकड़ों इलाकों में फागिंग ना के बराबर है या फिर हुई ही नही है। इन क्षेत्रो में लगातार डेंगू के केस मिल रहे हैं।

फागिंग तो वार्ड में अक्सर शाम के समय होती है लेकिन उसका असर कुछ ही देर तक रहता है।
हनी

हमारे वार्ड में नाले के कारण गंदगी और बदबू का असर रहता है। इस कारण से ही मच्छरों का प्रकोप अधिक है, यहां फागिंग का कुछ असर नही दिखता।
अमित गुप्ता

केवल फागिंग के भरोसे तो मच्छर कम नही हो सकते क्योंकि शहर में जगह जगह जलभराव और गंदगी बहुत अधिक है।
अमित अग्रवाल

फागिंग के लिए वार्ड वार रोस्टर बनाया हुआ है और रोस्टर के आधार पर ही शहर के विभिन्न वार्डों में फागिंग कराई जा रही है। जिन वार्डो में फागिंग नही हुई है वह मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
डॉ। हरपाल सिंह, प्रभारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी

मुख्यालय स्तर से फागिंग और एंटी लार्वा के लिए 500 और 300 लीटर दवा उपलब्ध करा दी गई है। निगम के साथ मिलकर लगातार शहर के वार्ड कवर किए जा रहे हैं।
डॉ। सत्य प्रकाश, जिला मलेरिया अधिकारी