मेरठ (ब्यूरो)। बंदर और कुत्तों की लगातार बढ़ती संख्या शहर के लोगों के लिए जानलेवा परेशानी बन चुकी है। शहर के अंदर बंदर हमलावर होते जा रहे हैं। जिस कारण से बंदरों के हमले से घायलों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। लेकिन वाइल्ड एक्ट के नियमों के फेरे में फंसा नगर निगम हर साल बंदर पकडऩे के अभियान को मात्र खानापूर्ति तक सीमित कर खत्म कर देता है। कुछ ऐसा ही इस साल हुआ। मतगणना के दौरान ईवीएम को सुरक्षित रखने के लिए मथुरा से बंदर पकडऩे की स्पेशल टीम बुलाई गई। लेकिन, टीम फिर से खाली हाथ रही और वापस चली गई। इस गंभीर समस्या पर शहर के नागरिक ने ट्विटर के माध्यम से नगर निगम से समस्या को दूर करने की मांग की है।
प्रतिबंधों से अभियान तोड़ रहे दम
हर साल शहर में बंदरों को पकडऩे के लिए नगर निगम वन विभाग की अनुमति लेकर अभियान शुरू करता है। लेकिन, बंदर पकड़ने की शर्तें इतनी अधिक होती हैं कि अभियान पूरा होने से पहले ही दम तोड़ देता है। पिछले साल 36 प्रतिबंधों के साथ चलाए गए अभियान में 350 के करीब बंदर पकड़कर शिवालिक की पहाडिय़ों में छोड़े गए थे। इसके बाद लोहियानगर में ईवीएम की सुरक्षा के लिए बुलाई गई टीम को वन विभाग ने 40 प्रतिबंधों के साथ बंदर पकडऩे की अनुमति दी थी। इसके बाद लोहियानगर में मथुरा से बंदर पकडऩे वाली टीम को बुलाया गया और लोहे का जाल लगाकर बंदर पकडऩे का प्रयास शुरू किया गया।
जाल में नहीं फंसते चालाक बंदर
पिछले साल कचहरी, कलेक्ट्रेट परिसर, विकास भवन, कमिश्नरी आदि स्थानों पर जाल लगाकर बंदर पकडऩे का प्रयास किया गया। लेकिन, केला, बिस्कुट जैसी खाने की चीजों में भी बंदर नहीं फंसते और अधिकतर जगह जाल खाली रहे। ऐसा ही इस बार लोहियानगर मंडी में बनाए गए स्ट्रांग रूम में रखी गई ईवीएम मशीनों को सुरक्षित रखने के लिए जाल लगाया गया। उसके बाद विकास भवन की छत पर जाल लगाया गया। अभियान के बाद भी एक भी बंदर निगम के जाल में नहीं फंसा। हालांकि इस बार मात्र 45 बंदरों को पकडऩे का टारगेट निर्धारित किया गया था। जिसके एवरेज में पांच-सात बंदर ही पकड़ में आ सके थे।
फैक्ट्स
-20 लाख आबादी शहर की बंदरों के आतंक से परेशान
-13 हजार लोगों को जिला अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक हर साल एंटी रेबीज के इंजेक्शन लगाए जाते हैं
-कई पीढिय़ों से बंदर पकडऩे का काम कर रही वृंदावन की टीम हर साल बंदरों को पकडऩे शहर में आती है
-शहर से बंदर पकड़कर सहारनपुर में शिवालिक की पहाडिय़ों में बंदर छोड़े जाते हैं
-पहले हस्तिनापुर के जंगलों में बंदर छोड़े जाते थे
- 335 रुपये प्रति बंदर पकडऩे के लिए पिछले साल रेट हुआ तय
-3000 हजार बंदर पकडऩे का पिछले साल अभियान में रखा गया लक्ष्य, लेकिन आंकड़ा 400 भी पार नहीं कर पाया
इन क्षेत्रों में अधिक आतंक
-मेडिकल कॉलेज परिसर और अस्पताल, लालकुर्ती, शास्त्रीनगर, जयदेवी नगर, कैलाशपुरी, लिसाड़ी गेट, जागृति विहार, सिविल लाइन, मोहनपुरी, फूलबाग कॉलोनी, स्पोट्र्स कॉलोनी, समर गार्डन, फत्तलेपुर, मदीना कॉलोनी, लोहियानगर, कंकरखेड़ा
वर्जन
बंदरों को पकडऩे के लिए इस बार बहुत कम टारगेट मिला था। अब दोबारा हम अभियान चलाने के लिए वन विभाग से अनुमति लेंगे। जल्द दोबारा अभियान चलाने का प्रयास किया जाएगा।
- हरपाल सिंह, पशु कल्याण अधिकारी, नगर निगम