मेरठ (ब्यूरो)। सीबीएसई काउंसलर्स के पास हेल्पलाइन पर सालभर के अब तक में 300 से ज्यादा ऐसे केस सामने आए हैं, जिसमें बच्चे बैड टच का शिकार हुए हैैं। ये आंकड़ा डराने वाला है। इस आंकड़े के मद्देनजर नेशनल काउसिंल फॉर एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग ने तय किया है कि किताबों के जरिए बच्चों को बताया जाएगा कि गुड टच और बैड टच के बीच क्या फर्क होता है। वहीं सीबीएसई ने भी अब स्कूलों को बच्चों को विभिन्न स्टोरीज व विडियो स्टोरीज के जरिए गुड बैड टच की जानकारी देने को कहा है। दरअसल, सीबीएसई की काउंसिलिंग हेल्पलाइन पर बैड टच को देशभर से लगातार शिकायतें आ रही है। जिसके बाद ही स्कूलों को यह निर्देश दिया गया है।

देशभर से आए केस
दरअसल, सीबीएसई काउंसलर्स के पास हेल्पलाइन पर इस साल के अब तक 383 ऐसे केस सामने आए हैं, जिनमें छोटे बच्चों को किसी स्कूल के चपरासी या टीचर या फिर घर में किसी अपने ने ही बैड टच कर शोषण किया है। ऐसे में यूपी से करीब 120 और मेरठ से इनमें करीब 19 केस आए हैं। इनमें हालांकि स्कूलों के नाम नहीं खोले गए हैं, लेकिन काउंसलर्स के पास इस तरह के केस आए हैं। यह बात तब पता लगती है जब बच्चा घर पर गुमसुम होकर खाना और खेलना छोड़ देता है। जिसके बाद काउंसलिंग के दौरान इसकी जानकारी मिली है। इनमें चार साल से लेकर आठ साल तक के ही बच्चे हैं। इन केस के बारे में सीबीएसई को पता लगने के बाद से स्कूलों को अलर्ट किया गया है।

बुक्स करेंगी जागरूक
सीबीएसई ने कहा है कि बच्चों के शोषण की वारदातों पर बढ़ती चिंता के बीच किताबों के जरिए बच्चों को बताया जाएगा कि गुड टच और बैड टच के बीच क्या फर्क होता है। अगर बच्चों के साथ यौन उत्पीडऩ जैसी कोई घटना हो तो ऐसी स्थिति में वे क्या करें।

कहानियों के जरिए बताए
सीबीएसई ने कहा है कि बच्चों को विभिन्न कहानियों के जरिए, चित्रों के जरिए व वीडियो कहानियों के जरिए भी जागरूक करें। ऐसे में स्कूलों में भी इसको लेकर सेमिनार व विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारी की जा रही हैं।

बुक्स पर होती है जानकारी
गौरतलब है कि एनसीईआरटी की सभी किताबों के आखिरी कवर के पीछे इस बारे में गाइडलाइंस दी जाती है। इसमें छूने के अच्छे और बुरे तरीकों को विभिन्न चित्रों के माध्यम से आसान भाषा में समझाया गया है। यहां हेल्पलाइन नंबर भी दिए गए हैं, जहां स्टूडेंट या पैरंट्स ऐसे मामलों की रिपोर्ट कर सकते हैैं या मदद या काउंसलिंग ले सकेंगे। बच्चों को यौन शोषण से बचाने के पोक्सो कानून और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के बारे में भी यहां बताया जा रहा है।

यह है जरूरी
बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें।
बच्चों को न कहना सिखाएं।
बच्चों को अपने शरीर का मालिक बनने दें।
बच्चों को उनकी शारीरिक संरचना के बारे में बताएं।
बच्चों को बताएं कि वो आपके साथ सब-कुछ शेयर कर सकते हैं।

हमारे शरीर में एंडोर्फिन हार्मोन रिलीज होता है। शरीर में एंडोर्फिन हार्मोन बैलेंस रहने से मन खुश और स्वस्थ रहता है। इसलिए इसे हैप्पी हार्मोन भी कहते हैं। लेकिन जब किसी के साथ कुछ गलत हो रहा हो तो वो अंदर ही अंदर गुमसुम हो जाता है। जिससे शरीर में इस हार्मोन की कमी होने लगती है। ये स्थिति तनाव तक की स्थिति तक जा सकती है।
डॉ। विकास सैनी, सीनियर साइकैट्रिस्ट

समय-समय पर एनसीईआरटी और स्कूल बच्चों को इस बाबत काउंसिलिंग देते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि पेरेंट्स को खुद भी बच्चों को जागरूक करने की जरूरत है। पेरेंट्स को बच्चों के करीब रहना चाहिए, जिससे बच्चा कोई भी बात पेरेंट्स के साथ शेयर कर सके। इस समय कई केस ऐसे आए हैैं, जिनमें बच्चे शोषण का शिकार हैैं और उनकी काउंसलिंग की जा रही है।
डॉ। पूनम देवदत्त, सीबीएसई काउंसलर, मनोवैज्ञानिक