केस : 1
गढ़ रोड निवासी 40 साल के गौरव की शादी को 10 साल हो गए। बेबी नहीं हो पाया। काफी ट्रीटमेंट करवाया लेकिन फायदा नहीं हुआ। काफी लोगों ने आईवीएफ की सलाह दी। इसके बाद उन्होंने इसकी पूरी जानकारी ली। घरवालों को भी समझाया। सब मान गए लेकिन शर्त यह रही कि डोनर उनके रिलीजन का ही होना चाहिए।

केस : 2
रोहटा रोड निवासी 42 वर्षीय सुलेखा शादी के 22 साल बाद आईवीएफ के जरिए मां बनी। उनका कहना है कि उन्होंने बेबी के लिए काफी इंतजार किया। टेस्ट ट्यूब बेबी को लेकर उनके मन में काफी सवाल थे। इस प्रक्रिया को समझने के बाद भी लंबे समय तक वह तैयार नहीं हुई। उन्हें डर था डोनर का धर्म, जाति कौन सी होगी। हालांकि सेंटर ने उन्हें हर तरह से संतुष्ट किया और वह फाइनली मां बन सकी।

मेरठ (ब्यूरो)। क्या सच में स्पर्म का भी धर्म होता हैमुझे इस बात ने सोचने पर मजबूर कर दिया। मगर ये सच है, क्योंकि गौरव और सुलेखा समेत ऐसे हजारों कपल्स इसका उदाहरण हैं। जो टेस्ट ट्यूब बेबी प्लान करने से पहले डोनर का धर्म कंफर्म करने को लेकर कंसर्न रखते हैैं। इतना ही नहीं, कपल्स इस प्रोसेस में जाने से पहले आईवीएफ सेंटर पर कई अन्य तरह की क्वेरीज भी करते हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि आईवीएफ से पहले कपल्स की क्वेरीज को लेकर उनकी काउंसलिंग की जाती है। पूरा प्रोसेस उन्हें समझाया जाता है। एक बार जब रजामंदी हो जाती है तो आईवीएफ प्रोसिजर शुरू किया जाता है।

ये भी होती है डिमांड
एक्सपर्ट बताते हैं कि आईवीएफ के लिए आने वाले कपल्स की डिमांड सिर्फ धर्म तक ही सीमित नहीं होती है। वह स्पर्म डोनर के खानपान, रहन-सहन, इंटेलीजेंस लेवल को लेकर भी सवाल करते हैं। वेजीटेरियन परिवार अपने लिए ऐसे ही डोनर की मांग रखते हैं। आईक्यू लेवल को लेकर भी लोग बहुत कांशियस रहते हैं।

गोपनीय होते हैं डोनर
आईवीएफ की प्रक्रिया में स्पर्म और एग डोनर्स को गोपनीय रखा जाता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि स्पर्म बैंक में स्टोर किए जाते हैं। यदि आवश्यकता पड़ती है तो बाहर से स्पर्म मंगवाएं जाते हैं। डोनर की हर जानकारी गुप्त रहती है। हालांकि रिसीवर को फ्रेश स्पर्म का विकल्प भी दिया जाता है।

जरा आईवीएफ को समझ लें
आईवीएफ को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन कहते हैं। इसे आम भाषा में टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहते हैं। जो कपल्स नेचुरली कंसीव नहीं कर पाते हैैं, उनके लिए इस टेक्नीक का यूज किया जाता है। इसमें फीमेल एग और मेल स्पर्म को लैब में मिलाया जाता है। भू्रण डेवलप होने के बाद फीमेल के यूटरस में ट्रांसफर किया जाता है।

ये है डोनर के लिए नियम
डोनर बेनामी होता है। सभी जानकारी गोपनीय रहती है।
21 से 34 वर्ष की फीमेल डोनर होनी चाहिए।
तीन साल का एक बच्चा पहले से डोनर का जीवित होना चाहिए।
डोनर की पर्सनल हिस्ट्री का मूल्यांकन किया जाता है।
डोनर की कई जांच की जाती है। यदि जरूरी हो तो जेनेटिक बीमारियों से संबंधित जांच भी करवाई जा सकती है।

फैक्ट्स फाइल पर एक नजर
20 सेंटर हैं शहर में आईवीएफ के लिए हैं।
1.50 लाख से 5 लाख रूपये तक आईवीएफ प्रोसेस में खर्च हो सकते हैं।
200 से 350 तक बच्चे हर साल जिले में आईवीएफ के जरिए पैदा हो होते हैं।
2 से 3 हफ्ते एक आईवीएफ प्रोसेस कंप्लीट होने में लगते हैं।

अपने रिलीजन को लेकर कपल्स का कंसर्न रहता है। हमारी पहली कोशिश यही रहती है कि कपल्स के खुद के स्पर्म या एग ही यूज किए जाएं।
डॉ। अंजू रस्तोगी, आईवीएफ एक्सपर्ट एवं डायरेक्टर, अमन टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर

आईयूआई, आईवीएफ जैसी तकनीक में जाने से पहले कपल्स की काफी क्वेरीज होती हैं। कई कपल्स डोनर के रिलीजन को लेकर भी कंसर्न रखते हैैं।
डॉ। मनीषा त्यागी, गाइनक्लोजिस्ट आईयूआई एक्सपर्ट