केस 1
गाली देने की आदत
सुधा अपने 10 साल की बेटे की गाली देने की आदत से बहुत परेशान थी। उनका बेटा बात-बात पर दूसरे बच्चों को मारता था। गाली देता था। सोसाइटी के लोगों के साथ ही वह परिजनों के साथ भी गाली-गलौज करता था। सुधा उसे काउंसलर के पास ले गई। पता चला की सुधा और उनके पति में अक्सर झगड़ा होता था। इसका असर उनके बेटे पर हुआ और वह झगड़ा करना और गाली देना सीख गया।

केस 2
मोबाइल की जिद
आकाश की तीन साल की बेटी हर वक्त मोबाइल देखती है। आकाश और उसकी पत्नी ने बेटी को मोबाइल न देने के काफी प्रयास किए लेकिन वह जिद करती। उन्होंने खुद बेटी को कभी फोन चलाने के लिए नहीं दिया था। हारकर दोनों काउंसलर के पास गए तो वहां पता चला कि वह दोनों खुद भी मोबाइल एडिक्ट थे। दोनों को देखकर ही उनकी बेटी भी मोबाइल एडिक्ट हो गई।

केस 3
डिप्रेशन में गई बेटी
वंशिका की 13 साल की बेटी खुद में ही रहती थी। वह बाहर आने-जाने से भी बचती थी। वह डिप्रेशन तक में रहने लगी थी। वंशिका ने एक्सपर्ट से बात की तो पता चला की वंशिका और उसके पति दोनों एमएनसी में काम करते हैं। हाई प्रोफाइल जॉब की वजह से वह अपनी बेटी को समय ही नहीं दे पा रहे थे। जिसकी वजह बेटी में अकेलापन घर कर गया और वह डिप्रेशन में आ गई।

मेरठ (ब्यूरो)। पेरेंट्स की गलत आदतों की वजह से बच्चों की वैलबीइंग प्रभावित हो रही है। वह न केवल एगे्रसिव और जिद्दी हो रहे हैं, बल्कि उनकी ग्रोथ पर भी इसका बुरा असर दिख रहा है। ऐसा मैैं नहीं कह रहा बल्कि मानसिक स्वास्थ्य विभाग की सर्वे रिपोर्ट कह रही है। इसके क्या कारण है और समाधान क्या हो सकते हैैं, इसी के मद्देनजर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने एक सात दिवसीय न्यूज सीरिज परफेक्ट पेरेंटिंग शुरू की है। पेश है पहली किस्त

पेरेंट्स की अनदेखी और लापरवाही
वंशिका, सुधा और आकाश की तरह शहर में ऐसे कई पेरेंट्स हैं। मेंटल हेल्थ विभाग की सर्वे रिपोर्ट इसकी तस्दीक करती है। एक्सपट्र्स बताते हैं कि पेरेंटस की हर आदत, हर गतिविधि और हर एक्शन को बच्चे कॉपी करते हैं। अपने मन में उन्हें ढाल लेते हैं। फिर वह ऐसा ही व्यवहार करने लगते हैं। पेरेंट्स की अनदेखी और लापरवाही की वजह से बच्चों का व्यवहार अब असामान्य हो रहा है। वह अधिक आक्रामक, चिड़चिड़े और मानसिक रूप से अस्थिर होते जा रहे हैं।

यह है स्टडी रिपोर्ट
मानसिक स्वास्थ्य विभाग की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 89 प्रतिशत बच्चों का स्क्रीन टाइम छह घंटे से अधिक पाया गया है। इनके पेरेंट्स लगातार टीवी और मोबाइल का प्रयोग करते हैं। इनमें 20 प्रतिशत बच्चों की उम्र एक से तीन वर्ष है। 55 प्रतिशत बच्चों में एग्रेशन, आक्रामकता और चिड़चिड़ापन पाया गया। जिसमें 15 साल तक के बच्चे शामिल हैं। दो से 16 साल वर्ष के 56 प्रतिशत बच्चों में नींद की कमी मिली। 37 प्रतिशत बच्चों में डिप्रेशन पाया गया। अप्रैल 2023 से लेकर अक्टूबर 2024 तक मानसिक स्वास्थ्य विभाग में पहुंचे 18,490 बच्चों पर ये सर्वे हुआ। इन बच्चों की हिस्ट्री में पेरेंट्स की बच्चों के प्रति लापरवाही और समय न देने की शिकायत आम पाई गई।

पेरेंट्स की ये आदतें पड़ रहीं भारी
बच्चों को नजरअंदाज करना, उनकी भावनाओं की उपेक्षा करना।
बच्चों के साथ मानसिक या शारीरिक दुव्र्यवहार करना।
अनुशासन में कमी और बच्चों को अत्यधिक ढील देना।
बच्चों पर अधिक कंट्रोल रखना।
आक्रामक और हिंसक व्यवहार।
बच्चों को बहुत अधिक आजादी देना
बच्चों पर बेहतर प्रदर्शन के लिए अधिक दबाव डालना।

ये बन रहे खराब पेरेंटिंग के कारण
एडवांस लाइफ स्टाइल, बिजी शेड्यूल, स्ट्रेस, समय की कमी और खराब मैनेजमेंट।
बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम न बिता पाना।
पेरेंट्स द्वारा टेक्नोलॉजी का एक्सट्रीम यूज।
घर का खराब माहौल।
पेरेंट्स के बीच मतभेद, वॉयलेंस।
बच्चों की ग्रोथ को लेकर पेरेंट्स में अवेयरनेस और एजुकेशन की कमी।
समाज का दबाव और अपेक्षाएं।

इन बातों का रखें ख्याल
अपना स्क्रीन टाइम सीमित करें।
खेल, पढ़ाई, और रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करें।
बच्चे, मोबाइल और टीवी पर क्या देख रहे हैं इसकी मॉनिटरिंग करते रहें।
बच्चों के सामने खुद का अच्छा उदाहरण पेश करें।
बच्चों से उनकी आदतों और रुचियों के बारे में बात करते रहें।

फैक्ट फाइल
2 साल से ऊपर के बच्चों का स्क्रीन टाइम हर दिन एक घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए।
3 घंटे या उससे अधिक बच्चों का स्क्रीन टाइम प्रतिदिन होता है, तब उनमें एग्रेशन बढ़ जाता है।
नेशनल हेल्थ सर्वे 2020-21 के अनुसार 67 प्रतिशत पेरेंट्स मोबाइल और टीवी का अत्यधिक उपयोग करते हैं।
पेरेंट़्स को देखकर ही बच्चे भी स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने की आदत विकसित कर रहे हैं।

इनका है कहना
आजकल छोटी फैमिली होती हैं। पेरेंट्स बच्चों को मोबाइल या टीवी देकर अपने काम में लग जाते हैं। इसका असर बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर गहरा प्रभाव डालता है। बच्चों को पूरा समय चाहिए होता है।
डॉ। तरूण पाल, एचओडी मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट, मेडिकल कॉलेज

बच्चे पेरेंट्स या अपने आसपास के लोगों को देखकर ही सब सीखते हैं। यही पेरेंटिंग बहुत जरूरी है। अगर इस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो इसका असर आने वाले समय में बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर गंभीर रूप से पड़ सकता है।
डॉ। विभा नागर, क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट

पेरेंट्स की हर आदत को बच्चे बहुत गौर से देखते और समझते हैं। इसलिए जरूरी है कि वह अपनी हर एक्टिविटी की मॉनिटरिंग करें। अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। इससे उनकी मेंटल और सोशल ग्रोथ में भी हेल्प होती है।
डॉ। नवरत्न गुप्ता, एचओडी पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट, मेडिकल कॉलेज