मेरठ ब्यूरो। आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है, शहर में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के कई दावे होते हैं। मेडिकल कॉलेज हो या फिर सरकारी अस्पताल अत्याधुनिक तकनीकि से इलाज के दावे होते हैं। बावजूद इसके, सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए रोजाना मरीज भटकते रहते हैं। हालत यह है कि मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और जिला महिला अस्पताल में हर साल करीब 20 लाख से ज्यादा मरीज आते हैं। कई मरीज इलाज के अभाव में भटकते रहते हैं। पर्चा काउंटर, ओपीडी और दवा काउंटर तक पर मरीजों की लंबी-लंबी कतारें लगती हैं। यानि, सुविधाएं न होने के कारण मरीजों से ज्यादा खुद अस्पताल ही बीमार हैं।

दवा के लिए 25 करोड़ का बजट
आंकड़ों की मानेें तो मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और महिला जिला अस्पताल को हर साल दवाओं के लिए 25 करोड़ से ज्यादा का बजट मिलता है। बावजूद इसके, गंभीर बीमारी होने पर मरीजों को जरुरी दवाएं तक नहीं मिल पाती हैं।

सुपरस्पेशिलिटी है फिर भी मरीज रेफर
कुछ संक्रामक रोग, सर्जरी व सीजनल बीमारियों के मरीजों को छोड़ दें तो गंभीर बीमारी के मरीज, बर्न केस, एक्सीडेंटल केस, कैंसर, ब्रेन हैमरेज आदि के पेशेंट को दिल्ली के अस्पतालों के लिए रेफर कर दिया जाता है। जबकि मेडिकल कालेज में सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल है, फिर भी यहां से मरीज रेफर किए जाते हैं।

मेडिकल कॉलेज: ये सुविधाएं नहीं
- लेजर तकनीक से आंखों का इलाज
- जले हुए मरीज के लिए बर्न वार्ड
- कैंसर के मरीजों के लिए रेडियोथैरेपी और लिवर और हृदय रोग
- रेडियोथेरेपी की सुविधा

145 पदों पर डॉक्टर्स की कमी
गौरतलब है कि जिले में करीब 145 से अधिक डॉक्टर्स की कमी है। वहीं, मेडिकल कॉलेज में 84 डॉक्टर्स की कमी है। इसके साथ जिला अस्पताल में 14 महिला डॉक्टर और स्वास्थ्य विभाग में 47 डॉक्टर्स की कमी है।

जांचों के लिए लंबी वेटिंग
मेडिकल कॉलेज में एमआरआइ, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड और एक्सरे की सुविधा तो उपलब्ध है। लेकिन इसके लिए लंबी वेटिंग रहती है। वहीं, एमआरआई और सीटी स्कैन के लिए भी करीब एक माह की वेटिंग रहती है। कारण है कि मेडिकल कॉलेज के रेडियोलाजी विभाग में डॉक्टर्स और टेक्निशियन की कमी है। एमआरआइ और सीटी स्कैन करने के लिए एक ही तकनीशियन है। रोजाना एक शिफ्ट में अधिक से अधिक 15 से 20 एमआरआइ ही हो पाते हैं। मानक के अनुसार आठ एक्सरे तकनीशियन होने चाहिए, जबकि इनकी संख्या मात्र तीन है। विभाग में छह चिकित्सा शिक्षक (एक प्रोफेसर, दो एसोसिएट प्रोफेसर और तीन असिस्टेंट प्रोफेसर) के पद स्वीकृत हैं, लेकिन एक की भी नियुक्ति नहीं है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड के दौरान विभाग के रेजिडेंट डाक्टरों की मदद ली जाती है।

जिला अस्पताल में भी समस्याएं
जिला अस्पताल में मस्तिष्क से संबंधित न्यूरो सर्जरी, कैंसर से संबंधित आंकोलोजी, त्वचा से संबंधित प्लास्टिक सर्जरी, गुर्दे से संबंधित नेफ्र ोलॉजी, कैंसर से संबंधित रेडियोथैरेपी, बच्चों की बीमारी से संबंधित पीडियाट्रिक्स सर्जरी, हार्मोंन से संबंधित एंडोक्राइनोलॉजी आदि की सुविधा नही हैं।

जिले की चिकित्सीय सुविधाओं को सुधारने के लिए हर स्तर पर प्रयास हो रहा है। जिला अस्पताल या मेडिकल कालेज में चिकित्सकों की कमी को दूर करने के लिए शासन स्तर से चिकित्सक नियुक्त किए जा रहे हैं। वहीं अधिकतर बेसिक जांच सुविधाएं उपलब्ध हो रही हैं।
- अर्चना त्यागी, एडी हेल्थ

मेडिकल कालेज में एमआरआई, सीटी स्कैन की जांच के लिए कई दिनों का इंतजार करना पड़ता है। करीब एक-एक माह की वेटिंग रहती है।
- मयंक
सामान्य बीमारियों की दवाएं तो मेडिकल कालेज में अधिकतर मिल जाती हैं। परेशानी तो एंटी बायोटिक या किसी गंभीर बीमारी की दवाओं के लिए आती है उसके लिए मेडिकल कालेज से मरीजों को रफ पर्चे पर दवा लिखकर दे दी जाती है।
- सिद्धांत
एक्सरे, सीटी स्कैन की मशीनों की संख्या बढऩी चाहिए। यहां कई-कई घंटों तक मरीजों को इंतजार करना पड़ता है। परेशान मरीजों की परेशानी यहां और बढ़ जाती है।
- अमित शर्मा