मेरठ (ब्यूरो)। समाज के मुद्दों एवं संवेदनाओं को पर्दे पर उकेरना फिल्म का मुख्य उद्देश्य होता है। भारतीय सिनेमा के पिछले सौ साल के इतिहास पर एक नजर डालें तो अनेक फिल्में बनी हैं। जिनसे समाज को प्रतिबिम्बित किया गया है, लेकिन ऐसी फिल्में भी बनीं जो भारत और भारतीयता से परे थीं। यह बात तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार फिल्म स्कूल व मेरठ चलचित्र सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि राष्ट्रदेव पत्रिका के प्रबंध संपादक सुरेंद्र सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि अब परिदृश्य बदल रहा है। आज ऐसी फिल्में बन रही हैं और दर्शकों को पसंद भी आ रही हैं।

तीन फिल्में दिखाई गई
कार्यशाला में तीन फिल्में दिखाई गई है। इनमें पहली फिल्म छोटी सी बात, दूसरी फिल्म अननॉन कॉल, तीसरी फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे हुए एक डाक्यूमेंट्री के रूप में दिखाई गई।

बंटवारे की घटनाओं को दर्शाया
इस फिल्म का शीर्षक विभाजन की विभीषिका था। इस फिल्म में देश की आजादी के साथ देश के बंटवारे में हुई घटनाओं को दर्शाया गया। कार्यशाला में डॉ। मनोज श्रीवास्तव, डॉ। प्रशांत कुमार, राकेश कुमार, केशव जिंदल, लव आदि का सहयोग रहा।