मेरठ (ब्यूरो). नया सेशन शुरू हो चुका है और हर साल की तरह एक बार फिर शहर की सड़कों पर बेलगाम खटारा वाहन स्कूली बच्चों को ढोते हुए दिखने लगे हैं। अगर बात सुरक्षा मानकों की हो तो इन वाहनों में ऐसा कोई इंतजाम नहीं है। चलो मान भी लें कि अभिभावकों की कोई तो मजबूरी होगी लेकिन, परिवहन विभाग की ऐसी क्या मजबूरी है कि सड़क पर ऐसे खटारा वाहनों को फर्राटा भरने की इजाजत दे रखी है। हालांकि जिम्मेदारों की आंखें तो बंद हैं। लेकिन, शहर के एक जागरूक नागरिक प्रमोद अत्री ने ट्विटर पर शिकायत कर विभाग समेत लोगों की आंखें खोलने की कोशिश की है।

मानकों के बिना संचालन
परिवहन विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो शहर में करीब 1203 वाहन स्कूली बच्चों को लाने व ले जाने के लिए अधिकृत हैं। इनकों सुरक्षा के मानकों के आधार पर स्कूलों में संचालन की अनुमति मिली हुई है। यह विभागीय आंकड़ा है लेकिन वास्तविकता यह है कि शहर के अधिकतर स्कूलों में बिना अनुमति और अधूरे मानकों के साथ सैकड़ों वाहन बच्चे ढोने में जुटे हैं। स्थिति यह है कि ऐसे वाहनों पर लगाम कसने के लिए परिवहन विभाग के पास कोई एक्शन प्लान नहीं है।

नोटिस तक सीमित कार्रवाई
गौरतलब है कि दो माह पहले मुजफ्फनगर में दो स्कूली वाहनों की आमने सामने टक्कर में दो बच्चों की मौत हो गई थी। उसके बाद पूरे मंडल में स्कूली वाहनों की चेकिंग शुरू की गई थी। तब परिवहन विभाग द्वारा वाहनों की फिटनेस कराने के लिए करीब 540 स्कूलों को नोटिस जारी किया गया था। जिन बसों या स्कूली वाहनों ने इसके बावजूद भी फिटनेस नहीं कराया, उन्हें फिटनेस होने तक संचालन न करने के निर्देश दिए गए था। हालांकि इसके बाद अधिकतर स्कूलों ने वाहनों की फिटनेस करा ली। लेकिन, बहुत से अवैध वाहनों का संचालन अब भी सड़कों पर बिना फिटनेस जारी है।

सीसीटीवी और जीपीएस अनिवार्य
साल 2018 में स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए स्कूली वाहनों में सीसीटीवी और जीपीएस को भी अनिवार्य किया गया था। इस नियम के अनुसार जब तक स्कूली वाहन में सीसीटीवी, जीपीएस और हर सीट पर सीट बेल्ट नहीं होगी, तब तक स्कूल वाहन संचालित नहीं होगा। लेकिन इन मानकों का अधिकतर स्कूल वाहन आज भी पालन नहीं कर रहे हैं।

स्कूली वाहनों के लिए जरूरी मानक
- प्रदूषण प्रमाण-पत्र हो, रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र हो, परमिट वैध हो, डीएल पांच वर्ष पुराना हो।
- बस 10 वर्ष से ज्यादा पुरानी न हो।
- बस में बच्चों की सूची, जन्म, पता व ब्लड ग्रुप लिखा हो।
- बस की खिड़कियों पर रॉड लगा होना चाहिए।
- सीएनजी का नो लिकेज प्रमाण-पत्र हो।
- बस का रूट चार्ट अवश्य लिखा जाए।
- बस में एक पुरुष और महिला सहायक तैनात हो।
- चालक व सहायक का ड्रेस पहनना जरूरी है।
- बैग रखने की जगह हो, बोतल रखने के लिए क्लिप हो।
- बस का रंग गोल्डन यलो विथ ब्राउन हो।
- स्पीड गवर्नर हो, जीपीएस सिस्टम लगा हो।
- रिफलेक्टर टेप लगा हो।
- अग्निशमन यंत्र व फर्स्ट एड बॉक्स हो।
- बस पर ऑन ड्यूटी लिखा होना चाहिए।
- बस के पीछे प्रबंधक और प्रधानाचार्य का नंबर होना चाहिए
- पायदान की ऊंचाई एक फीट से अधिक न हो, खिड़की में ग्रिल लगी हो।
-वाहन में इमरजेंसी गेट लगा हो और पीछे सावधान स्कूल बस से बच्चे उतर रहे हैं लिखा हो।

कोट्स

कैंट क्षेत्र में कई प्रतिष्ठित स्कूल हैं जिनमें खटारा वैन को स्कूल वाहनों के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है। स्कूल की छुटटी के समय कैंट क्षेत्र में दर्जनों की संख्या में कतार में ऐसे वाहन खड़े रहते हैं लेकिन ट्रैफिक पुलिस कोई कार्यवाही नही करती है।
- अंकुर बंसल

हर साल स्कूल खुलने के बाद आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस अपनी सजगता दिखाते हुए कुछ एक कार्यवाही कर खानापूर्ति कर देते हैं लेकिन सालभर ऐसे वाहन सड़कों पर स्कूली बच्चों को लेकर दौड़ते हुए दिख जाते हैं। इन पर सख्त कार्यवाही हो तो इनका संचालन पूरी तरह रुक जाए।
- प्रमोद अत्री

आरटीओ विभाग के अधिकारियों को स्कूल टाइम में रेंडम चेकिंग करनी चाहिए। छुटटी के समय ऐसे दर्जनों वाहन स्कूलों के आसपास ही मिल जाएंगे। लेकिन विभाग केवल नोटिस भेजकर खानापूर्ति कर देता है। जबकि इनके एक भी मानक पूरे नही हैं।
- संजीव अग्रवाल

इस मामले में अभिभावकों को सजग होना चाहिए। कम से कम अपने बच्चों की सुरक्षित रखने के लिए ही ऐसे वाहनों से बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दें तो काफी हद तक ऐसे वाहनों पर रोक लग जाएगी।
- तनवी

वर्जन
स्कूल में संचालित वाहनों के लिए समय-समय पर अभियान चलाकर कार्रवाई की जा रही है। इसके लिए स्कूलों में भी चेकिंग होती है।
सुधीर कुमार, एआरटीओ प्रवर्तन