मेरठ (ब्यूरो)। भारत में औरंगजेब के शासन काल के दौरान इस्लाम कबूल न करने वाले लोगों की हत्या कर दी जाती थी। इसी दौरान जब औरंगजेब का सामना गुरु गोविंद सिंह जी के बेटों से हुआ तो उन्होंने इसका विरोध किया। साथ ही इस्लाम कबूल करने से इंकार कर दिया। अपने धर्म और देश के साथ खड़े रहे। औरंगजेब ने इसकी सजा में दोनों साहिबजादों को दीवार में चुनवाने का फैसला सुनाया। उस समय गुरू गोविंद सिंह के पुत्रों जोरावर सिंह और फतेहसिंह जी की उम्र मात्र 9 और 6 वर्ष थी। जिस समय दोनों को दीवार में चुनवाया जा रहा था तब भी वे जपजीसाहिब का पाठ कर रहे थे।यह बात यूनिवर्सिटी में चल रहे कार्यक्रम बाल वीर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही वीसी प्रो। संगीता शुक्ला ने कही।
वीर पुत्रों को भारत प्रणाम करता है
उन्होंने कहा कि दोनों साहिबजादों का अंत में सिर धड़ से अलग कर दिया गया तलवार अपनी गर्दन तक आने के बाद भी उनमें लेश मात्र का डर नहीं था बल्कि अपने देश धर्म के लिए बलिदान होने पर गर्व था। ऐसे वीर पुत्रों को समस्त भारत प्रणाम करता है। जिन्होंने अपने धर्म के लिए नन्हीं सी आयु में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। जिनके बलिदान की गाथा युगों युगों तक गाई जाएगी।
अपने धर्म की रक्षा की
डॉ। विवेक त्यागी ने कहा कि वीर बाल दिवस खालसा के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। अंतिम सिख गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बच्चों ने अपने आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। यह उनकी कहानियों को याद करने का भी दिन और यह जानने का भी दिन है कि कैसे उनकी निर्मम हत्या की गई। खासकर जोरावर और फतेह सिंह की है।
ये लोग रहे मौजूद
इस अवसर पर प्रो। जगबीर भारद्वाज ने भी अपने विचार रखे। इस दौरान कुलसचिव धीरेंद्र कुमार प्रो। वाई विमला, प्रो। हरे कृष्णा, प्रो। मृदुल गुप्ता, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो। भूपेंद्र सिंह, प्रो। जमाल अहमद सिद्दीकी, प्रो। अनिल मलिक, प्रो। बिंदु शर्मा, प्रो। प्रशांत कुमार, इंजीनियर मनीष मिश्रा और मितेंद्र कुमार गुप्ता आदि मौजूद रहे।